सभी को स्तब्ध, निशब्द कर गईं सुषमा दीदी
पार्थिव देह मुख्यालय में लाते ही दौड़ गई शोक की लहर
नई दिल्ली/प्रमोद पचौरी। भाजपा मुख्यालय में बुधवार का दिन बड़ा मायूसी लेकर आया। अभूतपूर्व नेत्री सुषमा स्वराज के असामयिक निधन से भाजपा परिवार दुःखी हो गया है। दोपहर बारह बजे सुषमा जी के अंतिम दर्शनों के लिए उनकी पार्थिव देह को जैसे ही मुख्यालय लाया गया, पूरे परिसर में शोक की लहर दौड़ गई। लोग उनके शतकर्माें को याद करते रहे। बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कीं। उनका सारा जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित रहा। ताउम्र उन्होंने समाज के दबे-कुचले लोगों के लिए आवाज उठाई। मंगलवार को जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने संबंधी विधेयक पारित होने की खुशी में वे जाते-जाते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ट्वीट के जरिए अपनी भावनाएं व्यक्त करती गईं। उनका वह भावुक ट्वीट हर कार्यकर्ता को रह-रहकर रुलाता रहा। तबियत बिगड़ने से पहले मानो वे प्रधानमंत्री मोदी को कह रही थीं कि वे जा रहीं हैं, जीवनकाल की तमन्ना का एक सुखद एहसास लेकर, जिसे आपने पूरा किया। सुषमा जी ने देशवासियों को जीने का मर्म बताया और समझाया कि राष्ट्रधर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। देश ने एक प्रिय बेटी को खोया है, तो दिल्ली ने अपनी ऐसी पहली मुख्यमंत्री को, खो दिया, जो बेवाकिता और विनम्रता से परिपूर्ण थीं। दिल्ली के लिए यह दुर्भाग्य ही है कि उसने एक साल के अंदर तीन मुख्यमंत्री खो दिए हैं। पिछले वर्ष पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना, इसी वर्ष बीस जुलाई को पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और गत मंगलवार सुषमा जी का निधन हो गया। लोकतंत्र में वैचारिक मतभिन्नता हो सकती है लेकिन, मनभिन्नता नहीं। इसी खूबसूरती को आभूषण बनाकर सुषमा जी ने राजनीति से कहीं ऊपर उठकर अपना मुकाम बनाया। वे सभी दलों में सम्मान का पात्र रहीं। वे एक समय पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को अपना राजनीतिक गुरू मानती थीं और चंद्रशेखर कहा करते थे, सुषमा स्वराज गलत पार्टी में सही नेता हैं।
पार्टी कार्यकर्ताओं में बेहद लोकप्रिय होने के चलते उन्हें दीदी से संबोधित किया जाता था। उनके सहयोगी उन्हें अक्सर बहन सुषमा कहकर संबोधित किया करते थे। वाक्चातुर्य हो या हाजिर जवाबी बहन सुषमा अपना प्रभाव छोड़े बिना नहीं रहती थीं। अपनी इसी हुनर के चलते वे 2009 में लोकसभा में पार्टी की ओर से विपक्ष की नेता बनी। इस दौरान वे संसद के अंदर और बाहर प्रखर वक्ता के रूप में उभरीं। सुषमा स्वराज को भारतीय संसद में प्रखर आवाजों में गिना जाएगा। जहां तक लोकप्रियता का सवाल है तो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने लोकप्रियता के एक से बढ़कर एक मुकाम हासिल किए। संयुक्त राष्ट्र की बैठक में उन्होंने पाकिस्तान को ऐसा छकाया कि उसकी बोलती ही बंद हो गई थी। वे अगर दृढ़ व्यक्तित्व की धनी थीं तो उदारता उनके अंदर कूट-कूटकर भरी हुई थी। विदेश मंत्री रहते वे लोगों की सेवा में हमेशा तत्पर रहती थीं। वीजा के लिए वे अक्सर खुद फोन करके बता दिया करती थीं कि अमुक व्यक्ति का वीजा तैयार हो गया है। लोकप्रियता ऐसी कि वे सात बार सांसद और तीन बार विधायक चुनी गईं। कहा जाता है कि राजनीति कठिन और कठोर लोगों का खेल है लेकिन सुषमा दीदी के लिए ये कहावत अपवाद है।