Home > विशेष आलेख > ऐसे हो सकती तेल की कीमतों में 60 प्रतिशत की कमी

ऐसे हो सकती तेल की कीमतों में 60 प्रतिशत की कमी

  • प्रो. जी. एल. पुणतांबेकर
  • लेखक डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर में वाणिज्य विभागाध्यक्ष व वित्त अधिकारी हैं

ऐसे हो सकती तेल की कीमतों में 60 प्रतिशत की कमी
X

ऐसा माना जाता है कि विगत 8 नवम्बर, 2016 को जब केंद्र सरकार ने विमुद्रीकरण (डीमोनेटाईजेशन) का निर्णय लिया था उसके पीछे अर्थ क्रांति प्रतिष्ठान पुणे के अनिल बोकिल का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष प्रस्तुत अर्थ क्रांति प्रस्ताव था। यद्यपि यह सही है कि डीमोनेटाईजेशन का निर्णय अर्थ क्रांति प्रस्ताव का हिस्सा था, परन्तु इसे टुकड़ों में लागू करना उपयोगी नहीं था और इसीलिये यह मानने वाले कि उक्त निर्णय अपने लक्ष्य को नहीं पा सका, वे इसका ठीकरा अर्थक्रांति प्रस्ताव पर नहीं फोड़ सकते। इसका बड़ा प्रमाण यह है कि जब सरकार ने डीमोनेटाईजेशन के निर्णय के साथ 1000 के स्थान पर 2000 रुपये का नया नोट जारी किया तब तो मूल अर्थक्रांति प्रस्ताव का वह तत्व भी बेअसर हो गया जिसमें छोटे नोटों (अधिकतम 50 रुपये का) से काले धन संग्रह को हतोत्साहित किये जाने का दावा किया जाता है। सच तो यह है कि अर्थ क्रांति प्रस्ताव को आज भी यदि सम्पूर्ण रूप से लागू किया जाए तो यह देश की माजूदा कर व्यवस्था में आमूल चूल बदलाव कर करदाताओं को बड़ी राहत के साथ काले धन की समानान्तर अर्थव्यवस्था को समूल नष्ट कर सकता है, हाँ डीमोनेटाईजेशन के सरकार के निर्णय का फलित इतना अवश्य हुआ कि अनिल बोकिल और उनके अर्थ क्रांति प्रस्ताव को देश दुनिया में मान्यता मिली और उसके व्यावहारिक प्रयोग पर विचार विमर्श और शोध आरम्भ हुए। सवाल यह भी है कि यदि यह प्रस्ताव इतना ही लाभदायक है तो प्रधानमंत्री मोदी ने इसे आधा अधूरा लागू क्यों किया? तो केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्र हित में लिए गए तमाम निर्णयों की राजनैतिक प्रतिक्रियाओं में इस प्रश्न का उत्तर निहित है।

विगत 70 वर्षों से स्थापित व्यवस्था के लाभार्थियों के स्वार्थ और उनकी ताकत अनेक बदलावों में सबसे बड़ी बाधा है और यही हश्र अर्थक्रांंति प्रस्ताव का भी हुआ। इन बाधाओं के बीच सुखद यह है कि अपने अर्थक्रांति प्रतिष्ठान के अनिल बोकिल लगातार अपने नूतन चिंतन से देश की बड़ी आर्थिक समस्याओं के समाधान के विकल्प भी प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका ताजा प्रस्ताव पेट्रोल डीजल की वर्तमान कर व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन कर उसकी खुदरा कीमत को लगभग 60 प्रतिशत कम करने के विकल्प का है। इस प्रस्ताव की खास बात यह है कि अनिल बोकिल ने इन उत्पादों के दामों में भारी भरकम कमी के साथ सरकारी खजाने में होने वाली क्षति की पूर्ति के लिए भी समानांतर रूप से ऐसा विकल्प प्रस्तुत किया है जो केंद्र सरकार को इस मद से मिलाने वाले राजस्व से ढाई गुना अधिक राजस्व दिलाने वाला है। अनिल बोकिल इसे विचार नहीं प्रस्ताव कहते हैं, क्योंकि वे इसे अमल में लाने का सम्पूर्ण खाका भी प्रस्तुत करते हैं। बकौल अनिल बोकिल, यह प्रस्ताव पूर्णत: व्यावहारिक है बस, जरूरी है कि सरकार आउट ऑफ बॉक्स सोचना आरंभ करे।

अब बात अनिल बोकिल के उस प्रस्ताव की, जिसको अपनाकर पेट्रोल डीजल की खुदरा कीमतों में 60 प्रतिशत की भारी कमी के साथ सरकारी खजाने में इस मद से मिलने वाले राजस्व में इजाफा किया जा सकता है। यदि आगामी बजट में इस विकल्प को स्वीकृति मिलती है तो यह कोरोना संकट के बीच आम उपभोक्ता, उद्योग और कृषि क्षेत्र के लिए बड़ी राहत साबित हो सकती है। इतना ही नहीं, इसके माध्यम से केंद्र सरकार के साथ बैंकों को भी अतिरिक्त आय जुटाने की गुंजाइश इस प्रस्ताव में है।

