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यह कृषि आय है या काली आय ?

Update: 2019-11-07 13:46 GMT

विगत दिनों अखबारों में छपा था कि सहायक आबकारी आयुक्त के निवास स्थानों से अरबों की सम्पत्ति का खुलासा हुआ है, जिस संपत्ति का स्रोत फार्म हाउस में फलों की फसल से प्राप्त आमदनी के रुप में बताया गया है। यह कार्य उनकी धर्म पत्नी ने किया है। बात कितनी सही है, यह तो जांच में पता चल सकेगा, लेकिन असल में कृषि आय बताकर भ्रष्टाचार की आय को सफेद किया गया है। बिना कर चुकाए यह सब उसी तरह है, जैसे कि देश के कर चोरों ने अपनी आय को स्विस बैंकों में जमा कर कालेधन का पहाड़ खड़ा कर लिया है।

ऐसा करने में सरकार ने भी कर चोरों को पूरा सहयोग किया है। सरकार ने नेताओं, अधिकारियों, चिकित्सकों, इंजीनियरों और व्यापारियों की भ्रष्टाचार की कमाई को छिपाने के लिए ऐसा किया है। आयकर अधिनियम में प्रावधान किया है कि अनाज, सब्जी, फल, अण्डे, डेयरी आदि की आय को कृषि आय माना है, जो कर मुक्त मानी गई है। इस प्रावधान की आड़ में भ्रष्टाचारी अपनी कर योग्य आय को कृषि आय बता रहे हैं। अर्थात सरकार का भी पूरा सहयोग है। नेताओं ने चुनावी घोषणा पत्रों में भी अपनी पूंजी का स्रोत कृषि आय ही बताया है। उल्लेखनीय है कि खेती करने वाला किसान तो खून पसीना बहाकर भी भूखा है और आत्महत्या कर रहा है, जबकि खेती कराने वाले करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति इकट्ठा कर रहे हैं। ऐसे प्रावधान इसलिए नहीं हटाए जाते, क्योंकि इसका सबसे ज्यादा लाभ नेता और अफसर ही उठाते हैं। यह लोग ही ऐसे कानून बनाने वाले हैं। पिछले वर्षों में इस कानून को खत्म करने की मांग उठी थी, लेकिन भ्रष्टाचार के गठजोड़ से यह मांग दबा दी गई है। मोदी सरकार के वित्त मंत्री से अनुरोध है कि कालेधन को बढ़ावा देने वाले इस प्रावधान को जल्दी से जल्दी खत्म करें। इसको खत्म करने से किसान को कोई नुकसान नहीं होगा। चूंकि खून पसीना बहाने वाले किसी भी किसान की आय सालाना पांच लाख से ज्यादा नहीं है। पांच लाख तक की आय कर योग्य नहीं है। इसी में देश का हित है।

- ओम प्रकाश अग्रवाल, एन 30 गांधी नगर, ग्वालियर

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