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आक्रमण में ही छिपा है रक्षा का सूत्र

Update: 2019-03-03 16:42 GMT

मानवतावादी विचार का प्रणेता भारतवर्ष मानव को आर्य-भाव मनुष्य का उच्चतम विकास जिसमें न्यायसंगत जीवन पद्धति प्रमुख है, के साथ-साथ त्याग, दया संवेदनशीलता के साथ सामाजिक रिश्तों और उनकी मर्यादा की महत्ता प्रमुख है, से युक्त करने को सनातनकाल से ही सचेष्ट रहा है और यही इसकी विश्व-व्यापी महानता का आधार है। भारतीय प्राचीन गं्रथों में मानव की आसुरी प्रवृत्तियों के समूहों से हुये सतत् संघर्ष की प्रेरक अनुपम झांकी रामायण, महाभारत, दुर्गासप्तशती में सुस्पष्ट देखी जा सकती है जहां भोगवादी व्यक्तित्व लाभ व विचार को श्रेष्ठ मानने वाली व दूसरे के सर्वकल्याण व उत्थान का विचार करने वाली सोच का संघर्ष सामने आता है फिर चाहे वह रावण के काल का ऋषि-मुनियों को संत्रास की बात हो या कैकम क्षेत्र के अपने सुत को राजा बनाने के साथ-साथ राम के बनवास की बात हो या कौरवों के गंधारी सोच कि मैं पाण्डवों को सुई की नोंक के बराबर भी भूमि नहीं दूंगा और सर्व सुंदरी देवी को राक्षसराज द्वारा अपनी वासना के अधिपत्य में लेने का प्रस्ताव भी, उसी पश्चिमी सीमा से भारत के पश्चिम से सदा से प्रवाहित होता रहा है और भारत अपनी दिव्य क्षमता से उससे सदा लड़ता ही रहा है और यही कारण है कि इसके लिए कहा गया

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,

सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा।

विचारक कलार्जावट्ज ने कहा था कि यदि शांति चाहते हो तो युद्ध को समझो। यह सही है कि युद्ध से मानवता को बहुत क्षति होती है- सामाजिक जीवन भी विपन्न हो जाता है साथ ही युद्ध की कीमत वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की पीढिय़ां भी झेलती हैं तो क्या मनवता पर सतत् प्रहार, आतंकी घटनाओं की श्रृंखलाओं व मजहब आधारित उन्मादी सोच के आगे समर्पण को स्वीकारा जा सकता है। मनुष्यता का शौर्य उसकी रक्षा में सर्वस्व बलिदान देने में है उसके आगे याचित शांति कामना हेतु समर्पण में कदापि नहीं यह समझना अत्यंत सामाजिक है।

जीवन की प्रेरणा और नीति नियम और सामाजिकता को बतलाने वाले अमर ग्रंथ जो विश्व धरोहर के रूप में रामायण रामचरितमानस, व महाभारत के रूप में विख्यात हंै के संदर्भित संदेश शाश्वत है कि युद्धकांड के बाद ही उत्तर काण्ड आता है अथवा युद्धपूर्व के बाद ही शांति स्थापित होती है।

