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ऐसा है महाराष्ट्र मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का राजनीतिक सफर

Update: 2019-11-28 15:07 GMT

मुंबई। महाराष्ट्र में गुरुवार शाम शिवाजी पार्क में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह हुआ। यहां शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राज्य के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। बुधवार को गठबंधन के शीर्ष नेताओं के बीच मंत्रिमंडल पर महामंथन हुआ था। इसमें एनसीपी का उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस का विधानसभा स्पीकर बनाने पर सहमति बनी। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ गुरुवार को तीनों दलों के मंत्रियों ने शपथ ली। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक इसका पूरा फॉर्मूला तय हो गया है कि किस दल को कितने मंत्री पद मिलेंगे।

1966 में शिवसेना का गठन होने के बाद महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे और उनके परिवार की विशेष पहचान और रसूख कायम हो गया था। दूसरा कोई राजनीतिक परिवार ठाकरे परिवार की हैसियत के बराबर नहीं ठहर सका। इसका बड़ा कारण यह था कि सत्ता इस परिवार के इर्द-गिर्द नाचती रही, लेकिन परिवार ने उससे दूरी बनाए रखी। ऐसा पहली बार होगा कि सत्ता की कमान इस परिवार के किसी सदस्य के हाथ में होगी। अभी तक शिवसेना के दो बार मुख्यमंत्री अवश्य हुए हैं, लेकिन ठाकरे परिवार के नहीं। ये दो मुख्यमंत्री मनोहर जोशी और नारायण राणे थे।

महाराष्ट्र विधानसभा का विशेष सत्र बुधवार को शुरू हो गया है। प्रोटेम स्पीकर कालीदास कोलांबकर ने 288 सीटों वाली विधानसभा के सदस्यों को शपथ दिला रहे हैं। इससे पहले मंगलवार को उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

जब तक बाल ठाकरे राजनीति में सक्रिय रहे, उद्धव उनसे ही राजनीति की बारीकियां सीखते रहे। हालांकि वे राजनीति में कम सक्रिय थे। इस दौरान वे पार्टी के मुखपत्र सामना का काम देखते थे। फोटोग्राफी में भी हाथ आजमाया। 2002 में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के चुनाव में शिवसेना को मिली जोरदार जीत का श्रेय उद्धव को दिया गया। इसके बाद बाल ठाकरे ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी मान लिया। 2004 में उन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। इस फैसले ने सभी को चौंका दिया, क्योंकि उनके चचेरे भाई राज ठाकरे के मुकाबले कार्यकर्ताओं और लोगों के बीच उनकी पहचान कम थी। लोग राज ठाकरे को ही बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी मानते थे। बाला साहेब के इस फैसले से नाराज होकर राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी और अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली।

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले शिवसेना महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका में होती थी। इस साल राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के गठबंधन की जीत के बावजूद उद्धव अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं बनवा सके। 2019 में भी दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन सीएम पद के लिए उद्धव ने भाजपा से अलग जाने का फैसला कर लिया।

- मुख्य प्रचारक के रूप में 2002 में शिवसेना को बीएमसी चुनाव में जीत दिलाई।

- विदर्भ में कर्ज में डूबे किसानों के हक की लड़ाई लड़ने को अभियान चलाया।

- 2012 में एक बार फिर पार्टी को बीएमसी चुनाव में बड़ी जीत दिलाई।

- शिवसेना की आक्रामक छवि को बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हिंदी में हस्ताक्षर

सरकार के शपथ ग्रहण से करीब दो घंटे पहले तीनों दलों के गठबंधन 'महाविकास आघाड़ी' ने कामन मिनिमम प्रोग्राम (सीएमपी) जारी किया। इस सीएमपी पर उद्धव ठाकरे ने हिंदी में हस्ताक्षर किया है। सीएमपी की प्रस्तावना में सेकुलर मूल्यों पर जोर देने की बात कही गयी है।

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