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शाहीनबाग का ये है सच

- शिराज कुरैशी

Update: 2020-02-02 11:34 GMT

एक सड़क अपोलो हॉस्पिटल से होकर वाया कालिंद्री कुंज जसोला से नोएडा की और जाती है। उसी सड़क के बायीं ओर एक अवैध बस्ती बनी हुई है जिसे शाहीनबाग नाम दिया गया है जिसमें कुछ हिस्सा जमुना नदी का कैचमेंट एरिया है और दूसरी ओर एक नाला है जिसे वहां के लोग नहर बोलते हंै। बदबूदार, सीलन और गंदगी से भरा इलाका जहां पर अधिकतर मकान अवैध बने हुये हैं तथा चार-पांच मंजिला बिल्डिंग में छोटे-छोटे दड़वेनुमा फ्लैट हैं जिसमेें जाने की गलियां एक अपने किस्म का जाल बनाती हैं और कुछ-कुछ भूल भुलैया की तरह लगती हैं।

ज्यादातर आबादी उत्तर प्रदेश, बिहार के उन लोगों से भरी है जो कि रोजगार की तलाश में यहां आए हैं या नौकरियां करते हंै। लोग कहते हैं कि बहुत से अपराधी भी अपनी फरारी यहीं काटते हैं और उन जालनुमा गलियों में पुलिस से महफूज रहते हैं। मिलावटी तेल धी से बनी गोश्त और तरकारियां तथा मैदा की सफेद सी तंदूरी रोटियां यहां की खासियत है और तरह-तरह की बिरयानी भी मिलती है। चाय की छोटी-छोटी गुमटियां यहां होने वाली चर्चाओं का मंच होती हंै और पूरा दिन और आधी रात तक शाहीनबाग जामिया नगर जागता रहता है।

मुख्य मार्ग को बाधित करके एक बड़ा सा टेंट लगा है, आने-जाने वालों की बाकायदा चैकिंग की जा रही है, पहचान कर टेंट के अंदर किया जा रहा है और टेंट के अंदर जेएनयू के लड़के लड़कियां हाथों में डपली और छोटे तबलेनुमा यंत्र लिये हुये उसे लगातार बजाकर नारे नुमा गाने गा रहे हैं जिसमें ज्यादातर कम्युनिस्ट शैली के गाने और नारे ही हैं और जो जनता उस टेंट में विरोध प्रदर्शन के नाम से लायी जा रही है वह उन नारों और गानों से मंत्रमुग्ध होकर बिना सोचे समझे उन नारों और गानों को दोहरा रहे हंै।

मैं खुद उस जगह गया और देखा तो मुझे इस विरोध प्रदर्शन के पीछे कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जो मुझे यह समझा सके कि वह क्यों विरोध कर रहा है।

कुछ नौजवानों से मेरी बात रोड पर लगी तंदूरी चाय की दुकान पर हुई। मैंने पूछा कि इस विरोध के पीछे क्या आपकी सोच है तो वह मुस्लिम नौजवान बोला कि हमें यहां से निकाला जा रहा है, तब मैंने प्रश्न किया कहां से निकाला जा रहा है तो वह नौजवान कुछ सकपका कर बोला कि हिन्दुस्तान से। मैंने पुन: प्रश्न किया कि कौन निकाल रहा है तो वह नौजवान बोला कि मोदी और शाह मिल कर निकाल रहे हंै। मुझे उस नौजवान की जानकारी उस विरोध प्रदर्शन के खोखले होने पर बहुत दया आयी और मैंने उसे समझाने की कोशिश की। सीएए किसी की भी नागरिकता छीेनने वाला कानून नहीं है बल्कि वह तो पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध लोगों को नागरिकता देने वाला कानून है जो कि 31 दिसम्बर 2014 को या उससे पूर्व भारत में आ चुके हंै। हमारी बात वहीं पर खड़ी एक जेएनयू की छात्रा सुन रही थी, वह तुरंत ही बीच में आकर मुझ से कुतर्क करने लगी कि आपको नहीं मालूम कि मुसलमानों को इस देश से निकालने के लिये ही यह काला कानून बनाया गया है और अब सभी मुसलमानों को डिटेंशन सेंटर्स में डाल दिया जायेगा। मैं समझ गया कि यह काली सोच इस शाहीनबाग में इन जेएनयू के षड्यंत्र कारियों ने भरी है जो कि मुसलमानों के कंधे पर रख कर अपनी बंदूक चला रहे हैं।

शाहीनबाग में जो विरोध रोड पर किया जा रहा है उसमें किसी भी वैचारिक ताकत का परिचय नहीं हो रहा है सिर्फ हो-हल्ला या तथाकथित बुद्धिजीवियों के उकसाने वालेे भाषण जो कि देश को तोडऩे की बात कहते हैं और उनके पीछे स्थानीय नेताओं का लालच भरा चेहरा जो कि इस भीड़ को अपना वोटबैंक समझ रहे हंै। सच्चे मायनों में शाहीनबाग का आंदोलन एक दिशाहीन आंदोलन है जिससे ना मुसलमान का भला होगा और ना ही देश का।

शाहीनबाग में भी हैं कुछ चमकदार चेहरे:

डां. इमरान चौधरी, जो कि जामिया मिलिया इस्लामिया दिल्ली के पूर्व छात्र हैं तथा वहां पर कुछ समय अध्यापन भी कराया है।फारसी के विद्वान है तथा राष्ट्रपति से पदक भी प्राप्त किया है, जो कि गली-गली धूमकर सीएए को लोगों को समझा रहे हैं कि यह कानून भारत के किसी भी मुसलमान पर लागू नहीं होता है तथा शाहीनबाग और जामिया का प्रदर्शन खत्म होना चाहिये।मुफ्ती बजाहत कासमी, जो कि इस्लाम के धर्मगुरू हैं और सीएए का समर्थन कर रहे हैं। मुफ्ती साहेब का निवास भी शाहीनबाग में हैं और अपने घर पर रोज ही सीएए के समर्थन में छोटी-छोटी सभाएं कर रहे हैं जिनमें से पांच सभाओं में खुद मैं भी शामिल रहा था। पद्मश्री मोहम्मद हनीफ खान शास्त्री जो तारीख 26/1/2020 को शाहीनबाग में ही इंतकाल कर गये और अपने आखिरी समय में भी वह सीएए का समर्थन कर रहे थे। मेरी खुद उनसे करीब 15 दिन पहले फोन पर बात हुई थी उन्होंने शाहीनबाग के विरोध प्रदर्शन पर अपनी चिंता प्रकट की थी। मगर अफसोस कि उनके जनाजे में खुद को मुसलमानों का हमदर्द कहने वाले शाहीनबाग के नेता शामिल नहीं हुये जबकि हनीफ शास्त्री शाहीन बाग के इकलौते पद्मश्री प्राप्त विद्वान थे।

(लेखक राष्ट्रीय चिंतक और विचारक हैं।) 

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