जैश ए मोहम्मद की महिला विंग में बनी 5000 सदस्य, दी गई फिदायीन ट्रेनिंग
सोनाली मिश्रा
भारत में पिछले दिनों आतंकवाद का वह चेहरा दिखाई दिया, जिसे देखना या समझना किसी के लिए भी असहज हो सकता है। वह दरअसल कई पूर्ववर्ती धारणाओं के टूटने की घटना थी। यह बहुत स्वाभाविक नहीं था। क्योंकि अभी तक यह कहने वाले लोग कि मुस्लिम समुदाय के लोग गरीबी की विवशता के कारण आतंकवादी बनते हैं, यह नहीं बता पाए थे कि कैसे मानवता के लिए सेवा करने वाले पेशे के लोग मजहबी कट्टरता के नाम पर निर्दोष लोगों की जान लेने के लिए उतारू थे और निर्दोष लोगों की जान गई भी थी।
जब भी भारत में मजहबी कट्टरता के नाम पर हमले होते थे तो एक बड़े वर्ग द्वारा यह कहा जाता था कि गरीब मुस्लिमों को बहकाकर लोग फायदा उठाते हैं। मगर न ही पहले ऐसा था और न ही अब ऐसा है। अब चूंकि सोशल मीडिया है और सूचना के प्रसार की गति तीव्र ही नहीं अपितु अत्यधिक तीव्र है, तो ऐसे में यह बहाना चल नहीं पाता है कि गरीबी के कारण ऐसा हो रहा है।
हाल ही में दिल्ली में लालकिले के बाहर जो आतंकी हमला हुआ, उसमें सबसे भयावह बिन्दु था डॉक्टर्स का नाम सामने आना और वह भी महिला डॉक्टर का नाम सामने आना। मगर उससे भी बड़ी विडंबना यह है कि इस पक्ष पर बात ही नहीं हो रही है कि आखिर जिस पर सृष्टि के सृजन का उत्तरदायित्व होता है, वह मजहबी कट्टरता के चलते इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है कि वह सृष्टि का ही नाश कर दे। वह लोगों की हत्याएं इस आधार पर करने लगे कि वह उसके मजहबी मत का नही है।
उससे भी कहीं अधिक खतरनाक है, इस बात पर आँखें मूँद लेना कि दिल्ली में आतंकी हमले का षड्यन्त्र रचने वाली महिला डॉक्टर शाहीन का आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद की महिला विंग से जुड़ा होना और इस पर विमर्श में और मीडिया में भयानक चुप्पी छा जाना!
क्या है जैश की महिला विंग?
जब डॉ0 शाहीन की संलिप्तता सामने आई थी, तो उससे कुछ ही दिन पहले यह भी सामने आया था कि आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद अपनी महिला विंग बना रहा है और उसका निशाना मुस्लिम महिलाएं होंगी, जो कि इस आतंकी संगठन के कई कार्य करेंगी। इसका एक उद्देश्य मुस्लिम आतंकी आदमियों को सुरक्षा भी देना है।
जब तक इस आतंकी संगठन की महिला विंग पर बात हो पाती, चर्चा हो पाती, उससे पहले ही डॉ0 शाहीन ने यह अपनी हरकत से यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी आतंकी संगठन की महिला शाखा आखिर क्या कर सकती है? यह बहुत ही भयावह है कि एक तो महिला और उस पर डॉक्टर, जिनपर सृजन और रक्षा का उत्तरदायित्व होता है, वह कट्टरता की चादर तले इस सीमा तक कट्टर हो जाएं कि उसके लिए फिर कोई मायने ही न रहे। उसके लिए केवल जिहाद ही महत्वपूर्ण रह जाए और निर्दोष लोग उसकी नफरत में आ जाएं।
क्या केवल डॉ0 शाहीन तक ही है सीमित यह विंग या फिर जारी है मुस्लिम महिलाओं का जुड़ना?
डॉ0 शाहीन की संलिप्तता तो दिल्ली में हुए आतंकी हमले के कारण दिखाई दे गई, मगर यह और भी महत्वपूर्ण है कि क्या केवल यह संलिप्तता डॉक्टर शाहीन तक सीमित थी या फिर यह अभी भी जारी है? यदि हम देखें तो पाएंगे कि यह अभी भी जारी है और अब तो जैश की तरफ से जो बयान आया है वह और भी आतंकित करने वाला है। सोशल मीडिया पर आतंकी मसूद अजहर की पोस्ट से यह खुलासा हुआ है कि जैश की महिला विंग अर्थात जमात उल मुमीनात के साथ मुस्लिम महिलाएं लगातार जुड़ रही हैं। और अब इसमें लगभग 5000 मुस्लिम महिलाएं शामिल हो चुकी हैं, और उनका ब्रेनवाश करके उन्हें फिदायीन गतिविधियों के लिए उन्हें तैयार किया जा रहा है।
मसूद अज़हर ने लिखा कि 5000 से अधिक मुस्लिम महिलाएं पिछले कुछ हफ्तों में इसके साथ जुड़ चुकी हैं और और महिलाओं को जोड़ने और उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जिला स्तर पर संगठन बनाए जाएंगे। उसने लिखा कि हर जिले में एक समर्पित महिला अर्थात मुंतजिमा होगी, जो महिला विंग की गतिविधियों को देखेंगी। उसकी पोस्ट में यह भी दावा किया गया कि कई महिलाएं जो उसकी इस इकाई में शामिल हो रही हैं, उन्होंने कहा कि यह उन्हें उनके मजहब को मजबूत करने का भाव देता है।
उसके अनुसार महिलाओं की संख्याओं में पर्याप्त भागीदारी हो रही है और आतंकी समूह की मंशा एक साझी विचारधारा और संरचना के अंतर्गत सदस्यों को एक करने की है और साथ ही वह आतंकी संगठन से जुड़ी महिलाओं को मजहबी रवायतों को अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहता है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि मसूद अज़हर यह भी कह चुका है कि जो भी मुस्लिम महिला उसके साथ जुड़ती है, वह अपनी मौत के बाद सीधे जन्नत जाएगी। और उसने यह भी कहा था कि "जैश के दुश्मनों ने हिंदू महिलाओं को सेना में भर्ती कर लिया है और महिला पत्रकारों को हमारे खिलाफ खड़ा कर दिया है।"
आतंकी की महिला विंग के प्रति विमर्श में एक बार फिर से चुप्पी
जब भी मुस्लिम महिलाओं के इस प्रकार से आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने की बातें आती हैं तो विमर्श में सहसा चुप्पी सध जाती है। यह चुप्पी बहुत ही सिलेक्टिव है, यह मुस्लिम महिलाओं को कट्टर होने से रोकने वाली गतिविधियों का विरोध करने पर तो उठती है, मगर जिस प्रकार से आतंकी संगठन उन्हें अपना निशाना बना रहा है, उस पर कोई भी विमर्श नहीं हो रहा है।
क्या भारत के कथित महिला विमर्श के अगुआ लोगों की ओर से भारत की मुस्लिम महिलाओं को यह संदेश नहीं देना चाहिए कि वे किसी भी आतंकी संगठन से दूर रहें? उन्हें यह विमर्श नहीं चलाना चाहिए कि कोई डॉ0 शाहीन दोबारा न हो? परंतु दुर्भाग्य यह है कि ऐसा होता नहीं है और हो भी नहीं रहा है।
लेखिका - सोनाली मिश्रा