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त्यागपत्र के बजाए फिर से संगठन खड़ा करते राहुल गांधी - मीडिया प्रभारी

व्यक्तित्व विशेष --

Update: 2019-07-04 07:56 GMT

नई दिल्ली/वेब डेस्क। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे की वापसी का मामला मझधार में लटके रहने से पार्टी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। राहुल गांधी अगर अपने फैसले पर अटल रहते हैं तो पार्टी को अब तक का सबसे बड़ा नुकसान होगा, जिसकी भरपाई कर पाना बेहद मुश्किल है। यह कहना है कांग्रेस की हरियाणा इकाई के मीडिया प्रभारी विजय कौशिक का। विजय कौशिक राज्य के पदाधिकारियों सहित पिछले दो दिन से पार्टी मुख्यालय में धरने पर बैठे रहे। राहुल गांधी के समर्थन में प्रदेश अध्यक्ष अशोक तवर को इस्तीफे की पेशकश की। बची कुची उम्मीदों पर पानी तब फिर गया जब देर रात पार्टी कोषाध्यक्ष अहमद पटेल और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राहुल गांधी के आवास से बैरंग लौटे। बड़े नेताओं के प्रयासों पर पानी फिरता देख बाकी नेताओं ने भी हथियार डाल दिए हैं। इसी कड़ी में मुख्यालय में जारी सत्याग्रह भी रोक दिया गया है। नेतृत्व को लेकर अंधेरा व अनिश्चिय की स्थिति के चलते दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा में मायूसी सी छाई है। वहां इसी साल अक्टूबर माह में विधानसभा चुनाव होने हैं। संगठन स्तर पर गतिशून्यता के चलते कार्यकर्ताओं का उत्साह रसातल पर जा पहुंचा है। विजय कौशिक ने 'स्वदेश' के साथ बातचीत में कहा कि इस्तीफा देने के बजाए अच्छा होता राहुल गांधी फिर से पार्टी को खड़ा करने का प्रयास करते। पेश है बातचीत के अंश -

सवाल: लोकसभा चुनाव के बाद अगली चुनौती अब पांच राज्यों में है। बिना नेतृत्व के पार्टी कैसे लड़ाई लड़ेगी?

जवाब: जब से राहुल गांधी ने इतीफा दिया है, तब से स्थिति और अधिक भयावह हो गई है। हम जिन राज्यों में जीतने की स्थिति में थे, अब एक कदम और पीछे चले गए। अच्छा होता, त्यागपत्र के बजाए पार्टी अध्यक्ष फिर से लड़ाई लड़ते। हम कदम से कदम मिलाकर चलते। उनके बिना कुछ कह पाना मुश्किल है क्योंकि पार्टी में राहुल गांधी का कोई विकल्प नहीं।

सवाल: भाजपा के पास सशक्त नेतृत्व के अलावा मुख्यमंत्री के रूप में मनोहरलाल खट्टर जैसा स्थापित चेहरा का कांग्रेस के पास क्या कोई तोड़ है? पार्टी चुनाव दर चुनाव हार रही है। क्या पार्टी के पास प्रदेश की मौजूदा टीम का कोई विकल्प नहीं है?

जवाब: इसी मांग को लेकर हम दो दिन से पार्टी मुख्यालय में धरना दे रहे हैं कि सच्चाई उपर तक पहुंचे और निर्णय हो। मेरा मानना है कि गलत सलाह देने वालों और कार्यकर्ताओं को गुमराह करने वाले नेताओं को तड़ीपार कर देना चाहिए। पार्टी हित में त्वरित व सख्त निर्णयों की दरकार है। मैं समझता हूं कि यह कार्य राहुल गांधी से बेहतर कोई और नहीं कर सकता।

सावल: अगले कुछ ही माह बाद राज्य में विधानसभा चुनाव हैं। पार्टी किन मुद्दों के साथ जनता के बीच जाएगी?

