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जनजागरुकता के अभाव में हांफ रही भारत सरकार की गोबर गैस योजना

बीस साल में सिर्फ दो हजार घरों में ही लग पाए हैं गोबर गैस संयंत्र

Update: 2019-12-06 10:15 GMT

ग्वालियर/वेब डेस्क। भारत की गोबर गैस योजना दुनिया में सबसे पुरानी बायो गैस योजनाओं में से एक है। इस योजना को भारत सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त है। भारत सरकार इसके लिए अनुदान भी देती है। वर्तमान युग में गोबर गैस जहां सबसे सस्ता ईधन है वहीं इसमें आउटलेट से एक बाय-प्रोडक्ट निकलता है, जो कई पोषक तत्वों से समृद्ध होता है, जिसे खेतों में खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इससे गंदगी का कोई नामो निशान भी नहीं बचता है, लेकिन फिर क्या कारण है कि पिछले करीब 20 सालों से निरंतर चल रहा गोबर गैस के प्रति जागरूकता अभियान अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले ही थक कर हांफता दिख रहा है? यह सवाल इसलिए है क्योंकि वर्तमान में भारत में केवल दो प्रतिशत ग्रामीणजन ही बायो गैस का उपयोग करते हैं। ग्वालियर जिले की बात करें तो एक अनुमान के अनुसार अब तक करीब दो हजार घरों में ही गोरब गैस संयंत्र लग पाए हैं। जानकार इसके पीछे मुख्य कारण जनजागरूकता का अभाव बता रहे हैं।

गोरब गैस को प्रोत्साहन देने के लिए भारत सरकार हर साल प्रत्येक जिले को एक लक्ष्य देती है। इसी के तहत ग्वालियर जिले को भी हर साल लक्ष्य मिलता है। इस लक्ष्य को पूर्ण करने की जिम्मेदारी कृषि विभाग की होती है। साल 2019-20 में ग्वालियर जिले को ग्रामीण क्षेत्र में 71 गोबर गैस संयंत्र लगाने का लक्ष्य मिला था, लेकिन अब तक केवल 12 घरों में ही गोरब गैस संयंत्र लग पाए हैं, जबकि 30 लोगों का पंजीयन किया गया है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि गोबर गैस योजना असफल क्यों है? इस संबंध में कृषि विभाग के उप संचालक आनंद कुमार बड़ोनिया का कहना है कि लक्ष्य जून माह में मिलता है, लेकिन मानसून सीजन में किसान खरीफ फसलों में और मानसून उपरांत रबी फसलों की बोवनी में व्यस्त रहते हैं। इसके चलते गोबर गैस संयंत्र लगाने का काम जनवरी से फरवरी तक होता है। अत: पिछले सालों की तरह इस साल भी लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा। लक्ष्य छोटा मिलने के सवाल पर श्री बड़ोनिया ने बताया कि यह योजना प्रोत्साहन के लिए है, ताकि लोग दूसरों के यहां लगे गोबर गैस संयंत्र को देखकर स्वयं के खर्च पर अपने घर में भी यह संयंत्र लगाने के लिए प्रेरित हों। वर्तमान में जिले में गोबर गैस संयंत्रों की संख्या के सवाल पर श्री बड़ोनिया का कहना था कि इसका आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन एक अनुमान के अनुसार जिले में वर्तमान में करीब दो हजार घरों में गोबर गैस संयंत्र का उपयोग किया जा रहा है।

गोबर गैस संयंत्र लगवाकर प्रसन्न हैं रामबेटी

मुरार विकासखंड के अंतर्गत बेरजा रोड स्थित ग्राम गोवई में रहने वाली रामबेटी पत्नी कोक सिंह बघेल ने ग्राम सेवक से संपर्क कर इस योजना का लाभ उठाते हुए अपने घर में फरवरी 2019 में गोबर गैस संयंत्र लगवाया था, जिसमें कुल 20 हजार रुपए का खर्चा आया। शासन की ओर से उन्हें 14500 रुपए अनुदान के रूप में मिले। रामबेटी बताती हैं कि मेरे घर में गोबर गैस संयंत्र लग जाने से मैं बहुत प्रसन्न हूं। खाना पकाने के लिए अब मुझे न तो गोबर के कंडे थापना पडते हैं और न ही जंगल से लकड़ी एकत्रित करके लाना पड़ती है। गोबर गैस से अब मैं जब चाहूं तब खाना पका लेती हैं। इससे बर्तन भी काले नहीं होते हैं और लकड़ी व कंडों से रसोईघर में होने वाले धुएं से भी मुक्ति मिल गई है।

14, 500 रुपए मिलता है अनुदान

राष्ट्रीय बायो गैस एवं मेन्योर मैनेजमेंट कार्यक्रम के तहत गोरब गैस संयंत्र निर्माण के लिए सामान्य एवं पिछड़ा वर्ग के व्यक्ति को एमपी एगो से 12000 हजार रुपए एवं कृषि विभाग से 2500 रुपए कुल 12500 रुपए का अनुदान मिलता है, जबकि अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के व्यक्ति को एक हजार रुपए अधिक यानी कि 15500 रुपए अनुमान दिया जाता है।

ये हैं गोबर गैस से लाभ

गोरब गैस एक स्वच्छ और सस्ता ईधन है। इसमें 50 से 70 प्रतिशत तक ज्वलनशील मीथेन गैस होती है। इसका उपयोग 24 घंटे कभी भी किया जा सकता है। एक घनमीटर गोबर गैस संयंत्र के लिए दो से तीन और तीन घनमीटर गोरब गैस संयंत्र के लिए चार से छह पशुओं के गोबर की आवश्यकता होती है। इस संयंत्र से निकलने वाले खाद का खेतों में उपयोग करने से फसल उत्पादन में 18 से 20 प्रतिशत वृद्धि होती है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी है। रसोईघर में धुआं नहीं होने से नेत्र एवं फेफड़ों से संबंधित रोगों से भी बचा जा सकता है। 

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