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लोकसभा 2019 : जगन्नाथपुरी से बजाएंगे मोदी रणभेरी

मोदी के सहारे पूर्व में संभावनाओं के द्वार खोलेगी भाजपा

Update: 2019-01-08 15:07 GMT

नई दिल्ली। मां गंगा की सेवा करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब भगवान जगन्नाथपुरी के शरणागत होंगे। 2014 में मां गंगा ने मोदी को बनारस बुलाया था, अब 2019 में भगवान जगन्नाथ पुरी आने को कह रहे हैं। क्या बनारस के वे सारे विकास कार्य पूरे हो गए, जो मोदी वहां से पलायन करेंगे? मां गंगा के आशीर्वाद के चलते उत्तर प्रदेश में भाजपा को छप्पर फाड़ बहुमत मिला था, क्या ऐसा ही आशीर्वाद जगन्नाथपुरी भी देंगे, जिसके दम पर 272 का चमत्कार हो जाए? लीक से हटकर चलने में यकीन रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार भी कुछ नया प्रयोग करने जा रहे हैं। पहले उन्होंने उस कहावत को चरितार्थ कराया कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। अब वे पुरी से चुनाव लड़कर नई कहावत गढ़ना चाहते हैं।

तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान के हिन्दी बेल्ट हाथ से निकल जाने के बाद मोदी-शाह की जोड़ी इसकी भरपाई पश्चिम बंगाल सहित पूर्वी राज्यों से करना चाहती है। इसके लिए पार्टी अपने प्रमुख चेहरे मोदी को पुरी से चुनाव लड़वाकर पश्चिम बंगाल में भगवा लहर चलाना चाहती है, ठीक उसी तरह जैसे 2014 में बनारस से चुनाव लड़कर मोदी ने पूरे उत्तर प्रदेश में हवा बनाई थी। पुरी के अलावा गुजरात से भी मोदी के चुनाव लड़ने के संकेत मिले हैं ताकि संभावना और सुनिश्चितता का संतुलन बरकरार रह सकेे।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लगातार पश्चिम बंगाल की यात्रा करते रहे हैं। कार्यकर्ताओं को मिशन-2019 के तहत 25 प्लस का संकल्प दिलवाते रहे हैं। इस संकल्प को पूरा करने के लिए पार्टी मोदी को आगे करके अपनी पूरी ताकत झोंक देना चाहती है। पार्टी रणनीतिकारों का मानना है कि उड़ीसा पूर्वी राज्यों का प्रवेश द्वार है और यहां से भगवा लहर बहेगी तो पश्चिम बंगाल सहित अन्य पूर्वाेत्तर राज्यों में इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। उड़ीसा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भाजपा ने जमीनी स्तर पर पिछले पांच सालों में उम्मीद से कहीं अधिक संगठन को मजबूत किया है। पश्चिम बंगाल में तो उसने पंचायत चुनाव में दूसरा स्थान बनाकर वामपंथियों व कांग्रेस के दांत ही खट्टे कर दिए। यही स्थिति उड़ीसा के निकायों की बन पड़ी है। फिर असम, मेघालय और त्रिपुरा जैसे राज्यों में उसकी संभावनाएं बोनस के तौर पर बरकरार हैं। एनआरसी का मसला इस कड़ी में भाजपा के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की 65 सीटों में भाजपा ने 2014 में 62 सीट जीतकर दिल्ली की राह आसान बनाई थी, लेकिन, विधानसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद माना जा रहा है कि भाजपा को कुछ सीटों से हाथ धोना पड़े। 80 लाकसभा सीटों वाले भारी-भरकम उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-राष्ट्रीय लोकदल के एक साथ चुनाव लड़ने की स्थिति में भी भाजपा को नुकसान बताया जा रहा है। ऐसे में पश्चिम बंगाल और उड़ीसा इस होने वाले नुकसान की भरपाई करने में लीड रोल अदा कर सकते हैं। 

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