शीत लहर से बर्बादी की कगार पर आंतरी-बिलौआ का देशी 'पान', देश-विदेश में है मशहूर

Update: 2022-01-06 00:45 GMT

ग्वालियर। देश विदेश में ग्वालियर जिले के आंतरी बिलौआ क्षेत्र में होने वाली पान की खेती मशहूर है। यहां का देशी पान देश के बड़े शहरों के साथ अन्य देशों को भी भेजा जाता रहा है। किन्तु पान की यह लालिमा मौसम की भेंट चढ़ रही है। मौसम की बेरूखी के चलते पान की फसल बर्बाद होने के कगार पर है। जिससे किसानों के चेहरों पर मायूसी छा गई है। जिले से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आंतरी संदलपुर पहुँचकर इस संवाददाता ने किसानों का हाल जाना है।

वैसे तो पान की कई किस्में हैं जिसमें बनारसी, मिठुआ की अपनी अलग पहचान है। ठीक इसी तरह बिलौआ आंतरी में देशी पान की खेती होती है। इसे किसान बड़ी मेहनत के साथ पैदा करते हैं। खेतों के चारो ओर पत्थर की छह फुट ऊंची दीवार के साथ ऊपर के हिस्से में बांस व घास-फूस मंडपाकार बनाया जाता है। ताकि पान को गर्म व सर्द हवाओं से बचाया जा सके। पान की खेती में पान का बड़ा महत्व है। खेत के नजदीक ही 10 से 15 फिट लंबा चौडा गड्ढा कर पानी संरक्षित किया जाता है। फिर किसान उस गड्ढे से मटके में पानी भरकर कंधे पर रखकर दो फीट चौड़ी क्यारी से गुजरकर हाथ से पानी डालते जाते हैं। यह दृश्य बेहद मार्मिक होता है क्योंकि इतनी सर्दी में इतना ठंडा पानी मटके से छोड़ा जाता है तब किसान के वस्त्र और शरीर भी भींग जाता है। इस पानी को दिन में तीन बार दिया जाता है। जब दो माह की बेल हो जाती है तब तीन दिन छोडक़र पानी दिया जाता है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो पान हमारे मुंंह को जायका देता है उस पान को तैयार करने में किसान का कितना खून पसीना लगता है। इतना ही नहीं पान के आसपास जहरीले सांपों का डेरा भी रहता है। इनसे बचना मुश्किल होता है लेकिन रोजी रोटी की खातिर किसान को यह खतरा भी मोल लेना पड़ता है। इस सिलसिले में किसान नारायण सिंह कहते हैं कि पान की कलम मंदसौर जिले के भानपुरा गांव में मिलती है। जो मार्च माह में लाकर रोपी जाती है। फिर जून से जुलाई में पान पूर्ण आकार ले पाता है। तब उसे तोडक़र आगरा, झांसी, मेरठ, दिल्ली आदि शहरों की मंडियों में भेजा जाता है। दिसंबर के अंत में पाला अधिक पडऩे से पान के पत्ते मुरझाकर काले पडऩे लगे हैं। जिससे उन्हें काफी नुकसान होगा। इसी तरह नरेन्द्र सिंह ने बताया कि इस क्षेत्र में गांव के 100 से अधिक किसान पान की खेती करते हैं। जिससे 400 से 500 परिवारों का भरण पोषण होता है। साथ ही कुछ परिवार पान की खेती से जुडक़र रोजगार भी पाते हैं। करण सिंह बताते हैं कि पान की खेती में दवा के रूप में किसी प्रकार के रसायन की जगह शुद्ध सरसों का तेल और तिल की खली का उपयोग किया जाता है। जिससे पान खाने में स्वादिष्ट लगता है।

यह है पान की कीमत

लॉकडाउन से पहले 300 रुपए किलो और लॉकडान में 60 रुपए किलो और वर्तमान में 150 रुपए किलो के भाव से बिक रहा है।

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