नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी राफेल मसले पर अलग-थलग पड़ गई है। उसे विपक्षी दलों से इस मसले पर समर्थन नहीं मिल पा रहा है। मानसून सत्र की शुरुआत से ही लगातार चार दिनों तक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने इसे मुद्दा बनाया पर अचानक असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के आ जाने से राफेल मामला ठंडे बस्ते चला गया। कांग्रेस इसी बात को लेकर हैरान-परेशान है कि इस मसले को कैसे उछाला जाए?
एनआरसी मामले को लेकर भाजपा ने दूरदर्शिता का परिचय दिया है। लंबे समय से चली आ रही कांग्रेस की वोट बैंक की नीति को उजाकर करते हुए उसने राष्ट्रहित में यह निर्णय लिया है। मिशन-2019 में हो सकता है कि यह मामला उसके लिए लाभ का विषय हो पर देश इन घुसपैठियों से कब तक संघर्ष करता रहेगा। पश्चिम बंगाल सहित पूर्वाेत्तर राज्य इस समय घुसपैठियों की जबरदस्त चपेट में हैं। क्या कश्मीर के पंडितों के लिए कांग्रेस ने कभी इसकी चिंता की? उसके कार्यकाल में लंबे समय से लोग अपने अधिकारों को लेकर खुद को उपेक्षित महसूस करते आ रहे थे। जानकारों का कहना है कि एनआरसी तो इसकी एक शुरुआत भर है। इसका प्रभाव असम के अलावा उससे सटे राज्यों में भी पड़ेगा। इसके अलावा समूचे उत्तर भारत में कश्मीर से कन्या कुमारी तक लोग भाजपा से उम्मीद करेंगे कि राष्ट्रहित में इस तरह के कानून बनें। भाजपा के बढ़ते राष्ट्रवाद के प्रभाव से तिलमिलाई कांग्रेस ले-देकर राफेल मसले को उठाना चाहती है। कांग्रेस को लग रहा है कि राफेल मसले पर वह भाजपा को घेर पाएगी। कांग्रेस की इस चाल को अन्य विपक्षी दल भांप रहे हैं। जिसके चलते वे राफे ल से कन्नी काट रहे हैं। उनको लग रहा है कि आगामी चुनावों में लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस न बन जाए इसलिए भाजपा विरोधी किसी भी पार्टी ने इस मसले पर कोई बयान नहीं दिया है।
बताया जा रहा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद लगातार विपक्षी दलों के कई नेताओं से बातचीत कर रहे हैं। वे राफेल के मुद्दे के महत्व को समझा रहे हैं पर उन्हें इसकी अहमियत नहीं मिल रही। कांग्रेस के एक जानकार नेता ने बताया कि सोमवार से 10 अगस्त तक संसद में राफेल मामले को गरमाए जाने की पार्टी की रणनीति थी पर एन वक्त पर एनआरसी मामले ने इस योजना को टाल दिया। फिलहाल मानसून सत्र में उसके मंसूबों पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है।