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नवरात्री का सांतवा दिवस : मंदोदरी: धर्म का पर्याय

महिमा तारे

Update: 2019-10-05 02:00 GMT

रामायण का दूसरा सबसे सशक्त महिला पात्र मंदोदरी है। वीरता, विद्वता और व्यवहारिकता के कारण मंदोदरी रामायण के पात्रों में अपना एक अलग और अनूठा स्थान रखती है। वे दानव मयासुर और स्वर्ग की अप्सरा हेमा की पुत्री है। अप्सरा की पुत्री होने के कारण वे संसार की सुंदरतम स्त्रियों में से एक है।

साहसी, महाज्ञानी, महत्वाकांक्षी, सत्वद्वीपपति रावण जिसका पति है। इंद्र पर विजय प्राप्त करने वाला पुत्र मेघनाद है। उस मंदोदरी के सौभाग्य की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती पर घमंड का एक रेशा भी उनके चरित्र में दिखायी नहीं देता।

जब उनकी मां हेमा देवताओं के आव्हान पर स्वर्ग लोक चली गई तब मंदोदरी का पालन पोषण मय राजा ने स्वयं किया था। मंदोदरी बचपन से ही शुद्ध, सात्विक और सद्गुणी थी। जब मंदोदरी किशोरी हुई तो मयराजा का अचानक से परिचय शदासेंद्र रावण से हुआ रावण ने अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं कल्याणकारी पुलस्त्य ऋषि के पुत्र विश्रवा का बेटा हूं मेरा नाम दसग्रीव है मेरे पिता ब्रह्मा जी की तीसरी पीढ़ी में पैदा हुए। इस प्रकार में पुलस्त्य ऋषि का नाती हूं। इन दिनों मैं त्रिकुट पर्वत स्थित लंकापुरी का राजा हूं। मय राजा ने शदासेंद्र रावण से अपनी पुत्री मंदोदरी का विवाह किया साथ ही अनेक दिव्यास्त्र और अमोघ शक्तियां प्रदान की। इस तरह मंदोदरी दसग्रीव की धर्मपत्नी बन गई। इस तरह सुख संपदा का कोई सामान संसार में नहीं था जो मंदोदरी के साम्राज्य में न हो।

मंदोदरी का जो सौभाग्य था वही उसका दुर्भाग्य भी था। जहां एक ओर वे वीर, विद्वान, अजेय शिवभक्त की पत्नी थी वहीं क्रूर, स्त्रीलोलुप और अहंकारी रावण उनका पति था। इस सौभाग्य और दुर्भाग्य के बीच डोलती मंदोदरी। पर कथा लेखकों ने मंदोदरी के बारे में कम ही लिखा हे उसके आनंद और व्यथा की वर्णन अभी भी शेष रहा है।

मंदोदरी वह स्त्री है जो पति और पुत्र को सन्मार्ग पर लाने की हर संभव कोशिश करती है फिर भले ही वे असफल रही हों। अपने पति और पुत्र की उपलब्धियों का व्यवस्थापूर्वक आंकलन करती है और शत्रु की शक्ति का सही-सही अंदाजा लगाकर दृढ़ता पूर्वक अपने अहंकारी पति से कहने की हिम्मत रखना। असफल होने पर भी उनके जीवन को सफल ही माना जाएगा। तभी तो उन्हें प्रात: स्मरणीय पंच कन्याओं में स्थान दिया गया और कहा गया- अहिल्या, द्रौपदी, सीता, तारा, मंदोदरी तथा।

पच्चकं ना स्मरेठिनत्यं महापातक नाशनम्।।

ऐसा कहा जाता है जब राक्षण राज रावण क्रोध करता था तो इंद्र भी उनके सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं रखता था। ऐसे क्रोधी और हठी पति को मंदोदरी बार-बार शिष्टता नम्रता और आग्रहपूर्वक भी न समझने पर धमकी देते हुए मंदोदरी कहती है।

तासु विरोध न कीजिअ नाथा।

काल, करम, जिव जाकें हाथा।

यह मंदोदरी के व्यक्तित्व की ही विशेषता है कि जिस रावण के आगे पृथ्वी के मानव और स्वर्ग के देव और राक्षस भय से कांपते थे उसको वह बारंबार धर्म क्या हे, अधर्म क्या है, यह निर्भयता से बताती है। अपने हठी पति को कई-कई बार समझाने के बाद जब वह नहीं समझता तो युद्ध में होने वाले धन जन की हानि के बारे सोचती मंदोदरी। वे राक्षस कुल की महारानी हैं पर युद्ध में आचार संहिता का पालन हो इसका कठोरता से ध्यान रखती है हर पल पति के अंदर संवेदनाओं को भरने का प्रयास करती मंदोदरी। अहंकारी रावण की तुलना जुगनू से करती मंदोदरी और अंत में राम द्वारा ब्रह्मास्त्र चलाने पर अपने पति की मृत्यु के उपरांत जब सीता पुष्पक विमान से अयोध्या जाती सीता को सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद देती मंदोदरी। 

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