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नूरपुर - दलित उत्पीड़न पर दलित नेता और दलित चिंतक मौन क्यों?

अनुभव चक

Update: 2021-06-09 17:09 GMT
नूरपुर गांव

उत्तरप्रदेश में अलीगढ़ जनपद के टप्पल थानाक्षेत्र के अंतर्गत नूरपुर गांव स्थित है।गांव मुस्लिम बाहुल्य है जिसमें लगभग 800 मुस्लिम परिवार व 125 जाटव(अनुसूचित जाति) अर्थात हिंदू परिवार रहते हैं।मुस्लिम बाहुल्य होने के नाते यहां पर भी मुस्लिमों का व्यवहार अनुसूचित जाति के लोगों के प्रति वैसा ही है,जैसा अमूमन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में गैर मुस्लिमों के प्रति रहता है।

नूरपुर की घटना

नूरपुर गांव में रहने वाले दलितों के यहां होने वाले शादी ब्याह में आये दिन वहां के मुस्लिम समाज के लोग व्यवधान डालने का काम करते थे।मारापीटी और छेड़छाड़ करना रोज की बात हो गयी थी।इसी क्रम में 26 मई 2021 को नूरपुर गांव निवासी अनुसूचित जाति के ओमप्रकाश जाटव की 2 पुत्रियों की बारात चढ़ रही थी।बारात में बैंड बाजे और डीजे की धुन पर नाचते हुए बाराती जैसे ही नूरपुर की मस्जिद के सामने से गुजरे,मुस्लिम समाज के युवकों ने अचानक से बारात पर हमला बोल दिया और बारात में शामिल पुरुषों से मारपीट की,महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई और जिस गाड़ी में डीजे बज रहा था उसे तोड़ दिया गया।

उत्पीड़न से त्रस्त दलितों का निर्णायक कदम

मुस्लिमों द्वारा आये दिन अपने ऊपर ढाए जा रहे जुल्म से त्रस्त होकर नूरपुर निवासी दलितों ने जुल्म के खिलाफ संघर्ष करने का साहसिक निर्णय लिया और टप्पल थाने में दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने हेतु प्रार्थनापत्र दे दिया।परन्तु वहां के थानाप्रभारी ने दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं करी।ऐसे में नूरपुर निवासी अनुसूचित जाति के परिवारों ने मुस्लिमों द्वारा किये जा रहे जातीय व धार्मिक उत्पीड़न से त्रस्त होकर मजबूरन गांव से पलायन करने का निर्णय लिया और अपने-2घरों पर "ये घर बिकाऊ है" लिखवा दिया।ये खबर जैसे ही मीडिया और सोशल मीडिया पर सुर्खियां बनी वैसे ही न सिर्फ अलीगढ़ बल्कि लखनऊ और दिल्ली तक में हड़कम्प मच गया।

नूरपुर घटना पर बसपा सुप्रीमो मायावती मौन क्यों?

नूरपुर में हुई दलित उत्पीड़न की ये घटना खबरों की सुर्खियों में लगातार बनी हुई है।उत्तरप्रदेश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी सपा का मुस्लिम प्रेम और दलित विरोध तो जगजाहिर है।ऐसे में इस घटना पर अखिलेश यादव का बयान न आना कोई हैरत पैदा नहीं करता।

बसपा दूसरे नम्बर का प्रमुख विपक्षी दल है और बसपा सुप्रीमों मायावती उत्तरप्रदेश का सबसे बड़ा दलित चेहरा हैं।दलितों की दम पर वो अपनी रैलियों में लाखों की भीड़ जुटाती रही हैं और उन रैलियों में गर्व के साथ स्वयं को "दलित की बेटी"और उससे भी आगे बढ़ते हुए "जाटव की बेटी"कहकर दलितों की(विशेषकर स्वजातीय) सहानुभूति और समर्थन भी जुटाती रही हैं।दलितों के द्वारा मायावती को दिए गए पूर्ण समर्थन और समर्पण के कारण ही वह उत्तरप्रदेश जैसे विशाल सूबे की चार-2 बार मुख्यमंत्री बनने में भी सफल रहीं।पर आज जब उन्हीं दलितों पर मुस्लिमों द्वारा जुर्म ढाया गया तो सब कुछ देखने और जानने के बाद भी बसपा सुप्रीमों मायावती दलित उत्पीड़न की इस वीभत्स घटना पर मौन साधे हैं।

वैसे ये बात अब सर्वविदित है कि बसपा सुप्रीमों मायावती का दलित प्रेम सिर्फ और सिर्फ उनकी स्वजाति(जाटव) तक ही सीमित है।लेकिन इस घटना में पीड़ित उनके स्वजातीय होने के बावजूद न तो मायावती ने दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग की,न बसपा प्रतिनिधिमंडल नूरपुर भेजा और तो और घटना की निंदा करने की भी जरूरत नहीं समझी। ऐसा करके मायावती ने मुस्लिमों को ये सन्देश देने का प्रयास किया है कि बसपा से बड़ी मुस्लिमहितैषी पार्टी और कोई नहीं है।मुस्लिमों के आपराधिक कृत्यों को छुपाने और दबाने के लिये दलितों के उत्पीड़न को नजरअंदाज करने की जरूरत पड़ी तो उसके लिए भी मायावती तैयार हैं। 

इतनी बड़ी घटना पर भी मुस्लिम वोटों को हासिल करने के लालच में बसपा सुप्रीमो द्वारा साधा गया मौन अति निंदनीय है एवं न सिर्फ दलित बल्कि जाटव समाज के विश्वास पर भी गहरा आघात है।

"जय भीम-जय मीम"नारा लगाने वाले आज कहाँ हैं?

