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डबरा विधानसभा : जातियों का भंवर और इमरती के लिए समन्वय का संकट

डबरा का भूगोल परिसीमन के बाद काफी कुछ बदल गया है और जो जातीय समीकरण हैं वे थोड़े कांग्रेस के पक्ष में अधिक नजर आते हैं ।

Update: 2023-05-11 11:41 GMT

कभी गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के साथ डबरा सीट की पहचान थी लेकिन आरक्षण के बाद इमरती देवी के रूप में एक दमदार नेत्री को भी डबरा ने अलग पहचान दी। डबरा का भूगोल परिसीमन के बाद काफी कुछ बदल गया है और जो जातीय समीकरण हैं वे थोड़े कांग्रेस के पक्ष में अधिक नजर आते हैं । 2008 के बाद से नतीजे भी इसकी तस्दीक करते हैं। डबरा शहरी क्षेत्र में बसपा का जोर भी रहा है। बसपा की सत्यप्रकाशी परसेडिया यहां से दो बार नगर पालिका अध्यक्ष रही हैं। 

ग्वालियर जिले की डबरा सीट 2008 से अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। डबरा नगरपालिका अलावा दो नगर पंचायत पिछोर एवं बिलौआ इसी विधानसभा के तहत आती हैं। कभी गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के साथ इस सीट की पहचान थी लेकिन आरक्षण के बाद इमरती देवी के रूप एक दमदार नेत्री को भी डबरा ने अलग पहचान दी। डबरा का भूगोल परिसीमन के बाद काफी कुछ बदल गया है और जो जातीय समीकरण हैं वे थोड़े कांग्रेस के पक्ष में अधिक नजर आते हैं । 2008 के बाद से नतीजे भी इसकी तस्दीक करते हैं। डबरा शहरी क्षेत्र में बसपा का जोर भी रहा है। बसपा की सत्यप्रकाशी परसेडिया यहां से दो बार नगर पालिका अध्यक्ष रही हैं।


→ इनके अलावा इस विधानसभा में यादव, बाल्मीकी, सेन, वंशकार, सोनी, पँजाबी, धानुक, चौरसिया, कोली, खटीक, धानुक, सहित अन्य जातियों के मतदाता हैं। ! नतीजों के विश्लेषण से अनुमान लगाया जाता है कि डबरा क्षेत्र का जाटव वोटर कांग्रेस या बसपा को प्राथमिकता पर रखता है। डबरा शहर में बसपा का प्रभाव स्वयंसिद्ध है। ब्राह्मण वोटरों के बारे में यहां कहा जाता है कि यह वर्ग प्रत्याशी के अनुरूप मतदान करता रहा है।

→ कुशवाहा समाज मे बसपा औऱ भाजपा दोनों के लिए प्राथमिकताऐं बदलती रहती हैं। ! डबरा में बसपा की उपस्थिति 90 के दशक में शुरुआती दौर से ही रही है और प्रभावशाली बघेल समाज के मतदाताओं के बीच बसपा का कैडर खूब विकसित हुआ है। ! डबरा के समिलित वैश्य एवं व्यापारी वर्ग के बारे में माना जाता है कि यह प्रत्याशी पर ध्यान देकर वोट करता है। ! नतीजों का क्षेत्रवार विश्लेषण बताता है कि सिख जैसे प्रभावशाली समूह पिछले तीन आम चुनाव में कांग्रेस के साथ अधिक रहा है। ! मुख्यमंत्री शिवराज सिंह औऱ मोदी सरकारी द्वारा खड़ा लाभार्थी वर्ग भी यहां बड़ी संख्या में है। 

2023 की रणनीति

 यह चुनाव बगैर किसी लहर वाला होने के आसार है इसलिए इस सीट के मिजाज को समझना जरूरी है।

डबरा कभी भी भाजपा के लिए सरल सीट नही रही है। नरोत्तम मिश्रा यहां से तीन बार जीते अवश्य हैं लेकिन वह अपने निजी मैनेजमेंट औऱ बहुत ही मामूली अंतराल से। एक बार वह बसपा उमीदवार दे से हार भी चुके हैं।

यह सीट भाजपा विरोधी वोटर्स वाली भी है क्योंकि चुनावी समीकरण हर बार कुछ इस तरह बने की भाजपा का कोर वोटर यहां कुछ भी नही कर पाया है।

