निष्ठावान स्वयंसेवक थे लालजी टंडन : प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी

Update: 2020-07-22 01:00 GMT

ग्वालियर।   लखनऊ राजनीति दृष्टि से एक बहुत महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। इसको पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। पत्रकारिता के क्षेत्र में वह प्रमुख केन्द्र रहा। यहां के राष्ट्रधर्म और स्वदेश जैसे दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। पं. दीनदयाल उपाध्याय के कार्य का भी केन्द्र रहा। मान. वाजपेजी जी लखनऊ से सांसद भी रहे और कितने गौरव की बात है कि लखनऊ से सांसद रहते हुए तीन बार अपने देश के प्रधानमंत्री बने।

मान. लालजी टंडन ने ऐसे लखनऊ नगर में 12 अप्रैल 1935 को जन्म लिया और अपने जीवनकाल में शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आ गए। ये वो समय है जब पं. दीनदयाल उपाध्याय उत्तर प्रदेश में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में काम कर रहे थे। वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने और जिला, विभाग प्रचारक बनते हुए उत्तर प्रदेश के सह प्रांत प्रचारक बन गए। बाद में वह जनसंघ की स्थापना होने के बाद डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के आग्रह पर तत्कालीन सरसंघचालक परमपूज्य माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (गुरुजी) ने उनको जनसंघ में जाकर काम करने को कहा। मान. भाऊराव जी देवरस भी वरिष्ठ प्रचारक के रूप में उत्तर प्रदेश में काम कर रहे थे। इस वायुमंडल एवं युगपुरुषों की छत्रछाया में लालजी का प्रारंभिक जीवन निखरा और एक निष्ठावान स्वयंसेवक बन गए।

1960 में उनका राजनैतिक क्षेत्र भारतीय जनसंघ में पदार्पण हुआ और जो गुण उन्होंने सबको साथ में लेकर चलने का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रदत्त संस्कारों से सीखा था उसके अनुसार सबके प्रिय नेता बन गए। तीन बार विधायक रहे, उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे और अटल जी के बाद लखनऊ से सांसद बने। एक महान धरोहर का जिम्मा उनके ऊपर आया, जिसको उन्होंने कुशलतापूर्वक निभाया। अटल जी से उनके मित्रवत संबंध थे और जब मन का भोजन करने की इच्छा होती थी तो उनके घर पर जाकर भोजन करते थे। सांसद बनने के बाद उन्होंने अटलजी की कमी को भटकने नहीं दिया। खुशी की बात है कि उनके परिवार में राजनीतिक काम की श्रृंखला अनवरत चालू है। आज उनके सुपुत्र गोपालजी टंडन भारतीय जनता पार्टी के विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी हंै।

राजनीतिक क्षेत्र में काम करने के बाद उनकी कुशल योग्यता का लाभ लेने के लिए वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने उनको संवैधानिक पद प्रदान करते हुए बिहार जैसे राज्य का राज्यपाल बनाया। उन्होंने अपनी सूझबूझ से कुलाधिपति रहते हुए बिहार के उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी सुधार किया तथा वहां नई ऊंचाइयां प्रदान की। लेकिन केन्द्र सरकार ने अपनी जरूरत समझते हुए राज्यपाल के रूप में उनका स्थानांतरण मध्यप्रदेश में कर दिया। मध्यप्रदेश में कुछ ही काल के अंदर अपनी कार्यक्षमता के कारण अपना स्थान बना लिया। तत्कालीन कांग्रेस की सरकार से भी उनके सद्भावपूर्ण संबंध रहे तथा सरकार का योग्य मार्गदर्शन किया। यहां भी उन्होंने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में समय-समय पर विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक बुलाकर योग्य काम किए। हर क्षेत्र में पारदर्शिता रहे इसके लिए उन्होंने भरसक प्रयास किए। मध्यप्रदेश में गवर्नर रहते हुए 22 विधायकों के इस्तीफा देने के बाद जब राजनैतिक अस्थिरिता पैदा हुई और सरकार अल्पमत में आ गई तो उन्होंने संवैधानिक दृष्टि से विवेकपूर्ण निर्णय लिए। इस राजनैतिक अस्थिरिता के दौर में जब मैं उनसे भोपाल में मिलने गया तो मैंने पाया कि वे किसी भ्रम या असमंजस्य में नहीं थे। उसी रात 12 बजे उन्होंने तत्कालीन सरकार को पत्र लिखकर निर्देश दिया कि जो विधानसभा का सत्र चालू होने वाला है, जो पहले से तय था उसको स्थगित न करें, सदन में अपना बहुमत सिद्ध करें। सरकार ने उनका निर्देश नहीं माना जो कि सरकार का संवैधानिक कदम था, क्योंकि राज्यपाल प्रदेश का संवैधानिक प्रमुख होता है और ये सरकार उसकी सरकार कहलाती है। उनका निर्देश कितना सही था इसकी परीक्षा तब हुई जब इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई और उच्चतम न्यायालय ने उनके निर्णय पर शत-प्रतिशत मुहर लगा दी। इस बात से ये दृष्टिगोचर होता है कि वे पूर्णरूप से निष्पक्षता का भाव अपने मन में रखते थे।

