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याद रहे उन अनाम मजदूरों की मेहनत

याद रहे उन अनाम मजदूरों की मेहनत
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विवेक शुक्ला

देश को 28 मई को नई संसद की शानदार इमारत मिलने जा रही है। सैकड़ों अनाम मजदूरों के दिन-रात के श्रम से खड़ी हुई है यह। इसका निर्माण का काम तब भी जारी रहा था जब कोरोना की दूसरी लहर से त्रात्रि-त्राहि मची हुई थी। इसे तामी करने में आधुनिक मशीनों का भी खासा योगदान रहा। जबकि जिस संसद भवन ( पहले काउंसिल हाउस) का 1927 में उदेघाटन किया गया था उसे खड़ा करने में मजदूरों का सिर्फ श्रम लगा था। उन्होंने धौलपुर से लाए गए भारी पत्थरों को हाथों से उठा-उठाकर संसद को बनाया था। बहरहाल, नई संसद को बनाने में मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा और कुछ बिहारी मजदूरों ने पसीना बहाया। ये सब ठेकेदार के मुलाजिम थे और संसद भवन का काम पूरा होने के बाद प्रगति मैदान और मिन्टो रोड में चल रहे दूसरे केन्द्र सरकार के निर्माण कामों से जुड़ गए हैं। इनमें से कुछ बिजली और कुछ प्लम्बर का काम भी सही से जानते हैं। इन्हें यहां 8 घंटों की शिफ्टों में काम करना पड़ा रहा था। हर महीने 15 हजार रुपए पगार और दोनों वक्त का भोजन। इसके अलावा मेडिकल सुविधा भी। ओवर टाइम भी मिलता रहा । राजधानी में सेंट्रल विस्टा और अन्य परियोजनाओं को पूरा करने के लिए हजारों मजदूर यहां आए हुए हैं। ये सब वापस तो अपने गृह प्रदेशों में जाने वाले नहीं हैं। ये एक प्रोजेक्ट के खत्म होने के बाद अगले प्रोजेक्ट से जुड़ जाते हैं। दिल्ली के पुराने लोगों को याद होगा कि यहां पर 1982 के एशियाई खेलों के समय बहुत बड़ी तादाद में मजदूर आए थे। तब मजदूर बिहार से काफी तादाद में आते थे। अब बिहार से आने वाले मजदूरों की संख्या निश्चित रूप से बहुत घटी है। जब संसद भवन का निर्माण चल रहा था तब शाम के पांचेक बजे ये मजदूर चाय-पीने के लिए संसद भवन परिसर स बाहर आ जाया करते थे। ये बाहर किसी चाय के ठीये में खड़े होकर चाय पीते हुए मिलते थे। कुछ मोबाइल पर अपने घरों में बतिया भी रहे होते थे। इनके सिरों पर हेलमेट रहती थी। अब इस तरह का नजारा आपको प्रगति भवन के बाहर देखने को मिल सकता है। वहां पर जी-20 शिखर सम्मेलन का कन्वेंशन सेंटर बन रहा है। खैर, 1927 और 2013 के बीच राजधानी बहुत बदल गई है। यह स्वाभाविक भी है। पहले संसद भवन का उद्घाटन 18 जनवरी, 1927 को तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड इरविन ने किया था। नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे। उन्होंने नई संसद भवन की इमारत की 9 दिसंबर, 2020 को आधारशिला रखी थी। सरकार ने टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को ठेका दिया है कि वह नई संसद को खड़ा करे। इसका डिजाइन तैयार करने की जिम्मेदारी अहमदाबाद की मेसर्स एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एण्ड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसने मुंबई पोर्ट कॉम्प्लेक्स, गुजरात राज्य सचिवालय,आईआईएम, अहमदाबाद आदि के बेहतरीन डिजाइन तैयार किए हैं। इस बीच, पहली संसद के ठेकेदार सिंध के लछमन दास नाम के सज्जन थे। तब लगभग सभी मजदूर राजस्थान के धौलपुर, जयपुर,जोधपुर,भीलवाड़ा वगैरह से थे। ये सपत्नीक आए थे। इन्हें शुरुआती दिनों में पहाड़ी धीरज और करोल बाग में रहने की जगह मिली थी। खुशवंत सिंह ने अपने निबंध 'रोमास आफ दिल्लीÓ में लिखा हैं, 'लछमन दास सच्चाई और नेक नीयती की मिसाल थे। उन्होंने संसद भवन के निर्माण में कभी घटिया सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया। वे अपने मुलाजिमों को वक्त पर वेतन देते थे।Ó खुशवंत सिंह ने इतनी प्रशंसा तो अपने पिता सोबा सिंह की या अन्य किसी ठेकेदार की भी नहीं की थी। सबको पता है कि उनके पिता ने नई दिल्ली की अनेक इमारतों को ठेकेदार के रूप में बनाया था। दरअसल लछमन दास बेहद मानवीय मनुष्य थे। वे संसद भवन के निर्माण में लगे मजदूरों के साथ घुल मिलकर रहते थे। ये सब अपने गांव-देहातों से पैदल ही दिल्ली आए थे। जरा सोचिये कि कितना बलिदान दिया था उन्होंने संसद भवन को बनाने में। इन सीधे-सरल मजदूरों को रोज एक रुपए और महिला श्रमिकों को अठन्नी मजदूरी के लिए मिलते थे। अगर मजदूर मुख्य रूप से राजस्थान से यहां पर आए थे, तो संगतराश आगरा और मिर्जापुर से थे। कुछ भरतपुर से भी थे। ये सब पत्थरों पर नक्काशी और जालियों को बनाने के काम करने में उस्ताद थे। इनके पूर्वजों ने ही ताजमहल,लाल किला, जामा मस्जिद जैसे महत्वपूर्ण स्मारकों का निर्माण किया था। खुशवंत सिंह बताते थे कि इन राजस्थानी मजदूरों को बागड़ी कहा जाता था। बहरहाल, आजकल जो मजदूर राजधानी में आए हुए हैं, उनमें राजस्थान का रहने वाला शायद ही कोई हो। जो मजदूर तब आए थे वे सब इस दिल्ली का हिस्सा बन गए थे। उनके वंशज अब दिल्ली को समृद्ध कर रहे हैं। बहरहाल, संसद भवन का जब उद्घाटन हुआ था तब वहां पर लछमन दास भी थे। उनका मिशन पूरा हो गया था। उन्हें संतोष था कि उनके काम से सब संतुष्ट हैं। पर वे अब दिल्ली में और कोई प्रोजेक्ट लेना नहीं चाहते थे। (लेखक स्तंभकार है)

Updated : 26 May 2023 8:51 PM GMT
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City Desk

Web Journalist www.swadeshnews.in


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