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13 साल, 73 मौत, फिर भी 'पटरी' से नहीं उतरा आंदोलन

Update: 2019-02-09 14:04 GMT

जयपुर। आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर समाज एक बार फिर कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में रेल की पटरियों पर है। बड़ा सवाल यह है कि गुर्जर आंदोलन पिछले 14 साल से चल रहा है, लेकिन मुद्दा अब तक नहीं सुलझ पाया है। पांच फीसदी आरक्षण की मांग को लेकर पिछले 13 साल में 73 मौतें होने के बाद भी मांग और आंदोलन का रुख आज भी पटरियों पर ही है।

आरक्षण को लेकर रेल पटरियों पर उतरे गुर्जर समाज का कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में यह सातवां आंदोलन है। इस बार भी आंदोलन की अगुवाई कर रहे बैंसला ने साफ तौर पर सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि अब तक बहुत बर्दाश्त कर चुके हैं, अब नहीं करेंगे। अब आरक्षण लेकर ही उठेंगे।

गुर्जर आरक्षण आंदोलन शुरू होने के साथ ही जहां सियासी गलियारों में हड़कंप है, वहीं यात्रियों से लेकर आमजन तक मुसीबत में हैं। हालांकि, गहलोत सरकार की तरफ से आंदोलन खत्म कराने को लेकर बातचीत का ट्रैक अपनाते हुए कोशिशें तेज कर दी गई है। जबकि 13 साल से पांच प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे गुर्जर समाज के विरोध में कई बार राजस्थान जल चुका है। आंदोलन के दौरान जहां समाज के 72 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं आमजन भी कभी न भूलने वाले मंजर देख चुके हैं।

आरक्षण के लिए राज्य में समाज की तरफ से जारी जद्दोजहद और आक्रोश के बीच आज भी ये मुद्दा पूरी तरह से सुलझ नहीं सका है। गुर्जर समाज की ओर से की जा रही पांच फीसदी आरक्षण की मांग के बीच अभी उन्हें मोस्ट बैकवर्ड क्लास (एमबीसी) में आरक्षण मिल रहा है। समाज की तरफ से इस मसले पर भाजपा के शासन में चार बार तो कांग्रेस के शासन में दो बार आंदोलन हुए हैं। इन आंदोलनों में कई सौ करोड़ की सरकारी संपत्ति का नुकसान अब तक हो चुका है। साथ ही पांच बार आंदोलन के दौरान रेलवे ट्रैक पर जाम लगाया गया है।

सिलसिलेवार यह हुआ

आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर समाज की तरफ से 29 मई 2007 को आंदोलन की शुरुआत की गई थी। समाज की तरफ से दौसा जिले के पाटोली में आंदोलन किया गया था। इस दौरान हुए हिंसक प्रदर्शन और पुलिस से झड़प के दौरान 31 गुर्जरों की मौत हो गई थी। एक पुलिसकर्मी की भी मौत हुई थी। आंदोलन के बाद तत्कालीन राज्य सरकार की ओर से पूर्व न्यायाधीश जसराज चोपड़ा की कमेटी बनी थी।

23 मई 2008 को गुर्जर समाज की तरफ से बयाना के पास स्थित पीलूपुरा से गुजर रही दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक पर जाम लगाया गया। जयपुर-आगरा हाईवे पर सिकंदरा के पास जाम लगाकर प्रदर्शन किया गया। यह आंदोलन भी काफी हिंसक था, जिसमें 42 लोगों की मौत हुई थी। इस दौरान समाज को विशेष पिछड़ा वर्ग (एसबीसी) में पांच फीसदी आरक्षण देने को लेकर सहमति बनी थी। इस दौरान राज्य सरकार ने विधेयक पारित कराया, जिसे सरकार बदलने के बाद सत्ता में आई कांग्रेस के शासन में राज्यपाल ने हस्ताक्षर कर मंजूरी दी। राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद इस मामले में कोर्ट ने रोक लगा दी। इसके चलते 2009 में समाज ने फिर आंदोलन कर दिया।

वर्ष 2010 में भी गुर्जरों ने आंदोलन किया। इसके बाद एक प्रतिशत आरक्षण समाज को दिया गया। पांच जनवरी, 2011 को समझौता हुआ, जिसमें तय हुआ था कि सरकार कोर्ट के आदेशानुसार आरक्षण देगी। इस मामले में वर्ष 2012 में ओबीसी कमीशन ने गुर्जर सहित पांच जातियों के पक्ष में रिपोर्ट दी थी। हाईकोर्ट ने ओबीसी कमीशन की रिपोर्ट को गलत बताते हुए उस समय कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों के विपरीत जाकर एसबीसी को आरक्षण दिया है। ऐसे में 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन नहीं हो सकता है और न ही राज्य सरकार 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दे सकती है।

मई 2015 में फिर आंदोलन हुआ। आंदोलन पर समझौते के बाद पांच फीसदी एसबीसी और आर्थिक आधार पर ईबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण के बिल पेश किए गए। इस आधार पर गुर्जर समाज को पांच प्रतिशत आरक्षण मिलने लगा। चौदह माह आरक्षण रहा, लेकिन एसबीसी आरक्षण विधेयक 2012-17 को नौ दिसंबर 2016 में हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।

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