जाटव, मुस्लिम, बघेल, कुशवाहा, गुर्जर बसपा के साथ 1990 के दौर से जुड़ते रहे है। बाद में इम्रती में यह वर्ग भाजपा की तुलना में कांग्रेस के नजदीक अधिक चला गया।

परिसीमन के बाद जो हिस्सा भितरवार क्षेत्र में गया उसके बाद भाजपा विरोधी वोटर ज्यादा प्रभावशाली हुए है।

इमरती देवी इसी भाजपा विरोधी मानसिकता वाले वोटर एवं खुद के लो प्रोफाइल से जीतती रही हैं

नरोाम मिश्रा एक फैक्टर है लेकिन वही एक मात्र निर्णायक है यह नही कहा जा सकता है।

बीजेपी के पास 2008 से कोई सशक्त उमीदवार विकसित नही हुआ हर बार प्रत्याशी बदलने से भी यहां एक मजबूत विकल्प नही खड़ा हो पाया।

आगामी चुनाव में इमरती देवी के सामने समस्या यह है कि नरोाम मिश्रा कैप के अलावा बीजेपी के अन्य कैडर के साथ भी उनका रिश्ता अभी भी तनावपूर्ण ही है।

 मौजूदा विधायक

कांग्रेस के टिकट पर 2020 में हुए उपचुनाव में सुरेश राजे जाटव जीते हैं। वह पहले भाजपा में थे और 2013 में भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। उनका अपना कोई खास वजूद नही है कांग्रेस के कोर वोटर औऱ इमरती देवी से नाराजगी के चलते वह पिछला चुनाव जीत गए है। जनसंपर्क के मामले में उनका रिकॉर्ड ठीक ठाक है। जनता के बीच बने रहते हैं। लेकिन सरकार न होने और इमरती देवी के लगातार क्षेत्र में सक्रिय बने रहने से कोई ठोस काम वह क्षेत्र में नही करा पाए हैं। हालांकि किसी प्रकार के गंभीर आरोप भी उनके विरुद्ध फि़लहाल सुनाई नही देते हैं। 

पछले चुनाव के समीकरण

2018 के आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर इमरती देवी 58 हजार वोट से जीती थीं। वह 2008,2013 में भी बड़े अंतर से जीतती रही।

पिछले आम चुनाव में भाजपा किसी भी बूथ पर शायद ही जीती हो। लेकिन " उपचुनाव 2020 में इमरती देवी बीजेपी के टिकट पर 7000 वोट से हार गईं।

परिणाम से स्पष्ट है कि जाटव,गुर्जर,बघेल ,सिख औऱ कुशवाहा वोटरों ने उनका साथ छोड़ दिया। इस अप्रत्याशित हार के पीछे लोगों का तर्क था कि कमलनाथ सरकार में मंत्री रहते हुए उनका व्यवहार जनता के प्रति बहुत बदल गया था। 

डबरा शहर से तो उन्हें अच्छा समर्थन मिला लेकिन ग्रामीण खासकर जाटव बिरादरी ने उन्हें नकार दिया।

पिछले तीन चुनाव में जो समीकरण इमरती देवी की जीत के लिए कांग्रेस के टिकट पर बनते थे वे सब उपचुनाव में उलट कर उनकी हार के कारण बन गए।

सिंधिया समर्थक एवं भाजपा के स्थानीय गुटों में भी यहां साय निर्मित नही हुआ।

2023 के संभावित उमीदवार

  1. सुरेश राजे का कांग्रेस से लडऩा तय है।
  2. भाजपा से इमरती देवी का लडऩा भी मैदान पर देखकर तय लग रहा है।
  3. भाजपा से हरीश मेवाफरोश, कप्तान सिंह, घनश्याम पिरोनिया, ऋतु शेजवार भी यहां सक्रिय रहते हैं।
  4. दो चुनाव से यहां बसपा की परपरागत चुनौती खत्म प्राय: हो गई है।
  5. डबरा नगरपालिका की बसपा से दो बार अध्यक्ष रही सत्यप्रकाशी परसेडिया कांग्रेस में शामिल हुई लेकिन अब वह बसपा से फिर लड़ सकती हैं।
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