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मायावती की महत्वाकांक्षा अखिलेश के लिये बड़ी चुनौती

Update: 2018-09-22 10:08 GMT

लखनऊ/स्वदेश वेब डेस्क। समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) के प्रस्तावित गठबन्धन की अटकलों के बीच मायावती की अति महत्वाकांक्षा ही अब अखिलेश यादव के लिये चुनौती बनती जा रही है।

बसपा अध्यक्ष सुश्री मायावती की महत्वाकांक्षा को देखते हुये गठबन्धन होने या नहीं होने को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। हालात यह है कि राजनीतिक हल्कों में अब लाख टके का सवाल बन गया है कि मायावती सपा से गठबन्धन करेंगी या नहीं। उधर सपा अध्यक्ष हर हाल में गठबन्धन पर उतारू हैं। वह मायावती की हर शर्त मानने को तैयार दिख रहे हैं। उन्होंने कई बार कहा कि वह बसपा से गठबन्धन करेंगे चाहे उन्हें कम सीटों पर ही क्यों न लड़ना पड़े। सपा के लोग मायावती की ओर उम्मीद भरी नजर से देख रहे हैं। दूसरी ओर बसपा सुप्रीमो अपने पत्ते ही नहीं खोल रहीं हैं।

लोकसभा के पिछले चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतने वाली बसपा की अध्यक्ष मायावती इस बार काफी फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। वह 2019 ही नहीं 2022 के लिये भी खुद और अपनी पार्टी को तैयार रखना चाहती हैं। 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव प्रस्तावित है।

राजनीतिक विश्लेषक राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि सुश्री मायावती भाजपा और कांग्रेस से इतर अलग बनने वाले मोर्चे की नेता भी बनना चाहती हैं। इसके लिये वह लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहती हैं। इसीलिये उन्होंने छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) और हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से समझौता किया है। उनके मन में प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पनप रही है।

श्री सिंह ने कहा कि बसपा अध्यक्ष ने चौटाला और जोगी की पार्टी से समझौता कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इन समझौतों से वह अखिलेश यादव पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर उन्हे अपनी शर्तों पर गठबन्धन के लिये मजबूर करना चाहती हैं। सपा अध्यक्ष के सामने उनके चाचा और नवगठित समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के मुखिया शिवपाल यादव भी राजनीतिक समस्या बनते दिख रहे हैं।

सेक्युलर मोर्चे में 22 से अधिक छोटे छोटे संगठन शामिल हो चुके हैं। चुनाव में मोर्चे के ज्यादातर उम्मीदवार यादव और मुस्लिम बनाये जा सकते है। आमतौर पर यादव और मुस्लिम ही सपा के मतदाता माने जाते हैं।

सपा अध्यक्ष के नजदीकी भी मानते हैं कि सुश्री मायावती की महत्वाकांक्षा और शिवपाल से मिल रही चुनौती को देखते हुये यह कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव अखिलेश यादव के लिये अग्नि परीक्षा से कम नहीं हैं। यही अग्नि परीक्षा 2022 में भी उनके और उनकी पार्टी के लिये निर्णायक साबित होगी। 

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