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राजमाता की बहन सुषमा सिंह ने कहा - संयमित भाषा थी नेताओं की पहचान

स्वदेश से साझा किए राजनीति के अनुभव

राजमाता की बहन सुषमा सिंह ने कहा - संयमित भाषा थी नेताओं की पहचान
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ग्वालियर/राजलखन सिंह। भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक राजमाता विजयाराजे सिंधिया की छोटी बहन सुषमा सिंह राजमाता जी के कहने पर राजनीति में आईं और जनता पार्टी के बैनर पर उस समय (1977) शिवपुरी के करैरा से विधानसभा चुनाव लड़ीं और विधायक बनीं, जब महिलाएं राजनीति में आने से कहीं न कहीं कतराती थीं। अब वह सक्रिय राजनीति से दूर सामाजिक जीवन बिता रहीं हैं। सक्रिय राजनीति में वे जरूर थीं पर उन्हें पद व परिवारवाद की लालसा कभी नहीं रही। उन्होंने अपने बेटों को राजनीति में लाने के लिए कभी भी दबाव नहीं बनाया। राजनीति को लेकर सुषमा सिंह ने खुलकर अपने विचार साझा किए।

प्रश्न:- राजनीति में आने की प्रेरणा आपको कहां से मिली और कौन लेकर आया?

उत्तर:- राजनीति का ककहरा मैंने राजमाता जी से सीखा और उनकी प्रेरणा से ही राजनीति में आई। राजमाता जी ने शिवपुरी के करैरा विधानसभा के दौरे पर मुझसे कहा कि सुषमा तुम्हें चुनाव लडऩा है। चूंकि राजमाता जी का आदेश था इसलिए 1977 में जनता पार्टी से करैरा से चुनाव लड़ी और करीब 12 हजार मतों से विजयी हुई। दूसरी बार मैं चुनाव नहीं लडऩा चाहती थी पर कार्यकर्ताओं का सम्मान रखने के लिए मैंने चुनाव लड़ा पर हार गई।

प्रश्न:- पहले की राजनीति एवं आज की राजनीति में क्या बदलाव हुआ?

उत्तर:- पहले राजनीति में निष्ठा की पहचान थी। कार्यकर्ताओं में सेवाभाव रहता था। पार्टी में विचारधारा भी एक रहती थी और कार्यकर्ता की बात को अहमियत भी मिलती थी, जो आज कहीं न कहीं खोती जा रही है। आज की राजनीति में काफी बदलाव आ गया है। मुझे लगता है कि अब पद की लोलुपता बढ़ गई है। जब कार्यकर्ताओं में पद की लोलुपता रहेगी तो वह जनता के प्रति समर्पण भाव से सेवा कैसे करेंगे। पहले भाषा नपी-तुली हुआ करती थी पर आज भाषा की फूहड़ता अधिक बढ़ गई है। इसलिए नेताओं के सम्मान में भी कमी आई है और जनता उसी चश्मे से नेताओं को देखने लगी हैं।

प्रश्न:- गंठबंधन की सरकार एवं दल-बदलुओं को आप किस नजरिए से देखती हैं?

उत्तर:- मेरे लिहाज से गठबंधन की सरकार सिर में लटकती धारदारी तलवार जैसा है। पार्टियां दो ही होनी चाहिए सत्तापक्ष एवं विपक्ष। पहले दल-बदलुओं की परिपाटी नहीं थी और कार्यकर्ता की निष्ठा थी। दल बदलने वाले को महत्व नहीं मिलता था, लेकिन आज दल-बदलुओं का ट्रेंड चल गया है। विपक्ष से भी हम लोग सीखते थे और विपक्षी नेता यह कहते थे कि आप हमारी कमियां बताएं।

प्रश्न:- शिवराज एवं मोदी सरकार के कामकाज को लेकर आप क्या सोंचती हैं?

उत्तर:- प्रदेश एवं देश में विकास कार्य तो काफी हुआ है और भाजपा ने काफी अच्छा काम किया है पर जनसंख्या में जिस हिसाब से वृद्धि हई है उस हिसाब से संसाधन नहीं है। इसलिए उतना विकास नहीं हो सका।

प्रश्न:- आप राजनीति से क्यों दूर हुईं और परिवार को राजनीति में न लाने का कारण क्या रहा?

उत्तर:- जिस तरीके से राजनीति बदल रही थी उसे लेकर मेरे मन में निराशा थी। कार्यकर्ताओं के प्रति जो निष्ठा हुआ करती थी वह भी कम हो रही थी। कहीं न कहीं कार्यकर्ता यह चाहते थे कि हमने वोट दिया है तो हमारे गलत काम भी हों, जो करने में मेरा मन गंवारा नहीं देता था। इसलिए मैं राजनीति से दूर हो गई। मैंने अपने दोनों बेटों को स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार दिया। उनकी राजनीति में आने की रुचि नहीं थी इसलिए मैंने कभी दबाव भी नहीं बनाया।

प्रश्न:- राजमाता जी एवं अटल जी के साथ भी आपने काम किया है। उस समय के आपके क्या अनुभव हैं?

उत्तर:- अटल जी हमारे आराध्य थे और उनसे हर समय सीखने को मिलता था। चूंकि राजमाता जी मेरी बड़ी बहन थी, इसलिए ज्यादातर समय उनके साथ रहने का अवसर मिलता था। उनके साथ दौरे पर मैं जाती थी। राजमाता जी का पार्टी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय योगदान रहा। आज मैं भले ही 86 साल की हो गई हूं पर राजनीति की खबरें पढऩा व सुनना काफी पसंद हैं। मैं आज भी राजनीतिक गतिविधियों से अपडेट रहती हूं।

Updated : 11 Oct 2018 1:06 PM GMT
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स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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