जवाब: देखिए, मुद्दों का अभाव नहीं है। जरूरत है अपनी बात रखने की। खट्टर शासन के चलते राज्य में कई तरह की विसंगतियां पनप रही हैं। मसलन, गुंडागर्दी, बेराजगारी, बिजली, पानी की किल्लत ने आम लोगों की दिनचर्या जैसे रोक दी है। फिर ढ़ुलमुल कानून व्यवस्था के चलते लोगों में विरोध के स्वर तीखे हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था अलग अपना रोना रो रही है। मेरा मानना है अगर इन गंभीर मुददों को लेकर हम जनता के बीच जाएं तो खट्टर सरकार को धूल चटा सकते हैं। फिर वहां भाजपा के अंदर ही घमासान मचा हुआ है। सीधे तौर पर हम इसका फायदा ले सकते हैं।

सवाल: लेकिन, घमासान कांग्रेस में ही क्या कम है, जो आए रोज सिरफुटव्वल की खबरें आती रहती हैं? इस बार हुड्डा मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी से कम पर मानने को तैयार नहीं। उन्हें साधा न गया तो वे अलग पार्टी बना सकते हैं? फिर मौजूदा अध्यक्ष अशोक तंवर पीछे नहीं हटना चाहते। भले ही वे पार्टी को कोई उपलब्धि न दिलवा पाए हों। कुलदीप विश्नोई, एसी चैधरी, धर्म सिंह छोकर अपनी-अपनी चादर ताने बैठे हैं।

जवाब: समय के साथ परिवर्तन प्रकृति प्रदृत्त नियम है। जहां तक हुड्डा की बात है तो वे राज्य के मजबूत व कद्दावर नेता हैं। हुड्डा जो सोचते हैं वही पार्टी के अन्य नेता भी सोचते होंगे। लेकिन, पार्टी हित में जो सबसे बेहतर हो, वही निर्णय होना चाहिए। एक मजबूत सिपाही होने के नाते हमें तो केवल निर्णय को मानना होता है। वो हम कर ही रहे हैं।

सवाल: आप खट्टर सरकार से मुकाबले की बात करत हैं। लेकिन, वहां खट्टर सरकार के ईमानदारी से किए गए कार्याें से आम मतदाता खुश बताया जाता है। कोई एंटी इनकमबेंसी फेक्टर नहीं है। हाल ही में लोकसभा की भाजपा ने दसों सीटें जीती हैं।

जवाब: लोकसभा चुनाव में लोगों ने सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम वोट किया। स्थानीय नेता कौन चुनाव लड़ रहा, इस पर मतदाता ने फोकस ही नहीं किया। मेरा मानना है खट्टर की असली चुनौती तो अब विधानसभा चुनाव में होनी है। पार्टी संभल जाए तो अभी भी हम चुनाव जीतने का दमखम रखते हैं।

सवाल: लेकिन, गुटों में बंटी कांग्रेस के पास क्या कार्ययोजना है? क्या कोई समन्वय बिठाने का काम किया जा रहा है? प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने पार्टी में एकजुटता लाने के लिए बस यात्रा की बात की थी। अब तक कितने नेताओं ने साथ बैठकर यात्रा की है?

जवाब: राजनीति में महात्वाकांक्षी होना कोई बुराई नहीं है। लेकिन, निजी स्वार्थ के चलते पार्टी हितों को ताक पर रख देना अच्छी बात नहीं होती। दुर्भाग्य से कुछ लोग इस तरह के कार्य को अंजाम दे देत हैं। जिससे पार्टी स्तर पर गलत संदेश जाता है। कुछ गल्तियां हो जाती है इसका मतलब यह तो नहीं कि सुधार की गुजाइश ही नहीं। जहां तक बस यात्रा का सवाल है तो यह चरणबद्ध प्रक्रिया है, जो चल रही है। आप देखेंगे इसके परिणाम भी आशानुकूल निकलेंगे।

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