छत्तीसगढ़ में सोशल मीडिया के जरिए कन्वर्जन का नया खेल: व्हाट्सऐप के जरिए ईसाई बनाए जा रहे आदिवासी…

बस्तर के हर जिले में हजारों राष्ट्रविरोधी ग्रुप संचालित, रोजाना किए जा रहे हैं 35 से 45 पोस्ट

Update: 2025-07-16 13:42 GMT

जयप्रकाश मिश्र/आदित्य त्रिपाठी, रायपुर। छत्तीसगढ़ में सर्वे और सोशल मीडिया को माध्यम बनाकर लोगों का धर्मांतरण किया जा रहा है। बस्तर और सरगुजा के आदिवासियों को ईसाई बनाने का बड़ा षड्यंत्र मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से खड़ा किया गया है। गांव-गांव में जाकर संदेही तत्व परिवारों की निजी जानकारियां जुटा रहे, फिर उन्हें कई तरह से लालच के जाल में फंसा रहे हैं।

इस षड्यंत्र का खुलासा स्वदेश की पड़ताल में हुआ है, जिसमें हम सिलसिलेवार तरीके से बस्तर में किए जा रहे आदिवासियों के ब्रेनवॉश का खुलासा कर रहे हैं। सोशल मीडिया को जरिया बनाकर राष्ट्रवादी विचारों और भारत के आध्यात्मिक-ऐतिहासिक गौरव को आदिवासियों के शोषण से जोड़कर प्रस्तुत किया जा रहा है। लोगों का एक बड़ा समूह किसी और स्थान पर बैठकर जनजातीय क्षेत्रों में लोगों को अपनी ही व्यवस्था के खिलाफ खड़ा कर रहा है।

इस तरह चरणबद्ध तरीके से चल रहा षड्यंत्र

पहला चरण

सबसे पहले आस-पास के ही गांव या अन्य जिले के कुछ लोग छोटे-छोटे कार्यकर्ता-समूह बनकर आदिवासी ग्रामों में सर्वे के नाम पर लोगों के मोबाइल नंबर और पारिवारिक जानकारियां इकठ्ठा करते हैं। इन जानकारियों में केवल परिवार में लोगों की संख्या ही नहीं मांगी जाती है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति के साथ ही परिवार में विवाह योग्य लड़की या लड़कियों की भी पहचान की जाती है। भोले-भाले आदिवासी बिना कुछ पूछताछ किए सरकारी अफसर या एनजीओ का कार्यकर्ता समझकर इन्हें बड़ी ही आसानी से सब बता देते हैं।

दूसरा चरण

एक बार जब गांव में लोगों की रेकी पूरी हो जाती है, फिर शुरू होता है आदिवासी ग्रामीणों को फर्जी समूहों में जोडऩे का काम। इन समूहों को असली दिखाने के लिए इन संदेही सर्वे कार्यकर्ताओं द्वारा बाकायदा लिखा-पढ़ी भी की जाती है। आदिवासियों से फार्म भरवाए जाते हैं। किसी को अध्यक्ष बना दिया जाता है, तो किसी को उपाध्यक्ष और आगे अन्य लोगों को सदस्यों के तौर पर जोडऩे के लिए कहा जाता है। इस प्रकार गांव की एक बड़ी आबादी का अपनी संवेदनशील जानकारियां इन संदेही लोगों के हाथों में आ जाता है।

तीसरा चरण

एक बार जब आदिवासी ग्रामीणों की सारी जानकारियां मिल जाती हैं, फिर शुरू होता है असली खेल। सर्वे में मिली जानकारियों को अलग-अलग तरीकों से दुरुपयोग में लाया जाता है। सबसे पहले आदिवासियों को जनजातीय अस्मिता, शौर्य, इतिहास के नाम पर बनाए गए व्हाट्सऐप ग्रुप्स में जोड़ दिया जाता है। गांव के ही कुछ अगुवा बनाए गए आदिवासी अन्य लोगों और परिवार के अन्य सदस्यों को इन ग्रुपों में जोड़ देते हैं। सर्वे से इकठ्ठा किए गए डाटा का दूसरा दुरुपयोग परिवार की जवान या विवाह योग्य युवती को लव जिहाद में फंसाने के लिए किया जाता है।