अलगाववादी धार्मिक उन्माद ही है समस्या

आज भले ही यह दिखता हो या समान्यत:-  समझा जाता हो कि भारत की समस्या कश्मीर है जो जनमत संग्रह चाहता है पर सच यही है कि यह सहज समझा जा सकता है कि 712 ईस्वी में हुआ राजा दाहिर पर आक्रमण उस यूनानी सिकंदर के आक्रमण से भिन्न था जिसमें तथाकथित विश्वविजय की सिकंदर की कामना थी जिसे तत्कालीन राजा पोरस (पुरू)द्वारा कुशलतापूर्वक रोका गया था। 1200 सालों से पश्चिम से होने वाला यह आक्रमण चाहे मोहम्मद विन कासिम के रूप में हो या महमूद गजनी, गौरी, ऐबक, खिलजी, लोदी, बाबर, सूटी या फिर तैमूर या नादिशाह के रूप में ही क्यों न हो यह सब धर्म आधारित और हिंदू धर्म के मानने वालों के उत्पीडऩ वाले मानवीयता के प्रति अपराध के जीवंत रूपक ही हैं। दारूल इस्लाम की ही सोच मानवता के कंटकों, आतंकियों को कू्रर से क्रूरतम रूप में प्रकट कर रही है। इसी से उपजा है वह विप्लव जिसमें अफ्रीका, यूरोप व एशिया के मानवीय स्वरूप लुप्त हुये हैं और तालिबानी सोच के साथ इस्लाम के कू्रर स्वरूप का आईएसआईएस के रूप में नंगा नाच विश्व देख रहा है। इसी क्रूर रूप का ही परिणाम है कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन इसी प्रकार सभी मुस्लिम देशों के अन्य धर्म को मानने वालों की संख्या कम से कमतर होती हुयी नगण्य तक जा पहुंची है। वलात धर्म परिवर्तन व लवजिहाद इसी के खौफनाक चेहरे हैं। जेहाद, गजबा ए हिंद, जन्नत, हूरें, उसके उत्प्रेरक तत्व हैं।

क्यों बना पाकिस्तान:-  जिन्ना भले ही अपने को सेक्यूलर कहता हो पर पाकिस्तान की आधारशिला वही इस्लामी सोच जो जनसंख्या बढ़ा कर भूभागों को मुस्लिम झंडे के नीचे लाने की रही है इसी से आज विश्व जनसंख्या का एक तिहाई भाग इससे प्रभावित हुआ है।

मजहबी क्रूरता और आतंक की बहुत कीमत चुकाई जा चुकी है:-  इस्लाम के मजहबी रूप से भारत 712 ईस्वी से लड़ रहा है भारत ने हिन्दुस्तान के रूप में प्रतिरोध करते हुए आतंकी, मर्यादाहीन, क्रूर सोच का मुकाबला करते हुए राजा दाहिर से लेकर, पृथ्वीराज चौहान, राणा प्रताप, रानी दुर्गावती, कर्णावती व छत्रपति साहू, सिक्ख गुरूओं सहित, बंदा बैरागी, आदि दिव्य-आत्माओं का उत्पीडऩ व क्षति का वरण किया है। उसका मुख्य कारण था भारत एक साथ इस खतरे के विरूद्ध नहीं लड़ा, खतरा कितना बड़ा था और है। इसे आज आतंकवाद के रूप में विश्व भी महसूस कर रहा है। पाकिस्तान का निर्माण इसी आतंकी सोच का परिणाम था व भारत अपने ही भू-भाग को काट कर इस इस्लामी लिप्सा को सौंप कर भी ठगा सा महसूस कर रहा है। 1971 के भारतीय शौर्य की गाथा भी तब बेमानी हो गई जब बांग्लादेश भी धर्म निरपेक्षता का चोला उतार इस्लामिक देश बन बैठा और भारत गंगा-जमुनी तहजीब और ईश्वर अल्ला तेरा नाम के राग में खोया रहा। हमारे मंदिर, कलाएं व धर्म नष्ट होते रहे। 1948 का कबायली आक्रमण हो या 1965, 71 व 99 के गारगिल युद्ध या फिर 2019 हमारी सीमाओं पर पुन: पाकिस्तान द्वारा पैदा किये युद्ध के हालात, ये सब भारत-भूमि को और छोटा करते हुये इस्लाम के झंडे के क्षेत्र को बढ़ाने विस्तारित करने का ही प्रयास है- पाक का एटम बम भी इस्लामिक ही है जो हिन्दुस्तान के विरूद्ध ही काम आना है।

