मध्यप्रदेश में मौत के कगार पर खड़े पांच हजार बच्चे

Update: 2019-02-24 15:42 GMT

सरकार करती है भूख के नाम राजनीति की नारेबाजी

विशेष संवाददाता भोपाल

मध्य प्रदेश में कुपोषण से मुक्ति के लिए यूं तो कई सरकारी योजनाएं चल रही हैं, लेकिन असल हालात ये हैं कि मध्यप्रदेश में भूख से नौनिहाल बेहाल हैं। महिला बाल विकास विभाग के जनवरी 2019 तक के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में करीब 5 हजार बच्चे ऐसे हैं जिनकी हालत गंभीर है। इनमें कुछ तो ऐसे हैं जो मौत से एक कदम दूर खड़ें हैं और 10 लाख बच्चे ऐसे हैं, जिनको कुपोषित की श्रेणी में माना जा रहा है।

भूख की राजनीति पर किसी शायर की लिखा था "भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ। आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दा" ये लाइनें उन नौनिहालों के हालात पर तब भी सटीक थी और अब भी सटीक हैं, जहां बच्चों की भूख के नाम राजनीति की नारे बाजी होती है, लेकिन करते हैं न कि हकीकत सच्चाई से हमेशा अलग रही है।

सरकार बदल गई, लेकिन नौनिहालों पर ध्यान देने का दावा सिर्फ हवा हवाई नजऱ आ रहा है। कुपोषण दूर करने का दावा किया। कागज़ों पर सच्चाई सामने आई तो हालात कुछ और निकले, हालांकि अक्सर भाजपा पर पोषणाहार में भ्रष्टाचार के नाम पिछली सरकार को घेरने वाली कांग्रेस की सरकार ने पोषण आहार के लिए 1343 करोड़ की राशि का प्रवाधान किया है, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो ये राशि बच्चों की सेहत दुरुस्त करने नाकाफी हैं।

कुपोषण के प्रदेश में प्रकोप की बात करें तो प्रदेश में अभी भी 18 से 20 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। जिसमें मौत के मुहाने पर 5424 बच्चे खड़े हैं। आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 90 हजार 690 बच्चे अति कुपोषित की सूची में हैं, जबकि 10 लाख से ज्यादा बच्चे प्रदेश में कुपोषण का शिकार हैं। सरकार की नाक के नीचे प्रदेश की राजधानी भोपाल में 22 हजार बच्चे कम वजन के जिसमें 1631 अति कुपोषित तो 106 गंभीर स्थिति में हैं।

वहीं कांग्रेस को राजनीति से फुर्सत कहां। कांग्रेस अगर बच्चों की सेहत पर ध्यान दें तो शायद प्रदेश की तस्वीर कुछ और हो सकती है। यहां तो खुद को बेहतर बताने की होड में पार्टियां लगी हैं। एक ओर कांग्रेस कह रही है कि 15 साल भाजपा शासन काल में हुए भ्रष्टाचार को मिटाने हम तकनीक से आंगनवाडिय़ों को जोडऩे का काम कर रहे हैं तो भाजपा सरकार को घेरने का एक मौका नहीं छोड़ रही है। वहीं जानकार लोग भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मोबाइल टैबलेट बांटने की बजाए सरकार को पोषण आहार की व्यवस्था करने की सलाह देते दिख रहे हैं। सरकारें चाहे कुछ भी दावे करें, लेकिन सच्चाई ये है कि प्रदेश में 5 हजार से ज्यादा बच्चे मौत से महज कुछ कदम दूर खड़ें हैं। जिससे नुकसान किसी और नहीं बल्कि कुपोषण में पल रहे मध्यप्रदेश के भविष्य का हो रहा है। ऐसे में ये देखने वाली बात होगी कि मध्य प्रदेश के विकास की बात करने वाली सरकार उसके भविष्य यानी बच्चों की बेहतरी के लिए क्या कदम उठाती है।

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