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क्वाड से आईपीईईफ तक – नई चुनौतियां, नए समाधान

प्रेरणा कुमारी

Update: 2022-06-08 11:52 GMT

जैसे-जैसे दुनिया आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे देशों के बीच युद्ध के तौर-तरीके बदल रहे हैं। आज देश की आर्थिक प्रगति और अर्थव्यवस्था देश की सुरक्षा का महत्वपूर्ण पहलू है। देश की अर्थव्यवस्था दो तरीकों से देश की सुरक्षा से जुड़ी है। सबसे पहले परंपरागत युद्धों के साथ-साथआतंकवाद और साइबरवारफेयर जैसे खतरों के लगातार बदलते स्वरूप के कारण देशों की सुरक्षा पर होने वाला खर्च लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में जिस देश के पास जितना अधिक धन और संसाधन होंगे, वह देश अपनी सुरक्षा पर उतना ही अधिक धन खर्च कर पाएगा और सेना एवं आधुनिक हथियारों का प्रबंध कर पाएगा। अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के बीच दूसरा संबंध कमोबेश अप्रत्यक्ष है। जो देश आर्थिक गतिविधियों का केंद्र होगा, वह रक्षा विनिर्माण संबंधी गतिविधियों का भी केंद्र होगा। सैन्य उत्पादों और आमउपभोग के उत्पादों का उत्पादन एक-दूसरे पर परस्पर निर्भर है। इसे ऐसे समझें कि जो देश बेहतर कार बना सकता है, वही देश बेहतर टैंक भी बना सकता है। आम उपयोगों के लिए बनाए गए विभिन्न उत्पादों के सैन्य अनुप्रयोग होते हैं और सैन्य अनुसंधान एवं विकास से हमें कई ऐसे उत्पाद मिलते हैं जिन्हेंआम नागरिकों के उपयोग के लिए विकसित किया जा सकता है। अर्थव्यवस्था और सैन्य तैयारी की इस लिंकेज को सैटेलाइट विकास से समझा जा सकता है। जिस सैटेलाइट से हमें आर्थिक उद्देश्यों के लिए मौसम इत्यादि की जानकारी मिलती है, उसी सैटेलाइट से हम सैन्य निगरानी भी करते हैं। आईटी वारफेयर के दौर में सूचना प्रौद्योगिकी अन्य ऐसा क्षेत्र है जिससे आर्थिक गतिविधियों और सैन्य अनुप्रयोगों के बीच के संबंध सुस्पष्ट हो जाते हैं।

भारत द्वारा पहले क्वाड और फिरहिंद-प्रशांत आर्थिक ढ़ांचे (आईपीईएफ) में शामिल होने के निर्णय का आकलन करने के लिए इस पृष्ठभूमि को समझा जाना जरूरी है। भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान की सहभागिता वाले क्वाड समूह की शुरुआत मुख्यतः सामरिक या सैन्य तैयारी जैसे लक्ष्यों पर केंद्रित रही है। 2017 में गठित इस समूह के चारों सदस्यों ने वर्ष 2020 में मालाबारनौसेना अभ्यास में भी भाग लिया। हालांकि सामरिक उद्देश्यों के लिए गठित इस समूह में अब आर्थिक गतिविधियां में जोड़ी गई हैं। इस क्रम में मई 2022 में क्वाडसदस्यों की आमने-सामने आयोजित वार्ता से एक दिन पहले आईपीईएफ की शुरुआत की गई। इस आर्थिक ढ़ांचे में क्वाड देशों के अलावा ब्रुनेई, इंडोनेशिया, कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।आईपीईएफ में सभी देशों ने व्यापार, आपूर्ति श्रृंखला, स्वच्छ ऊर्जा और कर सुधार एवं भ्रष्टाचार-निरोध पर मिलकर कामकरने का निर्णय लिया है।

हमारी भविष्य की सामरिक नीति में आईपीईएफ की क्या भूमिका है, यह समझने के लिए इस बात पर गौर करना जरूरी है कि भारत की घेरेबंदी के लिए चीन ने नेपाल, श्रीलंका, ईरान और मालदीव जैसे देशों में चीन हथियारों के बजाय आर्थिक निवेश का सहारा लिया है। पड़ोसी देशों की आर्थिक गतिविधियों से भारत को अलग-थलग कर चीन लगातार हमारे देश पर शिकंजा कस रहा था। इस रणनीति की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नेपाल आज भारत के बजाय चीन के अधिक करीब है।श्रीलंका भी आर्थिक रूप से बदहाल होने से पहले चीन के प्रभाव में था। ऐसे में चीन के विस्तावरवादी रूख और हमारी सीमाओं पर लगातार तनाव खड़े करने की प्रवृत्ति के बीच यह जरूरी है कि चीन से निपटने के लिए सामरिक हथियारों के साथ-साथ आक्रामक आर्थिक रणनीति का भी उपयोग किया जाए।

आर्थिक एकीकरण के सामरिक उद्देश्यों में क्या महत्व है, इसे समझने के लिए चीन-आस्ट्रेलिया का हालिया उदाहरण समझना प्रासंगिक होगा। आस्ट्रेलिया द्वारा कोविड-19 शुरुआत की जांच किए जाने की मांग पर चीन ने आस्ट्रेलिया के लिए रेयर अर्थ एलिमेंट्स की आपूर्ति रोक दी। इन एलिमेंटस के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर चीन का एकाधिकार है और ये एलिमेंट्स आजकल के अत्याधुनिक उत्पादों, बैटरियों के उत्पादन के लिए जरूरी है। चीन का यह प्रयास था कि बिना एक भी गोली चलाए आस्ट्रेलिया को झुकने के लिए मजबूर किया। इस तरह चीन के समानांतर आपूर्ति श्रृंखला बनाने के प्रयासों से भारत को भी आर्थिक क्षेत्र में चीन के दबदबे से निपटने में सहायता मिलेगी। इस आर्थिक ढ़ांचे में शामिल होकर भारत अपने हथियारों की आपूर्ति और निर्यात को भी व्यापक बना पाएगा। भारत-चीन सैन्य टकराव होने की स्थिति में हम जरूरी उत्पादों के लिए अन्य देशों पर निर्भर हो सकते हैं या घरेलू उत्पादन की व्यवस्था कर सकते हैं। इसके अलावा जिस तरह चीन लगातार भारत की आर्थिक घेरेबंदी कर रहा है, उसके जबाव में भारत के लिए भी यह जरूरी है कि हम चीन के समानांतर ब्लॉक खड़े करें। सैन्य सहयोग भी लंबे समय तक तभी व्यावहारिक हो पाते हैं यदि इनमें सैन्य के साथ-साथ अन्य मुद्दों को भी शामिल किया जाए।

बहरहाल,हमारे देश में पहली बार ऐसी समझ बनी है कि आर्थिक और सामरिक लक्ष्य दो अलग-अलग लक्ष्य नहीं बल्कि मजबूत देश के एक ही लक्ष्य के दो पहलू हैं। हमारे अब तक के इतिहास में सैन्य तैयारियों के संबंध में हमने पहल करने के बजाय प्रतिक्रिया मात्र की है। पहले क्वाड और इसके बाद आईपीईएफ हमारी इस नई समझ के प्रतीक हैं कि वास्तविक लड़ाई भले ही अवसर आने पर होती है लेकिन लड़ाई की तैयार हमेशा चलती रहती है।लगातार बदलती सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के इस दौर में यह समझ बेहद महत्वपूर्ण है।

- प्रेरणा कुमारी डीआरडीओ में कार्यरत रह चुकी हैं। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन एवं अनुवाद में सक्रिय हैं।

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