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मुख्यमंत्री की पहल से बुंदेलखंड के किलों की बदल सकती है तस्वीर

मुख्यमंत्री की पहल से बुंदेलखंड के किलों की बदल सकती है तस्वीर
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बांदा। बुंदेलखंड के 31 किलों में बांदा का भूरागढ़ किला अपना अलग महत्व रखता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उदघोषणा बुंदेलखंड के छोटे बड़े किलों और दुर्ग को पर्यटन केंदों के रूप् में विकसित करने के निर्देश पर इस किले के दिन भी बहुर सकते हैं। पर्यटन में दर्जा मिले इसके लिए जिले के कई समाजसेवी समय-समय पर आवाज उठाते रहे हैं। कुछ हद तक जिला प्रशासन ने यहां कार्य भी कराया है। अब यदि भूरागढ़ किले को मुख्यमंत्री योगी के निर्देशानुसार पर्यटन केंद्र की श्रंखला में शामिल किया जाता है तो लोगों को यहां के इतिहास व संस्कृति की एक अलग मिसाल देखने को मिलेगी।


भूरागढ़ का इतिहास कुछ ऐसा है कि सन् 1787 में बांदा का शासन अली बहादुर प्रथम के हाथों में आ गया। अली बहादुर प्रथम का युद्ध सन् 1792 के लगभग भूरागढ़ के प्रशासक नोने अर्जुन सिंह से हुआ। जिसके बाद किला कुछ समय तक नवाबों के शासन में रहा। लेकिन कुछ समय बाद ही राजाराम दाउवा और लक्ष्मण सिंह दाउवा ने किले को अपने अधिकार में ले लिया, जिसका शासन गुमान सिंह के नाती के हाथों में था। नोना अर्जुन सिंह पर ज़्यादा विश्वास होने की वजह से उन्हें बांदा का शासन सौंप दिया गया। लेकिन कुछ समय के बाद अर्जुन सिंह की मृत्यु हो गयी। जिसके बाद अली बहादुर किले पर शासन करने लगे।

किले से जुड़ा क्रांतिकारियों का इतिहास

ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ महान स्वतंत्रता संग्राम 14 जून 1857 को हुआ है। युद्ध का नेतृत्व बांदा में अली बहादुर द्वितीय ने भूरागढ़ किले से किया। युद्ध सोच से भी ज़्यादा भयानक था। नवाबों द्वारा अंग्रेज़ों के खिलाफ इस लड़ाई में कानपूर, इलाहबाद और बिहार के क्रांतिकारी भी शामिल हुए। 5 जून 1857 को, क्रांतिकारियों ने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट कॉकरेल की हत्या कर दी। मजिस्ट्रेट कॉकरेल को अंग्रेज़ों की अदालत में काले पानी और मृत्यु दंड की सज़ा सुनाई गयी। 16 अप्रैल 1858 को व्हिटलुक बांदा पहुंचे और उन्होंने बांदा की क्रांतिकारी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में लगभग 3,000 क्रान्तिकारी भूरागढ़ किले में मारे गए। लेकिन बांदा के राज पत्र में सिर्फ 800 लोगों के ही शहीद होने का ज़िक्र किया गया। इस युद्ध में 28 व्यक्तियों के नाम विशेषतौर पर मिलते हैं। किले के अंदर और बाहर कई क्रांतिकारियों की कब्रें पायी जाती हैं। किला कई सालों तक ब्रिटिशों के अधीन रहा। लेकिन कुछ लोगों की वजह से किला विनाश की कगार पर पहुंच गया। तहखाने और निचली मंज़िले गंदगी और कचरे की वजह से नीचे दबकर रह गयी।

Updated : 24 July 2022 3:30 PM GMT
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स्वदेश डेस्क

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