योग-आयुर्वेद को कमतर आंकने का कुत्सित प्रयास नहीं चलेगा

भारतीय चिकित्सा पद्धतियां किसी भी मायने में पीछे नहीं हैं, बल्कि भारत ने चिकित्सा क्षेत्र में अखिल विश्व का हमेशा मार्गदर्शन ही किया है।

Update: 2021-05-28 07:10 GMT

लखनऊ/देहरादून (अतुल कुमार सिंह): योग गुरु स्वामी रामदेव के बयान से हमको कुछ लेना-देना नहीं है, उन्होंने क्या बोला? क्यों बोला? कैसे बोला? इसका उत्तर तो वही देंगे। पर आईएमए और स्वामी रामदेव विवाद पर इतना अवश्य कहना है कि योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों को कमतर आंकने के प्रयास बंद होने चाहिए। भारतीय चिकित्सा पद्धतियां किसी भी मायने में पीछे नहीं हैं, बल्कि भारत ने चिकित्सा क्षेत्र में अखिल विश्व का हमेशा मार्गदर्शन ही किया है। यह कहना है श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरी जी महाराज का। उन्होंने शुक्रवार को स्वदेश से बात करते हुए योग एवं भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का पक्ष लिया।

श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर, जीवनदीप आश्रम, रुड़की के पीठाधीश्वर एवं दर्शन साधु समाज के अध्यक्ष स्वामी यतीन्द्रानन्द जी महाराज ने आईएमए और स्वामी रामदेव प्रकरण पर शुक्रवार को स्वदेश से लंबी बातचीत की। स्वामी यतीन्द्रानन्दजी ने फोन पर बताया कि विश्व के अंदर चिकित्सा के अनेक आयाम हैं। प्राकृतिक चिकित्सा, योग चिकित्सा, होम्योपैथ चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा, संगीत चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, एक्युपंचर। और न जाने कितनी प्रकार की चिकित्सा पद्धति विश्व में प्रचलित है। किसी भी पद्धति को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए।

स्वामी यतीन्द्रानन्द ने बताया कि सबसे बड़ी चिकित्सा पद्धति श्रेष्ठ लोगों की प्राथनाएं। इनमें से किसी भी पद्धति को हम नकार नहीं सकते। सभी का अपना महत्व है और सभी के चमत्कारिक परिणाम भी प्राप्त होते रहते हैं। इसके बावजूद हमारा मानना है आयुर्वेद अपने आप में पूर्ण है। आयुर्वेद मानव चिकित्सा के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था है। इसलिए भारतवर्ष के सर्वोच्च चिकित्सा केंद्र का नाम अखिल भारतीय आयुर्वेद एवं चिकित्सा संस्थान रखा गया। शल्य चिकित्सा आधुनिक पद्धति नहीं है आधुनिक चिकित्सा को एलोपैथी कहते हैं। शल्य चिकित्सा एलोपैथी की खोज नहीं है। यह जरूर है कि एलोपैथी ने काफी गहराई तक कार्य किया है, पर शल्य चिकित्सा पौराणिक व्यवस्था है। पौराणिक ग्रंथों में शल्य चिकित्सा के बारे में गहरे सूत्र लिखे गए हैं। पौराणिक समय में प्रयोग भी होते रहे हैं और आज वही प्रयोग दोहराए जा रहे हैं।

स्वामी यतीन्द्रानन्द ने, लाभ हानि जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ की उक्ति को दोहराते हुए कहा कि, किसी को जीवन देना अथवा जीवन से हाथ धोना यह ईश्वर के हाथ में है। चिकित्सा केवल रोग के निदान का प्रयास हो सकता है, जीवन और मृत्यु का नहीं।

आज भारत में 5 लाख गांव हैं। छोटे बड़े मिलाकर 5 हजार शहर और कस्बे होंगे। डेढ़ सौ करोड़ की आबादी में से आज भी लगभग 100 करोड़ की आबादी ग्रामीण क्षेत्र में है। वनांचल में है। पहाड़ों पर है। उनकी चिकित्सा का प्रबंध आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा अथवा जिनको हम झोलाछाप कहते हैं उनके माध्यम से होती है। यह पद्धति आज भी बहुत सस्ती है। एलोपैथिक पद्धति को भी नकारा नहीं जा सकता। उसने भी आधुनिक चिकित्सा क्षेत्र में बहुत परिणामकारी कार्य किए हैं। तात्कालिक लाभ आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था से ही संभव है। सभी चिकित्सा व्यवस्थाओं का अपना महत्व है। योग गुरु स्वामी रामदेव और बालकृष्ण को भी जौलीग्रांट अस्पताल और एम्स में भर्ती होना पड़ता है। एम्स रोगियों को भी आयुर्वेदिक जड़ी, बूटी, हल्दी, गिलोय, अश्वगंधा, काढ़ा का उपयोग योग की सलाह देता है।

स्वामी यतीन्द्रानन्द ने कहा कि आईएमए और स्वामी रामदेव का विवाद अब समाप्त होना चाहिए। एलोपैथी में जिस प्रकार रोगी के साथ जांच एवं परीक्षण के नाम पर लूटमार है, वह बंद होनी चाहिए। डॉक्टर बनने की महंगी चिकित्सा शिक्षा भी सरल होनी चाहिए। दो प्रकार के चिकित्सक होने चाहिए एक जो सहज, सरल, हल्के-फुल्के रोगों का समाधान कर सकें। दूसरे प्रकार के चिकित्सक गंभीर रोगों के लिए होने चाहिए। इससे पहले भी छोटे-मोटे कस्बों में एमबीबीएस डॉक्टर बैठते थे, एमडी बैठते थे रोगियों को देखकर दवा देते थे, उनकी चिकित्सा करते थे और एक निश्चित राशि फीस के रूप में लेते थे। जन सामान्य भी उसे इलाज करा लेता था। काफी गरीब लोगों का वह ऐसे ही इलाज कर देते थे।

स्वामी यतीन्द्रानन्द ने बताया कि वर्तमान में एलोपैथिक क्षेत्र में बड़ा व्यवसायिक प्रबंध काम कर रहा है। बड़े-बड़े अस्पताल बन गए हैं। 5 स्टार, 7 स्टार होटल जैसे प्रबंधन में इलाज जरूर करते हैं पर उसी का हो पाता है, जिसकी जेब बहुत मोटी हो। आज बड़े-बड़े अस्पताल और चिकित्सा क्षेत्र में बीमा कंपनियों का मोटा कारोबार खड़ा हो गया है। इस पर चोट करने की आवश्यकता है। वैद्य हो या डॉक्टर दोनों को ही समाज ने भगवान का दर्जा दिया है। दोनों का ही सम्मान है। दोनों ही अपनी उदारता और कर्तव्यनिष्ठा के साथ चिकित्सा के क्षेत्र को व्यवसाय न बनाकर सेवाक्षेत्र बनाएं ऐसा निवेदन है।

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