साम-दाम, दण्ड, भेद की सोच के साथ उतरा जेहाद किसी की आजादी हेतु नहीं है बल्कि यह तो अन्य धर्माे व जीवन-मूल्यों की बर्बादी का ही कारक है। इससे रक्षात्मक होना और कोऊ नृप होय हमें का हानि की सोच का ही परिणाम रहा कि भारत शेर को चूहे कुतरते गये और शेर अहिंसा और तुष्टीकरण की नींद में सोता रहा। जब-जब भारत ने अपने आत्म-रक्षार्थ आक्रमण का अबलम्बन किया तब-तब भारत को सफलता मिली व आक्रमणकारी आतंकवाद पीठ दिखाकर भागने को मजबूर हुआ फिर चाहे वह वप्पारावल का पश्चिमीअभिमान हो या समुद्रगुप्त का शकों एवं हूणों के विरुद्ध अभियान या महाराजा रणजीतसिंह का अफगानिस्तान वाला पश्चिमी अभियान। आवश्यकता एक भारत सशक्त भारत की इस वर्तमान खतरों को पहचान उसकी सोच को नष्ट करने की कार्य-योजना को क्रियान्वित करने की है जिससे मानवता की रक्षा हो सके। अन्यथा नाजीबाद के अगले संस्करण को रोकना सरल नहीं होगा।

आतंक का तुष्टीकरण नहीं, प्रतिकार होना चाहिये:- भारत गत 1200 वर्षाे से आतंकवादी आक्रमणों से पीडि़त है और अपनी शांति की दुर्दम्य लालसा के कारण अपनी असंख्य हत्याओं, दुराचार, उत्पीडऩ, निर्माण हवसों की विरासता को झेल रहा है और पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही मानवता को लज्जित करने वाले आतंकी श्रंखला 1948, 65, 71, 1999 के युद्धों के बाद अक्षरधाम, संसद पर हमला, उरी, पुलवामा व मुंबई हमलों की अटूट श्रंखला से पीडि़त है। पुलवामा के सूत्रधारों व जैश के आतंकियों को पाक का खुला संरक्षण क्यों है। क्या केवल कश्मीर ही कारण है। पाक आतंकियों पर कार्यवाही न करते हुए भारत पर हमलावर होने को तैयार है। कोई भी जागृत राष्ट्र का नेतृत्व कभी भी इन क्षणों में निष्क्रिय नहीं रह सकता। ग्वालियर के ही राष्ट्रवादी कवि अभय ने सही लिखा है

''राष्ट्र जनन की पीर को, जो अपनी पीर बताए।

उसी पुरूष में राष्ट्र भी, स्वयं प्रकट हो जाए।।''

विश्व-संकट इस्लामी आतंकवाद:-आज विश्व-भर में इस्लाम आतंकवादी चेहरे के साथ विश्वव्यापी संकट बन गया है। फिर चाहे कर्नल गद्दाफी रहे हों या लादेन, दाऊद हो या मसूद, तालिबानी हो या आई एस आई एस सभी मानवता को आतंकित कर रहे हैं।

आखिरकार समाधान क्या है। जेहादी मानसिकता को मनोरोग मान उसके मूल स्रोत का मानवीकरण करते हुये उसे मानवतावादी बनाना ही होगा इसके लिये एक विश्व -व्यापी कठोर कार्यवाही करने की आवश्यकता पड़ेगी। भारत को इस कार्य हेतु विश्व नेतृत्व करना ही होगा क्योकि भारत ही वह देश है जिसमें वैचारिकता के साथ साथ अपने दंश झेलने की त्रासदायक विरासत की भी स्थिति रहीं है। पीडि़त विश्व समुदाय भारत की युद्ध से शान्ति के युगीन इतिहास बोध की गौरव-गाथा को भूला नहीं है। जरूरत राष्ट्र को एकजुट हो इस विश्व कार्य को सफल करने की है। 

-राजकिशोर वाजपेयी

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