दादी का बीजेपी वाला सपना पूरा करेंगे सिंधिया!

Update: 2020-03-10 05:41 GMT

भोपाल। मध्य प्रदेश की राजनीति के 'महाराज' यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार बगावत के मूड में हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से चार बार सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। हालांकि, अब कहा जा रहा है कि वह अपनी दादी विजयराजे सिंधिया के 'सपने' को साकार कर देंगे। जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में रहीं राजमाता के नाम से मशहूर विजयराजे सिंधिया चाहती थीं कि उनका पूरा परिवार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में लौट आए। आइए आपको बताते हैं कि सिंधिया परिवार और बीजेपी का क्या कनेक्शन है...

ग्वालियर पर राज करने वाली राजमाता विजयराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की। वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं। सिर्फ 10 साल में ही उनका मोहभंग हो गया और 1967 में वह जनसंघ में चली गईं। विजयराजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ यहां की तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा। खुद विजयराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने।

गुना पर सिंधिया परिवार का कब्जा लंबे समय तक रहा। माधवराव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद चुने गए थे लेकिन वह बहुत दिन तक जनसंघ में नहीं रुके। 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयराजे सिंधिया से अलग हो गए। 1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर केंद्रीय मंत्री भी बने।

दूसरी तरफ विजयराजे सिंधिया की बेटियों वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया ने भी राजनीति में एंट्री की। 1984 में वसुंधरा राजे बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं। वह कई बार राजस्थान की सीएम भी बन चुकी हैं। उनके बेटे दुष्यंत भी बीजेपी से ही राजस्थान की झालवाड़ सीट से सांसद हैं।

वसुंधरा राजे सिंधिया की बहन यशोधरा 1977 में अमेरिका चली गईं। उनके तीन बच्चे हैं लेकिन राजनीति में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। 1994 में जब यशोधरा भारत लौटीं तो उन्होंने मां की इच्छा के मुताबिक, बीजेपी जॉइन की और 1998 में बीजेपी के ही टिकट पर चुनाव लड़ा। पांच बार विधायक रह चुकी यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री भी रही हैं।

इन सबसे इतर ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की विरासत संभालते रहे और कांग्रेस के मजबूत नेता बने रहे। 2001 में एक हादसे में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई। गुना सीट पर उपचुनाव हुए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए। 2002 में पहली जीत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी चुनाव नहीं हारे थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें करारा झटका लगा। कभी उनके ही सहयोगी रहे कृष्ण पाल सिंह यादव ने ही सिंधिया को हरा दिया।

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार तो बनाई लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम नहीं बन सके। इसके छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में हार सिंधिया के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हुई। सीएम ना बन पाने के बावजूद लगभग 23 विधायक ऐसे हैं, जिन्हें सिधिया के खेमे का माना जाता है। इसमें से छह को मंत्री भी बनाया गया। इन्हीं में से कुछ विधायकों ने कमलनाथ की सरकार को मुश्किल में डाल दिया है।

लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं। बार-बार मांग करने के बावजूद उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद भी नहीं मिला, जिसने आग में घी काम का काम किया है। इसी बीच शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात ने विवाद को और हवा दे दी। हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि वह कांग्रेस कभी नहीं छोड़ने वाले हैं। नवंबर 2019 में कांग्रेस पार्टी के सभी पदों को छोड़कर दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन उनकी यह कोशिश भी काम नहीं आई।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में कहा जा रहा कि इस बार वह आर-पार के मूड में हैं। बीजेपी भी मौके के इंतजार में है। कांग्रेस के दिग्गज नेता कोशिश कर रहे हैं लेकिन सिंधिया मानने के मूड में नहीं हैं। 13 मार्च को राज्यसभा चुनाव के लिए नॉमिनेशन का आखिरी दिन है। कहा जा रहा है कि सिंधिया खुद के लिए राज्यसभा सीट या मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद चाहते हैं। हालांकि, यह भी चर्चा है कि सिंधिया बीजेपी के साथ बात को इतना आगे बढ़ा चुके हैं कि अब वह कांग्रेस में नहीं लौटेंगे और लंबे समय से अधूरा पड़ा अपनी दादी का सपना पूरा करेंगे। अगर सिंधिया बीजेपी में जाते हैं तो पूरा का पूरा सिंधिया परिवार बीजेपी में लौट आएगा।

मध्य प्रदेश सरकार के छह मंत्री समेत कुल 17 विधायक बेंगलुरु में हैं। ये सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के माने जाते हैं। कहा जा रहा है कि इन सभी ने अपने फोन बंद कर लिए हैं। चर्चा है कि सिंधिया अपने समर्थकों के साथ या तो बीजेपी जॉइन करने वाले हैं या फिर वह कांग्रेस से कोई बड़ी बात मनवाना चाहते हैं। हालांकि, अभी इस बारे में ज्योतिरादित्य सिंधिया का कोई भी बयान नहीं आया है।

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