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राजनीति में धैर्य की भी सीमा होती है !

तूणीर - नवल गर्ग

Update: 2020-03-16 15:22 GMT

बड़े बूढ़ों ने कहा है कि धैर्य संस्कारवान जनों का आवश्यक लक्षण है। चूंकि बड़े बूढ़े कह गए हैं तो यह गलत तो नहीं ही हो सकता। किंतु धैर्य कब तक ? शायद इसकी समय सीमा की व्याख्या अब तक किसी ने नहीं की थी । इसे हाल ही घटित हुए पप्पू और मम्मी के दल (जिसमें हमारे मध्य प्रदेश के श्रीमान बंटाढार भी हैं और इसके खात्मे के लिए जोर-शोर से जुटे हुए हैं) में हुए अभूतपूर्व घटनाक्रम ने परिभाषित कर दिया है। राजनीति के मैदान में धैर्य की समय सीमा के पार होने के बाद ही कांग्रेस से ज्योतिर्+आदित्य जी ने अपना बोरिया बिस्तर समेटा और नई ऊर्जा व उमंग के साथ होली के चटक रंगों में अपने मन, उत्साह और भविष्य को रंगकर, स्वयं सदल बल और अधिक ऊर्जा व आनंद के साथ हो लिए। इससे यह तय हो गया कि पीडि़त के संस्कार, गरिमामय उच्च आदर्श, सद्चरित्रता और अनुशासन के नाम पर अन्याय, अनदेखी, उपेक्षा और कुटिलताओं को धैर्य के नाम पर सहन करने / करते जाने की समय सीमा पार कर जाने पर जो भूचाल और जलजला आता है, ( जिससे सबसे पुराने राजनैतिक दल और उसके रहनुमाओं, उसके कफऩ में अंतिम कील ठोकने को तैयार बैठे घाघ परचमधारियों की जमीन भी हिल जाती है), उसका प्रभाव यह होता है कि विचारशून्यता और मस्तिष्क की रिक्तता, उस दल के आकाओं को सबसे बड़ी आपदा बनकर ऐसी घेरती है कि दलीय क्षत्रपों को सूझ ही नहीं पड़ता कि कब, क्या, कैसे करें ?

वस्तुत: जनता से जुड़ी किसी भी संस्था या व्यक्ति के लिए जड़ता ऐसा महान पाप है जिसका परिणाम पश्चाताप स्वरूप पैर पीटने के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं हो सकता। और यह तो सभी जानते हैं कि पैर पीटना सक्रिय होने का संकेत नहीं होता।

उधर ग्वालियर क्षेत्र ही नहीं संपूर्ण मध्यप्रदेश व देश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की, उनकी कर्मठता और शालीनता की जो छवि है वह आलू से सोना बनाने वाले शोध वैज्ञानिक पुत्र से बहुत अलग और सम्मान अर्जित करने वाली है। और कांग्रेस में कोई माने या ना माने उनके सकारात्मक विचार व कर्मशीलता के लिए यही कहा जाएगा कि

माना कि जमीं को गुलजार न कर सके...!

कुछ कांटे तो कम कर गये, गुजरे जिधर से हम...!!

उनका यही प्रभामण्डल उन्हें इस युवा आयु में भी हम उम्र या अन्य वरिष्ठ नेताओं की बेतरतीब फौज से बहुत ऊंचे स्थान पर स्थापित करता है। आदर्श व नैतिक मूल्य आधारित राजनीति की यह एक सकारात्मक मिसाल है।

सिंधिया जी व वर्तमान परिदृश्य पर किसी की ये पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं।

सभी को ग़म है, इस समुंदर के ख़ुश्क होने का...!

कि खेल तो अब शुरू हुआ कश्तियाँ डुबोने का...!!

कांग्रेस और उनके बड़बोले, ढपोरशंख नेताओं की अकड़ अभी भी वैसी ही है तो उनके लिए भी उपरोक्तदूसरी पंक्ति मौजूं लग रही है कि

कि खेल तो अब शुरू हुआ है ....

यह खेल देर तक चलने वाला है.....। राज्यसभा में महाराज और मध्यप्रदेश में शिवराज । महाराज देंगे नमो के महामंत्र सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास " को नई आवाज। शिवराज करेंगे डेढ़ साल के पप्पू - बहिना - मम्मी और ढपोरशंख की पार्टी के मुख्यमंत्री 'न नाथ केवल+अनाथÓ द्वारा फैलाए गए कचरे को साफ। प्रकारांतर से यह भी होगा नमो के सफाई मंत्र का पुन: आगाज़ । शिवराज और महाराज एक साथ गाएंगे एक ही राग ---

दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद, वक्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं...!

मेरी गली से गुजरते हैं छुपा के खंजर, रू-ब-रू होने पर सलाम किया करते हैं...!!

कमल पुष्प के आंगन में महाराज की नई पारी की शुरुआत बीजेपी के प्रदेश प्रमुख व अन्य कद्दावरों द्वारा किए गए आत्मीय स्वागत व भोजन भजन के साथ हो रही है। भोजन पर गुफ्तगू तो स्वाभाविक ही है । तस्वीरों के रंग बता रहे हैं जैसे पुरानी आत्मीयता का पुनस्र्थापन हो रहा है। इसलिए कहना होगा कि

ये गुफ़्तगू के हुनर क्या तुम्हें नहीं मालूम...!

दिलों पर लफ्ज़़ नहीं, लहजे असर करते हैं...!!

और इस लहजे को बैंगलूर गए जीतू भैया , दिल्ली में बैठे पप्पू भैय्या या यहां रह रहे कमलनाथ व श्रीमान् बंटाढार क्यों नहीं समझ पा रहे यह समझ में नहीं आने वाली बात है।

पप्पू भैय्या को तो यह भी समझ नहीं आ रहा कि उनका हमराज बेगाना क्यों हो गया ?

वे परेशान हैं बार - बार नहीं हर बार इम्तहान देते हुए भी, उनमें लगातार शून्य या नेगेटिव अंकों के साथ हार के ठीकरे को झेलते हुए, यह सोचकर कि

पता नहीं कैसे परखता है, मेरा ख़ुदा मुझको...!

इम्तेहान भी लेता है और जीतने भी नहीं देता...!!

जो भी हो , राजनीति में धैर्य की भी सीमा होती है, यह अब पप्पू और उनके सिपहसालारों को अब तो समझ में आ ही जाना चाहिए।

(लेखक पूर्व जिला न्यायाधीश हैं) 

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