Home > स्वदेश विशेष > ईयू सांसदों के चरित्रहनन की दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति

ईयू सांसदों के चरित्रहनन की दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति

- डॉ अजय खेमरिया

ईयू सांसदों के चरित्रहनन की दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति
X

कश्मीर दौरे पर आए यूरोपियन यूनियन के संसदीय प्रतिनिधि मंडल को लेकर जो विवाद की स्थिति देश के राजनीतिक एवं मीडिया जगत में देखी गई वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।अपनी पत्रकारवार्ता में इस प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों ने जिस अफसोसजनक अंदाज में इस दौरे को लेकर भारतीय मीडिया और कुछ नेताओं के बयान पर क्षोभ जताया है वह राजनयिक रूप से भारत के पक्ष को कमजोर करने वाला पहलू है।बेहतर होता देश के सभी राजनीतिक दल भारत की वैश्विक छवि के मामले में समवेत रहते है।यूरोपियन यूनियन संसदीय मंडल के सदस्यों को जिस तरह से व्यक्तिगत तौर पर निशाना बनाया गया उन्हें हिटलर औऱ नाजीवाद का अनुयायी बताकर लांछित करने की कोशिशें हुई उसने एक बार फिर भारत के आधुनिक राष्ट्रीय राज्य के आकार को प्रश्नचिंहित करने का काम किया है।आज इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि कश्मीर एक बिगड़ा हुआ मामला था इसकी बुनियाद के कारणों पर खींचतान से बेहतर, पक्ष इसके निराकरण का है और राष्ट्रीय हित यही है कि इस मामले में भारत समवेत स्वर में ही उदघोष करे।यही आधुनिक राष्ट्रीय राज्य का आज अनिवार्य तत्व है।पूरी दुनियां में शायद ही कोई मुल्क होगा जहां आतंकवाद, अलगाववाद से जूझते अपने ही इलाके को लेकर स्थानीय राजनीति में इस तरह की मतभिन्नता दिखाई देती है।नेशन फर्स्ट के नाम पर भारत मे बात तो बहुत होती है पर जमीन पर आज भी हमारे राजनीतिक दल एक भारत श्रेष्ठ भारत की सोच के साथ समेकन नही कर पा रहे है।कश्मीर को लेकर भारत सरकार का मौजूदा प्रयास बहुत ही साहसिक औऱ भारत की धमक को अंतरर्राष्ट्रीय बिरादरी में स्थापित करने वाला है निसंदेह हमारी विदेश नीति,हमारा राजनय,आज नए भारत का प्रतिनिधित्व करता है भारत की छवि मोदी सरकार के नेतृत्व में शांति के लिये एकतरफा प्रयास करते हुए दब्बू देश से हटकर एक मजबूत इरादों वाले मुल्क की बनी है।यह पहला मौका है जब हमारा चिर दुश्मन पड़ोसी पाकिस्तान आज पूरी दुनियां में अलग थलग पड़ गया है उसके कश्मीरी प्रोपेगैंडा को भारत ने हर मोर्चे पर खंडित किया है।अनुच्छेद 370 के हटाये जाने के बाद से पूरी दुनिया मे पाकिस्तान ने कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन औऱ सुरक्षा बलों के कतिथ दमन को लेकर दुष्प्रचार की हद पार कर दी। लेकिन भारत सरकार के राजनयिक कौशल ने इस प्रोपेगेंडा को जमीन से उखाड़ने का सफलतापूर्वक काम किया है।यूरोपियन यूनियन दुनिया का सबसे प्रभावशाली दबाब समूह है जिसमें इंग्लैंड, फ्रांस,पोलेंड, जर्मनी,जैसे 28 मुल्कों का प्रतिनिधित्व है।भारत आये इस प्रतिनिधि मंडल में 27 देशों के निर्वाचित सांसद शामिल थे।यूरोपियन यूनियन के इन सांसदों ने दिल्ली में अपनी पत्रकार वार्ता में जो कहा है उसने पाकिस्तान के दुष्प्रचार को खोखला साबित करने का काम किया क्योंकि इन सांसदों ने आतंकवाद को भारत के साथ साथ यूरोप समेत पूरी दुनिया के लिये खतरा बताया है।यूनियन के सदस्यों ने सार्वजनिक रूप से कश्मीर में सामान्य स्थिति का दावा किया उन्होंने सुरक्षा बलों ,सेना,औऱ पुलिस से आतंकवाद से निबटने के तौर तरीकों की खुली चर्चा कर इन बलों के विरुद्ध चलाये जा रहे पाकिस्तानी दुष्प्रचार को खण्डित किया है। भारतीय पत्रकारों के सवालों का जबाब देते हुए इन सांसदों ने स्पष्ट किया कि वे कश्मीर में सिर्फ वास्तविकता का पता लगाने आये है और उनका अनुभव भारत सरकार की नीतियों के साथ है।कश्मीर में लोगों ने उन्हें बताया कि केंद्र सरकार से उनकी बेहतरी के लिये आने वाले धन को राज्य की सरकार हड़प रही थीं।आम कश्मीरी अमन, औऱ विकास चाहता है इसलिये कश्मीर को लेकर भारत के रुख को समझा जाना चाहिये।इन सभी बातों का अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से विश्लेषण किया जाए तो यह कश्मीर के मामले में भारत की अहम प्रोपेगैंडा जीत भी है क्योंकि राजनय में बहुत से पहलुओं का जबाब शत्रु देश की चाल के अनुरूप भी देना पड़ता है।यूरोपियन यूनियन के संसदीय प्रतिनिधी मण्डल का यह कश्मीर दौरा इसी कूटनीतिक एजेंडे का हिस्सा भी मान लिया जाए तो भला राष्ट्रीय हित मे इस पर क्यों आपत्ति ली जा रही है।

