अवैध संबंध रखने वाली पत्नी नहीं होगी भरण-पोषण की अधिकारी, हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

छत्तीसगढ़ की हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि अगर पत्नी के अवैध संबंध प्रमाणित हो जाते हैं तो वह भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं होगी।

Update: 2025-12-17 14:54 GMT

बिलासपुरः छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाई कोर्ट ने हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत मैंटेनेंस (भरण-पोषण को लेकर स्पष्ट फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा अगर पत्नी के अवैध संबंध रखती है और यह प्रमाणित हो जाता है तो वह पति से भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं होगी।

हाई कोर्ट की जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की सिंगल बेंच ने फैमिली कोर्ट ने 2009 के फैसले को सही ठहराते हुए पत्नी की प्रथम अपील खारिज कर दी। इसके साथ ही कोर्ट ने दोनों पक्षों की पहचान गोपनीय रखी है।

1975 में हुई थी शादी

जानकारी के अनुसार,पति-पत्नी की शादी 1975 में हिंदू रीति-रिवाज के तहत संपन्न हुई थी। शादी के बाद से दोनों से 4 बच्चे हैं। शादी के कुछ समय तक दोनों के बीच सबकुछ सामान्य रहा। हालांकि बाद में दोनों के बीच संबंध बिगड़ गए। पत्नी का आरोप था कि पति ने उसके साथ मारपीट शुरू कर दी। इतना ही नहीं 17 अप्रैल 2001 को उसे घर से निकाल दिया। इसके बाद से वह अपने भाई के घर रहने लगी।

पत्नी ने खटखटाया कोर्ट का दरवाजा

कोर्ट में शिकायत करने वाली पत्नी ने दावा किया कि पति ने उसके जेवर अपने पास रख लिए हैं। साथ ही उसे किसी भी प्रकार का भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया। पत्नी ने यह भी दावा किया कि पति के पास लगभग 10 एकड़ भूमि है। साथ ही बिजनेस से भी उसे अच्छी इनकम होती है। पति की आर्थिक स्थिति अच्छी होने के आधार पर पत्नी ने नियमित भरण-पोषण की मांग की थी।

पति ने अवैध संबंध का किया खुलासा

कोर्ट में सुनवाई के दौरान पति ने सभी आरोपों को निराधार बताया। साथ ही उस पर अवैध संबंध का गंभीर आरोप लगााय। पति ने बताया कि 15 अप्रैल के दिन जब प्लानिंग के तहत घर की लाइट बंद कर गेट खोला तो पत्नी को किसी और व्यक्ति के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़ा। इस घटना को उसने और उसके बेटे को खुद देखा था।

पति ने बताया कि इस घटना के बाद गांव में पंचायत बैठी तो पत्नी ने अवैध संबंध को कबूल किया था। साथ ही उसी व्यक्ति के साथ रहने की इच्छा जताई थी। पति ने कोर्ट में पंचायतनामा भी पेश किया।

फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराया

कोर्ट ने पाया कि पति, बेटे और अन्य गवाहों के बयान और पंचायतनामा जैसे सबूत पत्नी के अनुचित आचरण की पुष्टि करते हैं। इसी आधार पर फैमिली कोर्ट की तरफ से 31 अक्तूबर 2009 को दिया गया निर्णय सही ठहराया। साथ ही पत्नी की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट का यह फैसला पारिवारिक कानून के मामलों में एक महत्वपूर्ण नजीर के रूप में देखा जा रहा है।

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि अवैध संबंध जैसे कृत्य सामान्यतः गोपनीय होते हैं। लेकिन, उन्हें परिस्थितियों से समय के सबूत के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है। कोर्ट ने हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा का हवाला देते हुए कहा कि यदि पत्नी अशुद्ध आचरण में लिप्त पाई जाती है तो उसे पति से अलग निवास और भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिलता।

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