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शक्ति के आराधक है हम

अखिलेश श्रीवास्तव

शक्ति के आराधक है हम
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हम शक्ति के पुजारी हैं, हमारा भारत देश, यहां रहने वाला समाज, शक्ति का आराधक है अर्थात हम आदिशक्ति के मानने वाले हैं। यही आदिशक्ति आद्यशक्ति भी है जो अनंत है, हम शाक्तधर्मी हैं। अनादि काल से शक्ति के विभिन्न रूपों की हम पूजा करते रहे हैं। पूरे विश्व में जहां - जहां तक भारतीय संस्कृति , धर्म और मान्यताओं का फैलाव रहा है उन सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में देवी पूजा के प्रमाण मिलते हैं। भारत के प्रत्येक क्षेत्र में देवी पूजा के प्राचीन स्थल है। चाहे आज के पाकिस्तान का हिंगलाज माता मंदिर हो जो कराची से 125 किलोमीटर दूर स्थित है। चाहे कराची के निकट स्थित सर्कररे शक्तिपीठ हो, जिसकी शक्ति महिषासुर मर्दिनी की है, चाहे बांग्लादेश के शिकारपुर के पास सोन्ध नदी के किनारे स्थित सुगंधा शक्तिपीठ हो। पूरे भारतवर्ष में शक्ति पीठ फैले हुए हैं। शक्ति आराधना हमारे पिंड में है । हमने अपने विराट राष्ट्रपुरुष को भी माता माना है और उसे भारत माता का नाम दिया है हम राष्ट्र के दिव्य दर्शन भी उन्हीं भारत माता के देवी स्वरूप में करते हैं ।

भारत के इतिहास को उठाकर देखते हैं तो पता चलता है कि महान पराक्रमी भारतीय राजा शक्ति की आराधना किसी ना किसी देवी के रूप में करते हैं चाहे अपराजेय योद्धा महाराणा प्रताप हो या तुलजा भवानी के सेवक छत्रपति शिवाजी महाराज हों। रणचंडी दुष्टों के दमन के लिए हमें चिरकाल से रण की प्रेरणा देती रही है। हमारे राम जब रावण पर विजय प्राप्त करते हैं तो वे भी शक्ति पूजा करते हैं । भारत का कोई क्षेत्र नहीं है जहां की अधिष्ठात्री देवी ना हो । ऐसा कोई कुल नहीं है जिसकी कुल देवी ना हो। शस्त्र धारणी यह देवियां हमारी शक्ति आराधना का प्रतीक है। इतना ही नहीं भारत का कोई भारतीय त्यौहार बिना देवी पूजा के संपन्न नहीं होता। भारतीय नववर्ष का तो प्रारंभ चैत्र नवरात्र की शक्ति पूजा से होता है फिर शारदीय नवरात्र जो इस समय चल रहे हैं , दो गुप्त नवरात्र केवल शक्ति साधना के लिए ही हैं। फिर महालक्ष्मी पूजा हो, गणगौर पूजा हो, माता बिजयासन की पूजा हो, कोई त्यौहार शस्त्र धारणी देवियों की आराधना के बिना पूरा नहीं होता। यदि हम पुरातत्व प्रमाणों को देखेंगे तो पता चलेगा कि देवी पूजा या शक्ति पूजा पच्चीस हजार साल से ज्यादा समय से अपना समाज करता चला आ रहा है। जिसके पुरातात्विक प्रमाण मध्यप्रदेश में भी सीधी के आसपास मिलते हैं , पर हमने फिर केवल पूजा पूजा को ही चुन लिया शक्ति को छोड़ दिया, शस्त्रों को छोड़ दिया और अब तो शास्त्रों को भी छोड़ दिया। शक्ति का आराधक, शस्त्र और शास्त्र से संपन्न समाज इसलिए शक्तिहीन सा जान पड़ता है। जिस राष्ट्र के ऋषियों ने ज्ञान और बुद्धि की देवी को भी शस्त्रों सुसज्जित रखा है । उसने शक्ति की देवी को भी मिट्टी मात्र की मूरत में बदल कर रख दिया है

शक्ति की देवी हमें शक्ति संपन्नता का संदेश देती है । तामझाम के बिजली पंडाल यह सब आयोजनों की आवश्यकता हो सकते हैं पर यह दुर्गा पूजा, शक्तिपूजा नहीं है । जब समाज संकल्प के साथ, शक्ति संपन्नता के लिए संधान और आराधना करता है, दुष्टता का साहस से सामना करने के लिए संकल्पित होता है, ऐसे ही जीने की रीति बनाता है, तब शक्ति पूजा होती है। यही वह शक्ति पूजा है जिसका आह्वान हमारे महापुरुषों ने किया था। अब से सौ साल पहले महर्षि अरविंद ने कहा था " हमने शक्ति को छोड़ दिया है इसलिए शक्ति ने हमें छोड़ दिया है " । यह बात महर्षि ने भारत पर अंग्रेजों के शासन काल में कही थी। हम भारतवासी अंग्रेजों के अधीनता में रह रहे थे। पराधीनता में रहना हमारी दुर्बलता का परिणाम है बरसों के संघर्ष में हमारी शक्ति क्षीण होती गई है । जिससे हमें अब तो मुक्त हो जाना चाहिए , जिस समाज के एक-एक व्यक्ति को शक्ति संपन्न निर्भीक और निडर होना चाहिए था वह आज दब्बूपन से भरा हुआ है और दुख की बात यह है कि हम अपने दब्बूपन को भलमनसाहत बताते हैं । जिससे अराजक व दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का हौसला और बढ़ता है। हमारे सद ग्रंथ रामायण, गीता, महाभारत यह नहीं सिखाते बल्कि शत्रुओं का संहार सिखाते हैं। शक्ति आराधना के इस पर्व पर हम सब को यह सोचना अब और अधिक जरूरी हो गया है, क्योंकि देश स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है , स्वाधीनता के 75 वर्ष हो जाने के बावजूद देश के अंदर बाहर की चुनौतियां कम नहीं हुई है हमें सोचना होगा कि समाज शक्ति का अनुसंधान कर वीरता से किस प्रकार खड़ा हो जिससे हमारी कमजोरियों पर गिद्ध दृष्टि गड़ाए बैठे हैं। बाहरी भीतरी शत्रुओं का नाश हो सके यही शिक्षा हमारे ग्रंथ देते हैं। यही शिक्षा हमारे देवता देते हैं, हमारे महापुरुष और इतिहास देते हैं । देवी शक्तियां हमारे साथ हैं। हमें ही आत्म गौरव और शक्ति के साथ उठ खड़ा होना होगा । शक्ति की पूजा भी करनी होगी और संधान भी क्योंकि यही हमारा स्वभाव भी है।

Updated : 12 Oct 2021 5:06 PM GMT
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