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योगी सरकार को लगा झटका, हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से SC का इनकार

Update: 2020-03-12 08:56 GMT

लखनऊ/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए होर्डिंग लगाने के फैसले पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाएगी, जिसमें यूपी के अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वो सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर को हटाए। उपयुक्त पीठ अगले हफ्ते मामले की सुनवाई करेगी। कोर्ट ने कहा कि हम सरकार की चिंता समझ सकते हैं, लेकिन कोई भी ऐसा कानून नहीं, जिससे आपके होर्डिंग लगाने के निर्णय को समर्थन किया जा सके।

आपको बताते जाए कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लखनऊ में हुई हिंसा व तोड़फोड़ के आरोपियों के शहर में लगाए गए पोस्टर को हटाने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ यूपी सरकार उच्चतम न्यायालय पहुंची है।

उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पक्ष रखते हुए कहा कि एक शख्स जो प्रदर्शन के दौरान बंदूक चलाता है और कथित तौर पर हिंसा में शामिल है। वह निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। इलाहाबाद उच्च न्यायालय से आदेश पारित करते हुए गलती हुई है।

इस पर न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस ने तुषार मेहता से पूछा कि वह अधिकार कहां है? जिसके तहत यूपी सरकार ने लखनऊ में नागरिकता कानून के खिलाफ कथित आगजनी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की। शीर्ष अदालत ने पाया कि यूपी सरकार ने होर्डिंग्स पर कथित आगजनी करने वालों का ब्योरा देने के लिए यह (कठोर) कदम उठाया था। अदालत ने कहा कि वह राज्य की बैचेनी को समझ सकता है लेकिन निर्णय को वापस लेने के लिए उसके पास कोई कानून नहीं है। न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या उसके पास ऐसे पोस्टर लगाने का अधिकार है।

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि फिलहाल ऐसा कोई कानून नहीं है जो आपकी इस कार्रवाई का समर्थन करता हो।

लखनऊ होर्डिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी पेश हुए। सिंघवी ने कहा कि दारापुरी 72 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं, जो आईजी के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह की नीति अपनाई जाएगी तो रोड पर चलते फिरते व्यक्ति को कोई भी लिंच कर देगा।

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