भारत मे बहुलतावाद की बात करने वाले राजनीतिक ,सांस्कृतिक दल बिना अध्ययन के इस प्रतिनिधि मंडल पर नाजीवादी होने का आरोप क्या सिर्फ इसलिये लगा रहे है क्योंकि वे प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिलकर घाटी में लोगो से मिलने गए थे।राहुल गांधी, ओबैसी, शिवसेना,डॉ सुब्रमण्यम स्वामी जैसे लोगों के आरोपों का जिस मुखरता के साथ इस प्रतिनिधि मंडल ने जबाब दिया है वह कश्मीर मामले पर इनकी निष्ठा और समझ दोनों को कटघरे में खड़ा कर गया।

सवाल यह है कि अगर कश्मीर पर किसी अंतर्राष्ट्रीय दबाब समूह के समक्ष भारत का पक्ष मजबूती से रखा जा रहा हो और पाकिस्तान के प्रोपेगैंडा बार की हवा निकालने में मददगार हो तो ऐसे किसी भी उपक्रम का विरोध क्यों किया जाए?क्या भारत मे मोदी विरोध की राजनीति विदेशियों तक को निशाना बनाने से नही चुकेगी ?अगर यह भारत की स्थानीय राजनीति में स्थाई रूप से घर कर रही है तो बेहद ही खतरनाक औऱ दुःखद पहलू है।क्योंकि राष्ट्रीय हितों को हमारी संसदीय सियासत ने सदैव मतभेदों से परे रखा है।अटल जी को राष्ट्रमंडल औऱ तमाम कूटनीतिक मिशनों में तब की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी भारत का नेतृत्व करने भेजती थी औऱ विपक्षी नेता भी भारत से बाहर भारत के प्रतिनिधि बनकर मुखरित होते थे।आज के कमजोर विपक्ष को अपने पूर्वजों के इतिहास उनकी समग्र दृष्टि को समझने की महती आवश्यकता है।

यूरोपियन यूनियन सांसदों के मामले में जो आचरण कुछ राजनीतिक दलों ने किया उसने न केवल भारत के पक्ष को कमजोर किया है बल्कि कश्मीर के मामले में खुद की राष्ट्रीय सोच को भी देश की जनता के सामने बेनकाब कर दिया है।

यही कारण है कि मोदी भारत मे लोकप्रिय नेता के रूप में जमे हुए है और दूसरे नेता जनभावनाओं को समझने के लिये तैयार नही है।

Updated : 31 Oct 2019 10:31 AM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top