महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद से 'स्वदेश' की विशेष बातचीत
प.पू. महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद जी ने कहा कि भारत को परम वैभव संपन्न और विश्वगुरु बनाना ईश्वरीय कार्य है। यह किसी एक व्यक्ति के वश की बात नहीं है; इसे सफल बनाने के लिए सबको साथ लेकर चलना होगा। संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित किए बिना यह कार्य संभव नहीं है। प्राचीन काल से ही भारत की पहचान धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु के रूप में रही है। यही कारण है कि दुनिया के लोग इसे विश्वगुरु मानते हैं।
मध्यप्रदेश गौपालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड की कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष रह चुके स्वामी अखिलेश्वरानंद हाल ही में ग्वालियर प्रवास पर आए थे। अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच उन्होंने 'स्वदेश' से बातचीत स्वीकार की और देश की राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक स्थिति पर विस्तार से प्रकाश डाला।
स्वामी अखिलेश्वरानंद का दृष्टिकोण
स्वामी जी का कहना है कि कठिन और विपरीत परिस्थितियों में भारत ने जिस साहस, संयम और धैर्य का परिचय दिया, उससे पूरी दुनिया उसे नेतृत्वकर्ता के रूप में देख रही है। ऐसे में भारत को वैश्विक मंच पर सनातन राष्ट्र के रूप में धार्मिक और आध्यात्मिक पहचान दिलाई जानी चाहिए।
भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्थापना काल से ही समेकित प्रयास शुरू किए थे। यह विश्वास कि भारत स्वतंत्र होगा, किन्तु स्वतंत्र भारत का स्वरूप क्या होगा, यह सुनिश्चित करने के लिए संघ ने सतत प्रयास किए। स्वतंत्र भारत के नागरिकों की अपेक्षाओं के अनुरूप देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 'स्व' का बोध आवश्यक है।
स्वामी जी ने कहा, "समाज की सज्जन शक्ति जागृत हो, सामाजिक समरसता का वातावरण बने, तभी भारत वैश्विक स्तर पर प्रगतिशील और विकसित देश के रूप में उभर सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने प्रयासों से भारत को विश्वगुरु के सर्वोच्च पद पर पुनः स्थापित करेगा।"
स्वदेशी भाव और सामाजिक चेतना
स्वामी जी ने यह भी कहा कि दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत धर्मनिरपेक्ष बन गया, जबकि शताब्दियों से इसकी वैश्विक पहचान धार्मिक और आध्यात्मिक भारत के रूप में रही। उनका मानना है कि भारत तभी स्वनिर्भर बन सकता है, जब 'स्व' का बोध और स्वदेशी का भाव सभी में जागृत हो।
संघ की भावना और कार्यशैली के अनुरूप विभिन्न क्षेत्रों में कई संगठन खड़े हुए, जिन्हें संघ का समर्थन, मार्गदर्शन और वरदहस्त प्राप्त हुआ। प्रकारांतर से ये संगठन संघ की मातृ संस्था के रूप में स्थापित हुए। 2014 के बाद भारत में नई आशा की किरणें राजनीतिक स्तर पर दिखाई देने लगीं, जिसे स्वामी जी ने भारतीय शासकों की दृढ़ राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति के रूप में देखा।