चौथा चरण

जनजातीय क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में विकास की रौशनी पहुंची है। इसी विकास के साथ पहुंची मोबाइल इंटरनेट की तकनीक को आदिवासी समाज को अंदर से खोखला करने के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। आदिवासी अंचल, खासकर बस्तर और सरगुजा में सोशल मीडिया के माध्यम से भोले-भाले आदिवासियों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है। इसमें सबसे पहले व्हाट्सऐप के जरिए आदिवासियों को व्यवस्था और राष्ट्रीयता के खिलाफ सामग्री परोसी जाती है। बस्तर संभाग के लगभग हर एक जिले में इस तरह के व्हाट्सऐप ग्रुप हजारों की संख्या में संचालित हो रहे हैं। व्हाट्सऐप ग्रुप के बाद धीरे-धीरे सभी सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर भी एक खास तरह के कंटेंट की जैसे बाढ़-सी ला दी जाती है। इसी से सुदूर वनांचल में बैठे एक आदिवासी के दिमाग में धर्म, इतिहास, व्यवस्था के प्रति अविश्वास और विरोध का बीज लगातार बोया जा रहा है। एक खास वर्ग को शोषक और आदिवासी समाज को शोषित के तौर पर दिखाकर उन्हें अपने ही इतिहास के विरोधी बनाया जा रहा है।

पांचवां चरण

एक बार जब आदिवासी अपनी धार्मिक मान्यताओं से डगमगाता है, शुरू होता है उसके धर्मांतरण का षड्यंत्र। अपनी जड़ों से हिल चुके ग्रामीण को सेवा, शिक्षा और सुरक्षा का लालच देकर ईसाई बनाया जा रहा है। इसके बाद उन्हें बामसेफ जैसी संस्थाओं के व्हाट्सऐप ग्रुप में जोड़ दिया जाता है या क्रिश्चियन समाज के धार्मिक प्रतीकों के नाम पर बनाए गए ग्रुप में। छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण एक बड़ी समस्या है और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी इसे लेकर चिंता जताई जा रही है। लेकिन राज्य के वनांचलों में डेमोग्राफी को बदलने का खुला खेल जारी है। संदेही तत्व किसी अन्य राज्य या देश में बैठकर छत्तीसगढ़ के बड़े भूभाग में आदिवासी को ईसाई बनाने का गिरोह चला रहे हैं।

अंदरूनी इलाकों में सक्रिय व्हाट्सऐप ग्रुप्स

जिला - व्हाट्सऐप ग्रुप की संख्या

बस्तर - 450

सुकमा - 380

नारायणपुर - 320

कांकेर - 500

बीजापुर - 200

कोंडागांव - 265

प्रति दिन प्रति ग्रुप देशविरोधी पोस्ट की संख्या: 9-10

फेसबुक/यूट्यूब पर समर्थक: 35-40 हजार से अधिक

गूगल मीट, ज़ूम वीडियो कॉल के माध्यम से प्रत्येक मीटिंग में जोड़े जा रहे: 5-6 हजार आदिवासी

कुछ तथाकथित व्हाट्सऐप ग्रुप के नाम

  • गुंडाधुर के भूमि
  • आदिवासी राज
  • हमर समाज हमर राज
  • सरना समूह
  • तीर-कमान
  • आदिवासी संस्कृति

आपके माध्यम से इसकी जानकारी मिली है। पूरे विषय की गंभीरता से जांच की जाएगी। - सुंदरराज पी, आईजी, बस्तर रेंज

"प्रलोभन और बहुत से हथकंडे की वजह से लोग जाते हैं। कोई स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन नहीं करता है। असल में समाज के भीतर धर्मांतरण को लेकर कोई सजग नहीं है। सतर्क नहीं है। यही कारण हैं कि लोग व्हाट्सऐप के जरिए भी धर्म बदल रहे हैं। शासन-प्रशासन को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।" - अरविन्द नेताम, पूर्व केंद्रीय मंत्री, भारत सरकार 

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