गोरखपुर। गोरखपुर लोकसभा सीट पर गोरक्षपीठ की दस्तक 1962 में देश के तीसरे आम चुनाव में हुई, जब गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने इस सीट से अपनी दावेदारी पेश की। इस साल गोरखपुर की जनता को एक नया नेता मिला था, हालांकि इस चुनाव में महंत दिग्विजयनाथ 3,260 वोटों से कांग्रेस के उम्मीदवार सिंहासन सिंह से हार गए थे। इसके बावजूद हिंदू महासभा के प्रत्याशी के रूप में उन्होंने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी।
इस समय गोरखपुर की सीट ने पूरे देश के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था। साल 1967 में दिग्विजयनाथ गोरखपुर संसदीय सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरे और उन्होंने कांग्रेस के विजय रथ को रोक दिया था। अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 42,000 से अधिक वोटों से पराजित किया। महंथ दिग्विजयनाथ का 1969 में निधन हो गया, जिससे यह सीट खाली हो गई।
वर्ष 1970 में यहां उपचुनाव हुआ और गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ बतौर निर्दल प्रत्याशी मैदान में उतरे और विजयी रहे। साल 1971 के आम चुनावों में यह सीट फिर से कांग्रेस के पाले में चली गई और नरसिंह नारायण पांडेय सांसद बने। अवैद्यनाथ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी महासमर में उतरे थे। इसी बीच देश को इमरजेंसी का दंश झेलना पड़ा। इमरजेंसी खत्म होने पर 1977 में हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के टिकट पर हरिकेश बहादुर सांसद बने।
1989: गोरक्षपीठ के दबदबा की शुरुआत
वर्ष 1977 में हुए चुनाव में गोरक्षपीठाश्वर महंत अवेद्यनाथ चुनाव नहीं लड़े थे। इसके बाद के आम चुनावों में भी गोरक्षपीठ ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। फिर आया साल 1989 और इस साल से गोरक्षपीठ ने गोरखपुर संसदीय सीट की दिशा ही बदल दी। गोरक्षपीठ के दबदबा की भी शुरुआत यहीं से हुई। राम मंदिर आंदोलन के अगुवा रहे अवैद्यनाथ पुनः चुनावी मैदान में उतरे। हिंदू महासभा के टिकट पर दूसरी बार सांसद बने। साल 1991 में देश पूरी तरह से राम लहर में डूबा हुआ था। महंत अवैद्यनाथ इस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनावी रण में थे। जनता दल के उम्मीदवार शारदा प्रसाद रावत को 91,359 मतों के भारी अंतर से परास्त कर कमल खिलाने में सफल हुए थे। वर्ष 1996 में अवैद्यनाथ भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर लगातार तीसरी बार सांसद बने।
1998: गोरखपुर संसदीय सीट से निकला देश का फायरब्रांड नेता
1998 के लोकसभा चुनाव में इस संसदीय सीट ने देश को एक फायरब्रांड नेता दिया। जिसने पूरे विश्व में हिन्दुत्व का परचम लहराया। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ बतौर भाजपा उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे गए और समाजवादी पार्टी के जमुना निषाद को परास्त किया। मंदिर के करीबियों में शुमार जमुना तब तक बागी हो गए थे। इस जीत के साथ ही योगी आदित्यनाथ देश के सबसे कम उम्र के सांसद बन चुके थे। उस समय उनकी उम्र 26 वर्ष थी। योगी आदित्यनाथ के मैदान में आने के बाद से ही गोरखपुर सीट पर 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 लगातार पांच बार भाजपा का कब्जा रहा। इस समय तक योगी के आलोचक भी मानने लगे थे कि गोरक्षपीठ के दबदबा वाली सीट से आदित्यनाथ को हरा पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
1989 से लेकर वर्ष 2018 तक लगातार 29 वर्षों तक गोरखपुर लोकसभा सीट पर गोरक्षपीठ का दबदबा बना रहा। हालांकि योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2018 में यहां हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद विजयी रहे। प्रवीण निषाद ने भाजपा उम्मीदवार उपेंद्रदत्त शुक्ल को हराया।