अनिल बोकिल के नये प्रस्ताव को समझने के लिए उनके द्वारा प्रस्तुत आधारभूत आंकड़ों पर पहले गौर करना होगा। यदि 1 दिसंबर 2020 की दिल्ली की पेट्रोल और डीजल की कीमतों को देखें तो वे क्रमश: 82.34 रुपये और 72.42 रुपये प्रति लीटर थी और इसमें केंद्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले कर अर्थात एक्साइज ड्यूटी और रोड सेस मिलाकर क्रमश: 32.98 रुपये और 31.83 रुपये प्रति लीटर की लागत शामिल है। अनिल बोकिल के प्रस्ताव में इन केन्द्रीय करों को पूर्णत: समाप्त करने की सिफारिश है और यदि ऐसा होगा तो इन्हें घटाकर हमें पेट्रोल 49.36 रुपये और डीजल 40.59 रुपये प्रति लीटर की दर से मिलेगा। अर्थात वर्तमान कीमतों से ये उत्पाद 56 से 60 प्रतिशत कम दाम पर मिलेंगे।

आप कहेंगे कि एक तरफ सरकार अपने अनियंत्रित राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों पर दुनिया में सबसे अधिक लगभग 69 कर लगाने को निर्विकल्प मानती है तो और दूसरी तरफ इन्हें पूर्णत: समाप्त करने के विकल्प कैसे चुना जा सकता है? तो इसके लिए अनिल बोकिल ने जो विकल्प दिया है वह काबिले गौर है। उन्होंने इसके लिए देश के वर्तमान स्तर पर होने वाले डिजिटल ट्रांजेक्शन पर अधिकतम केवल 0.30 प्रतिशत बीटीटी (बैंकिंग ट्रांजेक्शन टैक्स) लगाकर वर्तमान से लगभग ढाई गुना राजस्व एकत्रित करने का विकल्प दिया है। इस अतिरिक्त राजस्व का प्रयोग केंद्र सरकार या तो अपने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने में कर सकती है या फिर इससे अन्य महत्वपूर्ण विकास कार्यों को पूरा करने में कर सकती है। अनिल बोकिल ने अपने प्रस्ताव में इस राजस्व का 4 प्रतिशत बैंकों को सेवा शुल्क के रूप में बांटने का प्रस्ताव भी दिया है जिससे बैंकों को लगभग 26400 करोड़ रुपयों की आय भी होगी। इतना ही नहीं जिस प्रकार कोरोना काल में डिजिटल ट्रांजेक्शन की प्रवृति में वृद्धि हुई है, यदि यह जारी रहती है तो इस बैंकिंग ट्रांजेक्शन टैक्स से मिलने वाले राजस्व में और भी वृद्धि होगी।

अनिल बोकिल ने अपने नए प्रस्ताव को आगामी केन्द्रीय बजट में शामिल करने का सुझाव दिया है और बुद्धिजीवियों, राजनेताओं, मीडिया और आम जनता से भी यह अपील की है कि वे भी इस प्रस्ताव का विश्लषण करें और इसे लागू करने की मांग सरकार के समक्ष रखें, क्योंकि यह प्रस्ताव हर दृष्टि से एक उत्तम विकल्प है। आज जब कोरोना संकट में केंद्र और राज्य सरकारें देश की अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने के लिए प्रयास कर रही हैं, तब इस लक्ष्य को पाने के लिए अनिल बोकिल का प्रस्ताव अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को राहत प्रदान करने वाला है। इतना ही नहीं, इस प्रस्ताव के माध्यम से अनिल बोकिल के मूल अर्थक्रांति प्रस्ताव (केंद्र और राज्य सरकार के सभी करों को समाप्त कर एकमात्र बैंकिंग ट्रांजेक्शन टैक्स की व्यवस्था लागू करना) की प्रभावशीलता की टेस्टिंग भी हो जायेगी। सवाल है कि क्या सरकार यह बड़ा बदलाव करेगी? वास्तव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 6 वर्षों के अपने कार्यकाल में नवाचार को लागू करने में जो तत्परता दिखाई है उसी से 'मोदी है तो मुमकिन हैÓ का नारा प्रसिद्ध हुआ और यही बात उम्मीद जगाती है। सुखद यह भी है कि मोदी ने अनिल बोकिल के अर्थक्रांति प्रस्ताव को डीमोनेटाईजेशन के निर्णय के समय सुना है और इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि केंद्र सरकार द्वारा आगामी बजट में अनिल बोकिल के इस विकल्प को स्वीकृति मिलेगी और वर्षों बाद उपभोक्ता पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में भारी कमी का सुखद अनुभव करेंगे।

(लेखक डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर में वाणिज्य विभागाध्यक्ष व वित्त अधिकारी हैं)

Updated : 14 Dec 2020 1:54 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top