येन-केन-प्रकारेण सत्ता में अपनी भूमिका की चाह रखने हेतु "जय भीम-जय मीम" के नारे को समय-2 पर गुंजायमान करते रहने वाले चंद छद्म अम्बेडकरवादी नेता(पी.एल.पुनिया, उदितराज,भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर) एवं अम्बेडकरवाद और वैचारिक क्रांति की आड़ में समाज को विघटित करने हेतु अपनी लेखनी का निरन्तर प्रयोग कर रहे दिलीप मंडल जैसे स्वघोषित समाजसेवी भी इस घटना पर चुप्पी साधे बैठे हैं,बोलने से बच रहे हैं।

किसी भी घटना को जातीय उत्पीड़न का रंग देने में महारथ हासिल कर चुके भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के गांव से तो अलीगढ़ की दूरी बामुश्किल 200 किमी है।लेकिन इतना सब होने के बावजूद दलित हितैषी होने का ढोंग करने वाले इस चंद्रशेखर ने नूरपुर गांव जाकर मुस्लिमों को समझाने की अथवा उनपर कठोर कार्यवाही सुनिश्चित करने की मांग करने जैसी कोई कोशिश नहीं की।

ओवैसी की भूमिका

इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी लगभग 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटों के लालच में एकतरफ जहां सभी दलित नेता इस घटना पर चुप्पी साधे रहे,वहीं दूसरी तरफ दलित वोटों के लालच में मीडिया और रैलियों में बाबासाहब की शान में कसीदे पड़ने वाले कट्टरवादी मुस्लिम नेता ओवैसी की पार्टी इस मुद्दे पर चुप नहीं रही।ओवैसी की पार्टी AIMIM के युवा विंग के प्रदेश अध्यक्ष सैयद नाजिम अली ने बयान जारी कर सरेआम धमकी दी कि-नूरपुर में नमाज तो आगे भी होती रहेगी,पर हम बिना अनुमति के दलितों और हिंदुओं को बारात किसी हाल में चढ़ाने नहीं देंगे।भले ही उनके समर्थन में कोई आ जाये और वो कितने भी हथियार लेकर आ जाएँ।अपने बड़बोले युवा नेता के विघटनकारी इस बयान पर उसे अपनी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की जगह AIMIM सुप्रीमो ओवैसी भी चुप्पी साधे है।ऐसा करके ओवैसी भी कहीं न कहीं अपने बड़बोले युवा नेता को ही मौन समर्थन करता दिख रहा है।

जोगिंदर नाथ मंडल से सबक सीखने की जरूरत

सर्वविदित है कि पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री स्व.जोगिन्दर नाथ मंडल एक दलित थे।मंडल जी भी इस थ्योरी पर विश्वास रखते थे कि मुस्लिम कभी भी दलितों पर अत्याचार नहीं करेंगे और इसलिए दलितों का भविष्य भारत देश के मुकाबले पाकिस्तान में ज्यादा बेहतर होगा।बंटवारे के वक्त न सिर्फ जोगिन्दर नाथ मंडल जी पाकिस्तान में जाकर बस गए बल्कि उनकी थ्योरी पर विश्वास करके लाखों अन्य दलित भी पाकिस्तान में बस गए।जोगिन्दर नाथ मंडल और वहां बसे दलितों के साथ पाकिस्तान में मुस्लिमों ने जो अत्याचार किये वो किसी से छुपे नहीं हैं।

सबकुछ जानने के बाद भी महज अपनी राजनीति चमकाने के लिए "जय भीम-जय मीम" का नारा बुलन्द करने वाले चंद स्वार्थी विघटनकारी लोग न सिर्फ दलित समाज के अपितु सम्पूर्ण "हिन्दू"समाज के भी यकीनन सबसे बड़े दुश्मन हैं।ऐसे में सम्पूर्ण समाज की बेहतरी के लिये इन स्वार्थी चेहरों को चिह्नित करके उन्हें समाज से बहिष्कृत करने की सख्त आवश्यकता है।

इसके साथ ही साथ उत्तरप्रदेश सरकार से भी अपेक्षित है कि वो किसी बेटी की बारात न चढ़ने देने जैसी समाज को शर्मसार करने वाली घटना को अंजाम देने वाले दोषियों पर रासुका की कार्यवाही करें।साथ ही साथ दोषियों के समर्थन में अपना बयान जारी कर न सिर्फ दलितों बल्कि समस्त हिंदुओ को धमकाने का प्रयास करने वाले AIMIM युवा विंग के प्रदेश अध्यक्ष सैयद नाजिम अली पर भी समाज मे भय पैदा करने के कुत्सित प्रयास करने हेतु रासुका की कार्यवाही करें।ऐसी कार्यवाही से निश्चित ही ऐसा कुकृत्य करने वालों का और ऐसी सोच रखने वालों का मनोबल निश्चित ही टूटेगा।जिससे भविष्य में फिर कभी कोई,किसी की भी बहिन-बेटी की बारात को चढ़ने देने से रोकने का दुःसाहस और कोई न कर सके।


लेखक-अनुभव चक (स्वतंत्र विचारक,राजनैतिक विश्लेषक व मीडिया पैनलिस्ट)

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