करीब दो दशक पहले मुझे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय कानपुर क्षेत्र में काम करने का मौका मिला। उस क्षेत्र की 54 सीटों की जिम्मेदारी मध्यप्रदेश के कार्यकर्ताओं को मिलीं, तब मैं उनके संपर्क में आया। लखनऊ में उनके घर भी जाने का मुझे अवसर मिला। तब मुझे सामान्य नेताओं से अलग स्थिति देखने को मिली। यद्यपि उस समय जब वे न विधायक थे और न सांसद थे। लेकिन जनता का जमावड़ा अपनी समस्याओं को लेकर उनके पास उसी प्रकार रहता था जैसे वो सरकार में मंत्री हों। लखनऊ की जनता उन्हें अपना उद्धारक मानती थी। बड़ी उम्मीद लेकर उनके पास जाती थी और संतुष्ट होकर आती थी। उनके इस प्रभाव को देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ तथा मैंने माना कि जनता के हृदय में स्थान बनाने वाला, प्रेम बरसाने वाला ऐसा ही कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी को चाहिए, जो सही अर्थों में रामराज्य की स्थापना करने में सफल होगा।

आज देश करवट ले रहा है। देश स्वतंत्र होने के बाद जिस तरह के सुशासन की आवश्यकता थी विश्व पटल पर, भारत के जिस भूमिका की आवश्यकता थी विश्व बंधुत्व के सिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए, सबके विकास को ध्यान में रखते हुए सबको साथ में लेकर चलने की जरूरत थी वैसे आत्मनिर्भर भारत को बनाने में राज्यपाल के रूप में। मध्यप्रदेश जैसे विकासशील राज्य को जो गेंहू के उत्पादन के क्षेत्र में देश में पंजाब और हरियाणा को पीछे छोड़कर सर्वप्रथम राज्य बना है। जिस प्रदेश का मुख्यमंत्री घोषणा करता हो कि हम अपने प्रदेश में एक इंच भूमि भी असिंचित नहीं छोड़ेंगे, जहां सभी वर्गों के सर्वांगीण विकास के लिए सरकार कटिबद्ध हो, वहां लालजी जैसे समाज समर्पित संवेदनशील व्यक्तित्व की अत्यंत आवश्यकता थी। हम उम्मीद करते हैं कि प्रदेश को इसी प्रकार का पूर्णकालिक राज्यपाल प्राप्त होगा। उनके चले जाने से ऐसा लगता है कि एक युग का अंत हो गया है। परम समर्पित देशवासियों का बहुत बड़ा संबल है तथा ईश्वर की कृपा है कि उनके जाने से जो क्षति हुई है हम उसको पूर्ण कर सकेंगे। उन जैसे महापुरुष को विनम्र श्रद्धांजलि। 

-जैसा कि पूर्व राज्यपाल ने स्वदेश संवाददाता राजलखन सिंह को बताया। 

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