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हिन्दी पत्रकारिता दिवस : 30 मई को क्यों मनाया जाता है, जानें

Update: 2020-05-30 08:27 GMT

दिल्ली। भारत में 30 मई का दिन हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में सुनहरे शब्दों में लिखा गया है। इसी दिन जुगलकिशोर शुक्ल ने दुनिया के पहले हिन्दी साप्ताहिक पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन कलकत्ता (अब कोलकाता) से शुरू किया था। आज ही के दिन पहली प्रति निकली थी। कह सकते हैं आज हिंदी पत्रकारिता का जन्मदिवस है। इसके अलावा विश्व पटल पर 30 मई को और भी कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थीं।

जहां तक दुनिया के पहले अखबार का प्रश्नी है तो उसकी शुरुआत यूरोप से ही हुई। हालांकि दुनिया में पत्रकारिता का इतिहास कई स्तरों पर विभाजित है। कोई इसे रोम से मानता है, तो वहीं कोई इसे 15वीं शताब्दी तक जर्मनी के गुटनबर्ग की प्रिंटिंग मशीन की शुरुआत से मानता है।

दरअसल, 16वीं शताब्दी के अंत में, यूरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में, व्यापारी योहन कारोलूस ने रईस ग्राहकों को सूचना-पत्र लिखवा कर प्रकाशित करता था। बाद में उसने छापे की मशीन खरीद कर 1605 में समाचार-पत्र छापा। उस समाचार-पत्र का नाम था 'रिलेशन. यही विश्व का प्रथम मुद्रित समाचार-पत्र माना जाता है।

'उदंत मार्तंड' की कहानी

1826 में आज के ही दिन यानी 30 मई को कानपुर से आकर कलकत्ता (अब कोलकाता) में सक्रिय वकील पंडित जुगल किशोर शुक्ला ने वहां बड़ा बाज़ार के पास के 37, अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से 'हिंदुस्तानियों के हित' में साप्ताहिक 'उदंत मार्तंड' का प्रकाशन शुरू किया था, जो हर सप्ताह मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था।

हिंदी की इस लंबी प्रतीक्षा का एक बड़ा कारण पराधीन देश की तत्कालीन राजधानी कलकत्ता में शासकों की भाषा अंग्रेज़ी के बाद बंगला और उर्दू का प्रभुत्व था। तब, कहते हैं कि हिंदी के 'टाइप' तक दुर्लभ थे और प्रेस आने के बाद शैक्षिक प्रकाशन शुरू हुए तो वे भी हिंदी के बजाय बंगला और उर्दू में ही थे।

हां, 'उदंत मार्तंड' से पहले 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बंगला पत्र 'समाचार दर्पण' में कुछ हिस्से हिंदी के भी होते थे।

'उदंत मार्तंड' के पहले अंक की 500 प्रतियां छापी गई थीं और नाना प्रकार की दुश्वारियों से दो चार होता हुआ यह अपनी सिर्फ़ एक वर्षगांठ मना पाया था। एक तो हिंदी भाषी राज्यों से बहुत दूर होने के कारण उसके लिए ग्राहक या कि पाठक मिलने मुश्किल थे।

दूसरे, मिल भी जाएं तो उसे उन तक पहुंचाने की समस्या थी। सरकार ने 16 फरवरी, 1826 को पंडित जुगल किशोर को छापने का लाइसेंस तो दे दिया था। लेकिन बार-बार के अनुरोध के बावजूद डाक दरों में इतनी भी रियायत देने को तैयार नहीं हुई थी कि वे उसे थोड़े कम पैसे में सुदूरवर्ती पाठकों को भेज सकें। सरकार के किसी भी विभाग को उसकी एक प्रति भी ख़रीदना क़बूल नहीं था।

एक और बड़ी बाधा थी। उस वक़्त तक हिंदी गद्य का रूप स्थिर करके उसे पत्रकारीय कर्म के अनुकूल बनाने वाला कोई मानकीकरण नहीं हुआ था, जैसा बाद में महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित 'सरस्वती' के अहर्निश प्रयासों से संभव हुआ।

ऐसे में चार दिसंबर, 1827 को प्रकाशित 'उदंत मार्तंड' के अंतिम अंक में इसके अस्ताचल जाने यानी बंद होने की बड़ी ही मार्मिक घोषणा की गई थी।

पंडित जुगल किशोर शुक्ल को हिन्दी पत्रकारिता जगत का पितामह कहा जाता है। पूरे विश्व में 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रुप में मनाया जाता है।

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