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शहीद-ए-आजम सरदार ऊधम सिंह

शिवकुमार शर्मा

शहीद-ए-आजम सरदार ऊधम सिंह
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वेबडेस्क। रौलट एक्ट के विरोध में बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर के आदेश पर सैकड़ों निर्दोष लोगों को गोलियों से भुनवा दिया था। बताया जाता है कि गोलियां चलाने वाला जनरल एडवर्ड डायर था। निर्दोष लोगों के इस जघन्य हत्याकांड को 20 वर्षीय नवयुवक ऊधमसिंह ने आंखों से देखा था,उसके मानस पटल पर इसके प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी।उसने इसका बदला लेने की शपथ ले ली। उन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के क्रूरतम कारनामे का बदला हत्याकांड के जिम्मेदारों को उसके घर में घुसकर 21 वर्ष बाद मौत के घाट उतार कर लिया। इस कार्य को दो दशक तक तैयारी और प्रतीक्षा के बाद प्राणों की आहुति देकर पूरा किया गया।आज26 दिसंबर को उस हुतात्मा,शहीद-ए-आजम सरदार ऊधम सिंह की जयंती है।कवि श्रीकृष्ण सरल की शहीदों को समर्पित कविता देशवासियों को दायित्वों का बोध कराती है।

"कर्तव्य राष्ट्र का होता आया यह पावन,
अपने शहीद वीरों का जय गान करें।
सम्मान देश को दिया जिन्होंने जीवन दे,
उनकी यादों का राष्ट्र सदा सम्मान करें।"

ऊधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में 26 दिसंबर 1899 को सरदार तहाल सिंह एवं माता नारायण कौर उर्फ नरैन कौर के यहां हुआ था। जब वे साल भर के थे,तब मां स्वर्ग सिधार गई और आठवें वर्ष 1907 में पिता का साया भी उठ गया।अपने बड़े भाई के साथ खालसा के आश्रय गृह में शरण लेनी पड़ी।बताया जाता है कि बड़े भाई का नाम मुक्ता सिंह था और ऊधम सिंह का बचपन का नाम शेर सिंह था।आश्रय गृह में मुक्ता सिंह को साधु सिंह तथा शेर सिंह को उधम सिंह नाम दिए गए। जब उधम सिंह 18 वर्ष के थे तो बड़े भाई का भी निधन हो गया। उधम सिंह निपट अकेले रह गए।

1918 में अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी कर ली और 1919 में खालसा अनाथालय छोड़ दिया।जलियांवाला बाग हत्याकांड के बदले का संकल्प साथ में लिए क्रांति के पथ पर अग्रसर हो लिए। अपना नाम बदलकर "राम मोहम्मद सिंह आजाद" रख लिया। प्रण पूरा करने के इरादे से उन्होंने अपने नामों को बदल बदल कर दक्षिणअफ्रीका,जिंबाब्वे ,ब्राजील, अमेरिका,नैरोबी आदि देशों में यात्राएं कीं।वे सरदार भगत सिंह को बहुत मानते थे। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की कविताएं गाते रहते थे। 1924 में गदर पार्टी से जुड़े 1927 में भगत सिंह के आदेश पर भारत लौटे ,लेकिन25 क्रांतिकारियों की टीम के साथ मय हथियार गोला बारूद के।

अवैध तरीके से हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार हुए। 4 साल जेल में रहे।जनरल डायर के किए का बदला लेने की ठान चुके थे सो 1931 में जेल से रिहा होने के बाद कश्मीर के रास्ते भाग कर जर्मनी पहुंचे 1934 में लंदन पहुंच गए। जनरल एडवर्ड डायर की ब्रेन हेमरेज के चलते मौत हो गई थी अब उनके निशाने पर माइकल ओ डायर शेष रह गया था। लंदन में 9 ,एल्डर स्ट्रीट,कमर्शियल रोड पर रहने लगे। 6 गोलियों वाली रिवाल्वर भी खरीद ली।13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एसियन सोसायटी की लंदन के कॉक्सटन हॉल में आयोजित बैठक में माइकल ओ डायर भी था। मोटी किताब में बीच के पन्नों को काटकर उसमें रिवाल्वर रख बैठक स्थल पर पहुंचकर माइकल ओ डायर को रिवाल्वर की गोलियों से मौत के घाट उतार दिया। घटनास्थल से भागे नहीं। बेधड़क होकर गिरफ्तारी दी। मिशन पूरा होने पर प्रसन्नता थी मन में कोई मलाल नहीं। मुकदमा चला,दोषी ठहराया गया,31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

"देते प्राणों का दान देश के हित,
शहीद पूजा की सच्ची विधि अपनाते हैं।
हम पूजा के हित थाल सजाते फूलों का,
वे अपने हाथों अपने शीश चढ़ाते हैं।।"

(कवि श्रीकृष्ण 'सरल' की कवित शहीद)

देश के स्वाभिमान की रक्षा में प्राण न्यौछावर करने वाले अमर शहीद उधम सिंह को गर्व के साथ नमन करते हुए आदरांजलिअर्पित करते हैं।

Updated : 25 Dec 2022 9:32 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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