Home > विशेष आलेख > अपराध मुक्त हो राजनीति

अपराध मुक्त हो राजनीति

अपराध मुक्त हो राजनीति
X

देश में बहुत लम्बे समय से इस बात की बहस हो रही है कि दागी जनप्रतिनिधियों को चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं? बहस में कुछ लोग तर्क संगत समर्थन करते हैं तो कुछ विरोध में भी मुखर होते हैं। इसी बात पर मंथन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह व गैर-सरकारी संगठन पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन की याचिकाओं पर यह निर्णय सुनाया कि मात्र आरोप पत्र के आधार पर किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता। हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि देश धनबल और बाहुबल से पहले ही परेशान है। न्यायालय अपनी तरफ से चुनाव लड़ने के लिए किसी भी प्रकार की नई अयोग्यता का नियम नहीं बना सकता, इसके लिए सरकार और चुनाव आयोग को अपने स्तर पर काम करना चाहिए। यह बात सही है कि राजनीति को अपराध से मुक्त करना चाहिए, जिसके लिए संसद में कानून बनाकर मुक्त किया जा सकता है। न्यायालय ने अधिवक्ता के रुप में काम कर रहे सांसदों के काम पर रोक लगाने से भी मना कर दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी मोटे अक्षरों में देनी चाहिए। इसका अर्थ संभवत: यह भी निकाला जा सकता है कि अपराधी व्यक्ति भी अपनी जानकारी देकर चुनाव लड़ सकता है। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी अपनी वेबसाइट पर देनी चाहिए, साथ ही मीडिया में भी इसका प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। संविधान पीठ ने अयोग्यता के मामले को संसद के जिम्मे यह कहते हुए छोड़ दिया कि न्यायालय अयोग्यता की शर्तों में अपनी ओर से कुछ जोड़ नहीं सकते। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं। मार्च 2016 में शीर्ष अदालत ने यह मामला संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था। याचिकाकर्ता ने गुहार लगाई थी कि जिन लोगों के विरोध में आरोप तय हो गये हों और उन मामलों में पांच साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान हो, उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाये। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पूछा था कि क्या चुनाव आयोग ऐसी व्यवस्था कर सकता है कि जो लोग आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं उनके बारे में ब्यौरा सार्वजनिक किया जाये। एटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि जहां तक सजा से पहले ही चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध का सवाल है तो कोई भी आदमी तब तक निर्दोष है जब तक कि न्यायालय उसे सजा नहीं दे देता और संविधान का प्रावधान यही कहता है।श में बहुत लम्बे समय से इस बात की बहस हो रही है कि दागी जनप्रतिनिधियों को चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं? बहस में कुछ लोग तर्क संगत समर्थन करते हैं तो कुछ विरोध में भी मुखर होते हैं। इसी बात पर मंथन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह व गैर-सरकारी संगठन पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन की याचिकाओं पर यह निर्णय सुनाया कि मात्र आरोप पत्र के आधार पर किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता। हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि देश धनबल और बाहुबल से पहले ही परेशान है। न्यायालय अपनी तरफ से चुनाव लड़ने के लिए किसी भी प्रकार की नई अयोग्यता का नियम नहीं बना सकता, इसके लिए सरकार और चुनाव आयोग को अपने स्तर पर काम करना चाहिए। यह बात सही है कि राजनीति को अपराध से मुक्त करना चाहिए, जिसके लिए संसद में कानून बनाकर मुक्त किया जा सकता है। न्यायालय ने अधिवक्ता के रुप में काम कर रहे सांसदों के काम पर रोक लगाने से भी मना कर दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी मोटे अक्षरों में देनी चाहिए। इसका अर्थ संभवत: यह भी निकाला जा सकता है कि अपराधी व्यक्ति भी अपनी जानकारी देकर चुनाव लड़ सकता है। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी अपनी वेबसाइट पर देनी चाहिए, साथ ही मीडिया में भी इसका प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। संविधान पीठ ने अयोग्यता के मामले को संसद के जिम्मे यह कहते हुए छोड़ दिया कि न्यायालय अयोग्यता की शर्तों में अपनी ओर से कुछ जोड़ नहीं सकते। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं। मार्च 2016 में शीर्ष अदालत ने यह मामला संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था। याचिकाकर्ता ने गुहार लगाई थी कि जिन लोगों के विरोध में आरोप तय हो गये हों और उन मामलों में पांच साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान हो, उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाये। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पूछा था कि क्या चुनाव आयोग ऐसी व्यवस्था कर सकता है कि जो लोग आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं उनके बारे में ब्यौरा सार्वजनिक किया जाये। एटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि जहां तक सजा से पहले ही चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध का सवाल है तो कोई भी आदमी तब तक निर्दोष है जब तक कि न्यायालय उसे सजा नहीं दे देता और संविधान का प्रावधान यही कहता है।

Updated : 26 Sep 2018 1:40 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top