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भाग-13 / पितृपक्ष विशेष : वेदव्यास - एक दिव्य दृष्टा आद्य संपादक

महिमा तारे

Update: 2020-09-20 13:01 GMT


वेदव्यास एक ऐसे ऋ षि माने जाते हैं जिन्होंने वेदों का संपादन किया। वेदव्यास ने ही सबसे पहले वेदों को व्यवस्थित रूप प्रदान किया। इन्हें कृष्ण द्वैपायन व्यास भी कहते हैं साथ ही बद्रीनाथ में आश्रम होने के कारण 'बाद्रीयणÓ भी कहलाए।

नारद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक ही पुराण था जिसका विस्तार 100 करोड़ श्लोकों में था। उसमें से चार लाख श्लोकों का संग्रह कर 18 भागों में विभक्त कर वेदव्यास ने 18 पुराणों की रचना की। इसी तरह वेदों की सारी ज्ञान ऋ चाएं, श्लोक भी एक ही ग्रंथ में समाहित थी इनको भी चार भागों में वर्गीकृत कर चार वेदों की रचना की जो आज ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, के नाम से जाने जाते हैं।

चार वेदों का विभाजन किया और वेदों को समझाने के लिए ब्रह्म सूत्र की रचना की। ब्रह्म सूत्र यानी जो वेदों में ज्ञान है उसे ही सूत्र रुप में लिखकर समझाना। जिससे कि थोड़े से शब्दों में ही परब्रह्म के स्वरूप का निरूपण किया जा सके। महाभारत युद्ध के वर्षों बाद ब्रह्मा जी वेद व्यास जी के बद्री आश्रम में आए और बोले कि तुमने महाभारत युद्ध प्रत्यक्ष देखा है। तो आप महाभारत में देखे हुए दृश्यों का सजीव चित्रण कर महाभारत लिख सकते है।

इस पर व्यास जी ने कहा कि मैं महाभारत लिखूंगा तो पर मुझे लेखक के रूप में गणेश जी की आवश्यकता होगी। इस तरह व्यास जी और गणपति ने महाभारत की रचना की। महाभारत को पांचवां वेद भी कहां जाता है। जिसमें गृहक्लेश, राजनीति, षड्यंत्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, भूगोल Óयोतिष शास्त्र, तत्व मीमांसा, कामशास्त्र के साथ साथ भौतिक जीवन की नि:सारता का गीता संदेश भी शामिल है। वेदव्यास ने 'व्यास स्मृतिÓ भी लिखी जिसमें सोलह संस्कारों का उल्लेख किया गया है। इसमें चार अध्याय में 250 श्लोक हैं। इस तरह वेदव्यास ने भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र और उपनिषद लिखे। उपनिषद यानी ब्रह्म जीव जगत का ज्ञान पाना ही उपनिषद की शिक्षा है।

17 पुराण लिखने के बाद भी जब ऋ षि वेदव्यास को आत्म संतोष नहीं हो रहा था तो उन्होंने नारद मुनि से प्रश्न पूछा कि इतना सब लिखने के बाद भी आत्मिक संतोष क्यों नहीं मिल रहा है? तब नारद ने उन्हें उत्तर देते हुए कहा कि कृष्ण स्मरण के बिना संतोष कहां मिलेगा। इस पर उन्होंने 18 वां पुराण भागवत पुराण लिखा। जिसमें सिर्फ भगवत की महिमा की ही चर्चा है।

ऋ षि वेदव्यास पाराशर ऋ षि और सत्यवती के पुत्र थे। धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर इनके पुत्र थे। व्यास जी के अनेक शिष्य हैं जिनमें वैशम्पायन, पैल, जैमिनी एवं सुमन्तू प्रमुख हैं। इन चार महर्षियों ने भिन्न-भिन्न दिशाओं में जाकर वेदों का प्रचार प्रसार किया।

महर्षि व्यास ने हमारे राष्ट्र की प्राचीन ज्ञान संपदा को जन-जन तक पहुंचाने का विलक्षण कार्य किया है। उन्हें हम विश्व का पहला याने आद्य सम्पादक भी कह सकते हैं। यही नहीं वह सिर्फ लेखक या संपादक ही नहीं थे, महाभारत में ऐसे कई प्रसंग है कि वह समय समय पर क्या करना और क्या नहीं करना इसकी सलाह और चेतावनी भी देते हैं और यह आगे चल कर प्रमाणित भी हुआ है कि वह भविष्य को पढ़ रहे थे और यह शक्ति उनमें थी ही जब वह दिव्य दृष्टि संजय को दे सकते थे तो भविष्य के गर्भ में क्या है यह वह जानते ही होंगे। ऐसे दिव्य दृष्टा संपादक को नमन।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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