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कोरोना से ज्यादा कोरोना के भूत का तांडव

Update: 2020-03-28 14:50 GMT

विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। कोरोना से ज्यादा उसका भूत तांडव मचा रहा है। चारों ओर कोहराम मचा हुआ है, त्राहिमाम त्राहिमाम हो रही है।

बीमार लोगों की स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय है। कोई भी डाॅक्टर हो या अस्पताल बीमारों को टरका रहे हैं चाहे कितनी भी गंभीर हालत क्यों ना हो।सरकारी अस्पताल के डाॅक्टर मरीजों से कह रहे हैं कि 3 मीटर दूर रहो, भला ऐसे कैसे डाॅक्टर देख लेगा बगैर नाड़ी देखें। बड़े अस्पताल नयति या केडी आदि अब सरकार के नियंत्रण में है। वहां के चिकित्सक किसी को भर्ती करना तो दूर देखने व जांच करने तक से कन्नी काट रहे हैं।

निजी चिकित्सकों व अस्पतालों की ओपीडी बंद करा दी गई है। गर्भवती महिलाएं प्रसव के लिए भटक रही हैं। गंभीर केस भगवान भरोसे हैं। कुछ दम तोड़ रहे हैं और कुछ सिसक रहे हैं। ऐसा हाहाकार कभी सोचा भी न था।

अगर यही स्थिति रही तो अराजकता फैल जाएगी तथा लूटपाट का तांडव मचेगा जिसकी शुरुआत गत दिवस शहर के थोक मार्केट लाला गंज में देखने को मिल चुकी है। वहां एक दुकानदार के यहां कुछ लोग सामान लूट कर ले गए। हल्ला गुल्ला मचा पुलिस आई, बाद में मामला रफा-दफा हो गया।

कोराना से लोगों को बचाने के चक्कर में लोगों का जो उत्पीड़न हो रहा है वह अत्यंत दुखद है। पहले सुबह-शाम बाजारों से खरीददारी का समय निर्धारित किया, फिर केवल सुबह का ही कर दिया, फलस्वरूप अब भीड़ एक साथ टूटती है।

इससे भी ज्यादा भयंकर स्थिति जीव-जंतुओं पशु पक्षियों की है। कुत्ते-बंदर आदि भूख से छटपटा रहे हैं। पहले तो लोग उन्हें खाने को कुछ ना कुछ डालते थे तथा खान-पान की दुकानों के खुलने से झूठन आदि से पेट भर लेते थे। अब तो यह भी सब बंद है। बेसहारा गायों की स्थिति तो बड़ी दुखद है। बेचारी इधर-उधर रंभाती भटक रही है। पहले लोग पक्षियों को चुगा डालते थे, अब तो वह भी बंद है क्योंकि दिन भर घर में बंद रहते हैं और थोड़ा सा समय मिलता है। उसमें अपनी रोजमर्रा की वस्तुओं की खरीद आदि में लग जाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 21 दिन का लाॅकडाउन तो अच्छी नियत से किया था किंतु उसका रिजल्ट आशा के विपरीत जाता दिखाई दे रहा है। अब जबकि करोड़ों लोग तथा पशु-पक्षी त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं, ऐसी स्थिति में इसके बारे में पुनर्विचार करना चाहिए।

जरा सोचिए दक्षिण कोरिया तो चीन के निकट है, वहां लाॅकडाउन वगैरा कुछ भी प्रतिबंध नहीं है। उसके बावजूद भी वहां कोरोना का होवा नहीं है तथा स्थिति एकदम नियंत्रण में है। लाॅकडाउन ना होता तो हमारे देश में शायद इतना हाहाकार नहीं मचता जितना अब मच रहा है।

जैसे शासन ने बसों की व्यवस्था शुरू करके पलायन करने वालों को अपने गंतव्य तक पहुंचाने की जो राहत प्रदान की है, वैसे ही लाॅकडाउन से भी राहत पहुंचाने का कार्य भी करना चाहिए क्योंकि यदि लूटपाट और अराजकता फैल गई तो संभाले नहीं संभलेगी।

कोरोना के भूत ने जो कोहराम मचाया है उससे जिंदे लोग मरे लोगों से भी ज्यादा बदतर जिंदगी जी रहे हैं। इसका कारण नरेंद्र मोदी नहीं बल्कि नीचे की मशीनरी है जो गलत तरीके से आदेशों का कार्यान्वयन कर रही है। जब चाहा जैसा तुगलकी फरमान जारी कर दिया। इस समय जनता महंगाई की मार तो झेल ही रही है, साथ ही ऐसी नारकीय जिंदगी जी रही है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। जैसे एक बकरी को झटके में काट कर मार दिया जाता है और दूसरे बकरे को धीरे धीरे काटकर मारा जाता है, वह बड़ा क्रूर और भयानक होता है। ठीक ऐसी स्थिति जनता की हो रही है।

लोग कह रहे हैं कि यह सब जनता के भले के लिए हो रहा है, लेकिन इसका क्रियान्वयन गलत तरीके से है। जब सही था तो फिर अब बसें चला कर पलायन करने वालों को क्यों अपने गंतव्य तक भेजा जा रहा है? पहले तो सरकार तैयार नहीं थी और कह रही थी कि यह लोग जहां जाएंगे वहां कोरोना भी फैलाऐंगे। अब कोरोना नहीं फैलाऐंगे? अब तो खुद सरकार ही भेज रही है बसें चलवा कर।

उदाहरण के रूप में एक बात और बताना चाहता हूं कि मथुरा में एक निजी नलकूप है जिसका नाम नवल नलकूप है। उससे लगभग आधा शहर अपनी प्यास बुझाता है। इस बात को सभी भलीभांति जानते हैं। आज सुबह सात बजे से ग्यारह बजे के बीच में जब खरीददारी के लिए आवागमन खोल रखा था। वहां पर पानी लेने के लिए आने वालों को कुछ खिसियाऐ पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ लठिया कर भगाया बल्कि जो पानी भर कर जा रहे थे उनका पानी भी आर्य समाज तिराहे पर सड़क पर फैलवा दिया।

इस संबंध में जब किसी अधिकारी का फोन नहीं उठा तो फिर एक सामाजिक व्यक्ति ने ब्रज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष श्री शैलजाकांत मिश्र को फोन करके इस बात की जानकारी दी तो उन्होंने तुरन्त वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को फोन किया, तब इसके बाद फिर तुरन्त पुलिस ने पानी भरने वालों को खदेड़ना बंद कर दिया। बस इसी से समझ लो कि क्या-क्या हो रहा है, कोरोना के नाम पर हो रहे कहर में। 

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