देवउठनी एकादशी प्रदेशभर में, विशेषकर राजधानी भोपाल में, आस्था और विश्वास के माहौल में धूमधाम से मनाई जाएगी। हिंदू धर्मावलंबी इस अवसर पर भगवान विष्णु की आराधना करते हुए एकादशी का व्रत रखेंगे। वहीं, कल सुहागिन महिलाएं मंडप सजाकर तुलसी-सालिग्राम विवाह का आयोजन करेंगी।
देवोत्थान एकादशी का महत्व
मान्यता है कि देवोत्थान एकादशी का व्रत श्रद्धा और समर्पण भाव से रखने पर भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इससे व्यक्ति सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इसे अपने भीतर के भगवान को जागृत करने का पर्व भी कहा जाता है।
विष्णु का शयनकाल और देवोत्थान
पंडित शरद द्विवेदी ने बताया कि देवउठनी ग्यारस के दिन भगवान विष्णु सहित अन्य देवता पाताल लोक से शयन के बाद वापस आते हैं। इसी कारण इस दिन विशेष पूजा-अर्चना का विधान है। तुलसी-सालिग्राम विवाह भी इसी दिन किया जाता है, जो अत्यंत शुभ माना जाता है। सुबह और शाम दोनों समय भक्तजन विशेष पूजा करते हैं।उन्होंने बताया कि आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु शयनावस्था में रहते हैं। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश या अन्य मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।
मंदिरों और घरों में विशेष आयोजन
इस अवसर पर मंदिरों और घरों में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा-अर्चना की जाएगी। श्रद्धालु गन्नों के मंडप बनाकर भगवान लक्ष्मीनारायण को बेर, चने की भाजी, आँवला सहित मौसमी फल और पकवानों का भोग लगाएंगे। मंडप में सालिग्राम की प्रतिमा और तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह संपन्न कराया जाएगा।दीपमालाओं से घरों को सजाया जाएगा और बच्चे पटाखे जलाकर उत्सव का आनंद लेंगे। दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाने वाला यह पर्व देव प्रबोध उत्सव और तुलसी विवाह के रूप में प्रसिद्ध है।
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि 2 नवंबर 2025 को सुबह 7 बजकर 33 मिनट से प्रारंभ होकर 3 नवंबर को सुबह 2 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, इस वर्ष तुलसी-सालिग्राम विवाह 2 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा।