भाग-1/ पितृ-पक्ष विशेष : सृष्टि के सर्जक हैं महर्षि कश्यप
महिमा तारे
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महर्षि कश्यप को संपूर्ण सृष्टि का सृजन करता माना जाता है। जिसके कारण इन्हें 'सृष्टि के सर्जक' की उपाधि से विभूषित किया गया। देवता, असुर, नाग सब इन्हीं की संतति है।
श्री नरसिंह पुराण के अनुसार मरीचि ऋषि ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। मरीचि ऋ षि की पत्नी संभूति से ही महर्षि कश्यप का जन्म हुआ। महर्षि कश्यप सप्त ऋ षियों में प्रमुख माने गए हैं, विष्णु पुराण के अनुसार सातवें मन्वंतर में सप्त ऋ षि इस प्रकार हैं वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।
दक्ष प्रजापति ने अपनी 60 कन्याओं में से 13 कन्याओं का दान महर्षि कश्यप को किया, दक्ष प्रजापति को कोई पुत्र नहीं था, इसीलिए राज्य सत्ता का दायित्व कश्यप ने ही संभाला। तेरह दक्ष कन्याएं अदिति, दिति, दनु, अरिष्ठा, सुरसा, खसा, सुरभि, विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा, कद्रू और मुनि थी। इन्हीं से ही सृष्टि का सृजन हुआ और सृष्टि के सर्जक कहलाए।
दक्ष कन्या अदिति ने 12 पुत्रों को जन्म दिया जो बारह आदित्य कहलाएं। इनके कुलों का संयुक्त नाम आदित्य कुल पड़ा। इनमें जो देवभूमि में रहे वे देव कहलाएं और जो भारतवर्ष में आए वे आर्य कहलाए।
कश्यप के पुत्र विवस्वान का पुत्र मनु। मनु ने ही आर्य जाति की स्थापना की। जिसमें पितृ मूलक परिवार व्यवस्था और वेद प्रमाण को वरीयता दी गई। मनु के सबसे ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु अयोध्या में रहे। यही सूर्य कुल बाद में बहुत प्रसिद्ध हुआ। इसी कुल की 86वीं पीढ़ी में राजा दशरथ और राम हुए। इसी कुल में प्रतापी अज, रघु, दिलीप, अमरीश, भरत, दुष्यंत, ययाति हुए।
महर्षि कश्यप और दिति के गर्भ से परम दुष्ट हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र और सिंहिका नामक एक पुत्री हुई। भागवत में ऐसा आता है कि संध्या के समय जब ऋषि संध्या वंदन कर रहे थे, तब दिति ने उनसे पुत्र प्राप्त की इच्छा प्रकट की। तब कश्यप ऋषि ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा था कि इस समय तीनों समय मिल रहे हैं। गर्भधारण के लिए यह समय उचित नहीं है, पर पत्नी के न मानने पर उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि तुम्हें दो अमंगल पुत्र होंगे और उनके द्वारा निरअपराध लोग मारे जाएंगे। स्त्रियों पर अत्याचार होंगे, तब भगवान अवतार लेंगे और तुम्हारें पुत्रों का विनाश होगा। हम जानते हैं कि हिरण्यकश्यपु भगवान नरसिंह और हिरण्याक्ष भगवान वराह के हाथों मारे गए। हिरण्यकश्यपु को चार पुत्र हल्लाद, अनुहल्लाद, प्रहलाद और सहल्लाद हुए। परम भक्त प्रहलाद के बारे में भी हम सब जानते ही हैं। कश्यप ऋषि की तपस्थली कश्मीर थी, उन्हीं के नाम कर इस जगह का नाम कश्मीर पड़ा। वे कश्यप संहिता और बृहद जैवकीय तंत्र के लेखक हैं। जिसे आर्युवेद, स्त्री रोग और बाल चिकित्सा का प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है।
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