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काश। बदनापुरा व रेशमपुरा में भी होती जाबाली

दिनेश राव

Update: 2020-06-23 01:45 GMT

ग्वालियर। बेडिय़ा व बांछड़ा समाज में वेश्यावृत्ति जैसी कुप्रथा को रोकने के लिए मध्य प्रदेश सरकार की जाबाली योजना को यदि ग्वालियर में भी लागू किया गया होता तो आज बदनापुर व रेशमपुरा में रहने वाली इस समाज की महिलाओं को न केवल शहर में तन बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता बल्कि मुंबई, नागपुर जैसे महानगरों की भी शरण नहीं लेनी पड़ती।

लगभग एक हजार की आबादी वाले इन दोनों क्षेत्रों में बेडिय़ा व बांछड़ा समाज के लोग ही निवास करते हैं। जीविकोपार्जन के लिए यह लोग वेश्यावृत्ति को ही अपना प्रमुख व्यवसाय मानते हैं। शासन व प्रशासन स्तर पर वेश्यावृत्ति जैसी कुप्रथा से मुक्त करने के लिए यहां कई अभियान चलाये गए। कई बार छापामार कार्रवाई की गई। स्वयंसेवी संगठनों के माध्यमों से भी वेश्यावृत्ति को दूर करने के प्रयास किए गए। कुछ प्रयास महिला बाल विकास विभाग की ओर से भी किए गए लेकिन अलग से इसके लिए बजट का प्रावधान नहीं होने से यह कुप्रथा आज भी बदस्तूर जारी है। इसका प्रमुख कारण जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा भी ही रही। बेडिय़ा समाज के रामस्नेही छारी ने इस कुप्रथा को दूर करने के काफी प्रयास किए। मुरैना में अभ्युदय आश्रम की स्थापना कर उन्होंने इस कुप्रथा को काफी हद तक दूर किया।

मुरैना में तो इस आश्रम के माध्यम से आज भी काम हो रहा है लेकिन उनके निधन के बाद से बदनापुरा व रेशमपुरा में इस कुप्रथा को दूर करने के प्रयास नहीं हो सके।

कुछ ही शहरों में ही लागू हो सकी जाबाली योजना

बांछड़ा व बेडिय़ा समाज की महिलाओं को देह व्यापार के दल-दल से निकालने के लिए शासन ने 28 साल पहले 1992 में जाबाली योजना बनाई थी। इसमें एनजीओ के माध्यम से बांछड़ा महिलाओं का पुनर्वास का लक्ष्य रखा गया था। मध्य प्रदेश के मुरैना , भिण्ड, शिवपुरी,, गुना, नीमच, मंदसौर तथा रतलाम में शहर में तो यह योजना लागू की गई और वहां काफी हद तक इस योजना का लाभ भी मिला। लेकिन अफसोस ग्वालियर में बदनापुर और रेशमपुरा के लिए यह योजना लागू नहीं हो सकी और यही कारण है कि आज भी यहां रहने वाली इस समाज की महिलाओं को तन बेचकर अपना गुजारा करना पड़ रहा है।

क्यों पड़ा नाम जाबाली

1992 में इस समाज की महिलाओं में वेश्यावृत्ति जब चरम पर थी तब सुंदरलाल पटवा जी की सरकार में इस कुप्रथा को दूर करने पर विचार हुआ। तब योजना के नाम को लेकर काफी मंथन हुआ। तब किसी ने सत्यकाम जाबाल का नाम सुझाया । सत्यकाम जाबाल वेश्या जाबाली के पुत्र थे। गौतम ऋ षि के आश्रम में जब वे विद्याध्ययन के लिए गए तो उनके पिता का नाम व गोत्र पूछा गया। बालक बता नहीं सका। तब उसने मां से पूछा कि मेरे पिता का नाम व मेरा गोत्र क्या है। तब मां ने पुत्र से कहा कि ऋ षि को बताना कि मेरी मां अनेक पुरूषों को प्रसन्न करती रहीं थीं, इस कारण पिता व गोत्र बताना कठिन है। हां, मेरी मां जाबाली है और उसका पुत्र मैं जाबाल हूं । ऋषि के पास जाकर बालक ने नि:संकोच वही बताया जो मां ने कहा था। ऋषि ने सुना, तो कहा कि तुमने सत्य बोला है, इसलिए तुम निश्चित ही ब्राह्मण की संतान हो । ऋषि ने बालक को अपने आश्रम में विद्याध्ययन हेतु प्रवेश दे दिया। आगे चलकर यही बालक सत्यकाम जाबाल के रूप में पहचाना गया और इसी कारण वेश्यावृत्ति में लगी महिलाओं के उत्थान के लिए जाबाली नाम की योजना प्रदेश के उन क्षेत्रों में लागू की गई जहां बाछड़ा व बेडिय़ा समाज की महिलाएं वेश्यावृत्ति में लिप्त थी।

क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि

इस योजना के तहत रतलाम, नीमच, सागर जैसे शहरों में बहुत काम किया गया है। ग्वालियर में बदनापुरा व रेशमपुरा में भी इस तरह की शिकायतें मिली हैं जिन्हें जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन की मदद से रोकने व उन्हें जागरुक करने के

लिए समय समय पर अभियान चलाये जाते हैं। जाबाली योजना ग्वालियर में भी लागू हो, इसके पूरे पूरे प्रयास किये जाएंगे। विधानसभा में भी इसे उठाया जाएगा।

प्रवीण पाठक

विधायक

ग्वालियर दक्षिण

शासन की यह योजना काफी अच्छी योजना है। ग्वालियर में यह योजना क्यों लागू नहीं हो सकी। इसकी विस्तार से जानकारी शासन व प्रशासन स्तर पर लेंगे। एक जनप्रतिनिधि होने के नाते मेरा पूरा प्रयास होगा कि यह योजना ग्वालियर जिले में भी लागू हो ताकि इसका लाभ बेडिय़ा व बांछड़ा समाज के लोगों को मिल सके।

मुन्नालाल गोयल

पूर्व विधायक

ग्वालियर पूर्व

बदनापुरा व रेशमपुरा में काफी हद तक वेश्यावृत्ति की प्रवृत्ति पर रोक लगी है। लेकिन पूरी तरह से इस कुप्रथा को रोका नहीं गया है। समय समय पर शासन व प्रशासन स्तर पर इनके पुनर्वास के प्रयास किये जाते हैं। यदि प्रदेश में इस तरह की कोई योजना चल रही है तो निश्चिततौर पर इसे ग्वालियर में लागू कराने के प्रयास किए जाएंगे।

प्रद्युम्न सिंह तोमर

पूर्व मंत्री

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