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बंगाल में 'खेला होबे' या 'असोल पोरिबर्तन'

विवेक श्रीवास्तव

Update: 2021-04-06 09:15 GMT

उत्तर प्रदेश के रास्ते दिल्ली और दिल्ली के बाद देश के अन्य राज्यों तक पहुंची भाजपा की विजय यात्रा में अगला पड़ाव पश्चिम बंगाल सहित देश के वे पांच राज्य हैं जहां चुनाव हो रहे हैं। इन राज्यों में हो रहे चुनाव के साथ ही विपक्ष ने यह कहना शुरू कर दिया है कि सत्ता में आने के लिए भाजपा कुछ भी करेगी। हालांकि यह हताशा भरा जुमला है जो विपक्ष की तरफ से हर चुनाव में दोहराया जाता है। कुछ ऐसा ही इस बार भी है। चुनाव हालांकि पांच राज्यों में हो रहे हैं लेकिन ज्यादा चर्चा पश्चिम बंगाल की है। पांच राज्यों के चुनाव नतीजे क्या होंगे इस बारे में कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी ही होगी लेकिन यह समझना होगा कि पश्चिम बंगाल में भाजपा का सत्ता में आने के लिए क्यों इतना जोर लगा रही है। इस सवाल का सीधा जवाब तो यही है कि भाजपा एक राजनीतिक दल है और चुनाव लडऩा और सत्ता हासिल करना उसका अधिकार है। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि भाजपा और देश के अन्य राजनीतिक दलों में कुछ बुनियादी अंतर हैं जो भाजपा को दूसरे राजनीतिक दलों से अलग करती है। पहला तो यही कि भाजपा के लिए सत्ता सेवा का माध्यम है। यानी राजनैतिक सत्ता हासिल कर राष्ट्र को मजबूत बनाना, विश्व में भारत का परचम लहराना और देशवासियों को आर्थिक सामाजिक स्तर पर ऊंचा उठाना है। पश्चिम बंगाल में भाजपा की सत्ता के लिए जोर आजमाइश क्यों जरूरी है इसके लिए थोड़ा पीछे जाना और यहां के धार्मिक जनसांख्यकीय परिवर्तन की पड़ताल करना जरूरी होगा।

असम, बंगाल और बिहार ऐसे राज्य हैं जहां घुसपैठ आज भी बड़ा मुद्दा है। पिछले कई दशकों में यहां घुसपैठ हुई बल्कि इसकी अनदेखी भी हुई। अनदेखी इसलिए कि चुनाव जीतने के लिए तत्कालीन सरकारों ने इस घुसपैठ को वोट बैंक के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। पिछले पांच दशकों के आंकड़ों पर नजर डालें तो सामने आता है कि देश में मुस्लिम आबादी में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। लेकिन असम में यह 11 प्रतिशत और बंगाल में 7 प्रतिशत तक पहुंच गई। पिछले सालों के जनसंख्या के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो अकेले असम के ही 27 में से 9 जिले मुस्लिम बाहुल्य जिलों की शल में आ चुके हैं। पश्चिम बंगाल में 1961-71 1971-81 की जनसँख्या के आंकड़ों के अनुसार पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी जो 30 प्रतिशत से कम थी,1981- 91में 37 प्रतिशत तक पहुंच गई। इसे संयोग नहीं कहा जा सकता है और ना ही ऐसा मुस्लिमों द्वारा अधिक बच्चे पैदा करने की वजह से हुआ है। पश्चिम बंगाल में घुसपैठ का जो खेल कांग्रेस ने खेला, सत्ता में आने बाद वाम मोर्चा की सरकार ने भी वही किया। वाममोर्चा की बंगाल में लंबी राजनैतिक पारी के पीछे यही ठोस आधार था। वाममोर्चा का सफाया कर सत्ता में आईं ममता बनर्जी ने भी इसी रास्ते का अनुसरण किया। राज्य में अराजकता के जो हालात हैं वह किसी से नहीं छिपे हैं। चुनाव में टीएमसी और कांग्रेस वाम गठबंधन भले ही आमने सामने हों, लेकिन सच यही है कि जो वाम ने किया, ममता ने उसे दोहराया।

पश्चिम बंगाल में तृणमूल जिस वाम पंथ के आतंक को खत्म करने के नाम पर 10 साल पहले आई थी वही आतंक ममता ने बरपाया। आज जब भाजपा ने दशकों तक मेहनत की और परिणाम के नजदीक है तो कांग्रेस और वामी आज उसी ममता को संजीवनी दे रहे हैं। बंगाल में कांग्रेस और वामी साथ हैं तो यही केरल में आमने सामने। जाहिर है कि इन सब के चेहरे भले ही अलग हों लेकिन लक्ष्य एक। ऐसा नहीं कि मतदाता इस सबसे से अनजान हो, जनता यह समझ रही है। प्रतीक्षा अब यह है कि असोल पोरीबर्तन कब होगा। ममता बनर्जी की बौखलाहट तो यही बता रही है। रही बात वाम और कांग्रेस की, दोनों ही भाजपा से डरे हुए हैं, और उनका पूरा ध्यान इसे लेकर ममता को कैसे मजबूत बनाया जाए। 

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