Home > मप्र चुनाव 2023 > डीपी मिश्र ऐसे कांग्रेसी जो नेहरू को खुलेआम देते थे चुनौती

डीपी मिश्र ऐसे कांग्रेसी जो नेहरू को खुलेआम देते थे चुनौती

कृष्णायन जैसी महान कृति के लेखक एवं मध्यप्रदेश में राजनीति के चाणय

डीपी मिश्र ऐसे कांग्रेसी जो नेहरू को खुलेआम देते थे चुनौती
X

वेबडेस्क। कांग्रेस के कद्दावर नेता द्वारकाप्रसाद मिश्र को राजनीति में चाणय कहा जाता था। वह एक साहित्यकार और प्रखर राजनेता के रूप में प्रसिद्ध थे। उनका मुख्यमंत्री बनना मध्यप्रदेश में कांग्रेस के इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। सितंबर 1963 में जब मिश्र मुयमंत्री बने थे, तब कांग्रेस के पास मात्र 142 सीटें थीं। वहीं, ठीक चार साल बाद सन् 1967 में जब मिश्र के नेतृत्व में चुनाव हुए, तब कांग्रेस को लगभग 170 सीटें मिली। मिश्र के मुयमंत्री रहते हुए ही बड़ी हेरफेर हुई थी, जिसमें प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के 24 विधायक कांग्रेस में दलबदलकर आ गए थे। पत्रकार मायाराम सुरजन की किताब में डीपी मिश्र के ढेरों किस्से हैं, जो उनके विराट व्यतित्व को अधोरेखित करते हैं। कहा जा सकता है कि डीपी मिश्र मप्र ही नहीं देश के बेहतरीन राजनेताओं में एक थे। एक मंजे हुए नेता से लेकर आलाकोटि के साहित्यकार, शिक्षाविद् औऱ कट्टर स्वाभिमानी के गुण उनमें मौजूद थे। उनका सक्रिय राजनीति का पूरा कार्यकाल मप्र के लिए धरोहर जैसा ही है। उनका शासन-प्रशासन और राजनीतिक जीवन अखबारों की सुर्खियां हुआ करता था। उनके बाद कई मुयमंत्री उनकी कार्यशैली से प्रभावित होकर उनकी तरह काम करते हुए नजर आए। बता दें कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद केंद्र सरकार में सरदार पटेल और आरएसएस के बीच मध्यस्थता डीपी मिश्र ने ही कराई थी।

कृष्णायन जैसी कृति लिखी और कुलपति तक रहे -

डीपी मिश्र साहित्य में कृष्णायन जैसी महान कृति की रचना भी 1942 में जेल में रहते हुए की थी। वह सागर विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे और पौराणिक भूगोल जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ को प्रकाशित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी दौरान वह सागर जिले में विदिशा की सीमा पर एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक खुदाई के सूत्रधार भी रहे। डीपी मिश्र को हिंदू होने पर गर्व था। उनकी सनातन धर्म, वेद, पुराण, गीता आदि ग्रंथों में खासी रूचि थी, बावजूद इसके वह धार्मिक कर्मकांड व पाखंड से दूर रहे। 1951 में राजर्षि पुरुषोामदास टंडन के इस्तीफे पर डीपी मिश्र खुलकर जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ गए थे। नेहरू और टंडन के बीच हुए विवाद में द्वारकाप्रसाद मिश्र हमेशा नेहरू के खिलाफ बयान देते रहते थे। इसका एक बहुत बड़ा कारण था कि कांग्रेसी उनके घोर विरोधी हो गए थे। तमाम राजनीतिक उथलपुथल के बाद मिश्र ने कांग्रेस छोड़ दी और कांग्रेस ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।

जूते की पूजा का प्रसंग

डीपी मिश्र, नेहरू का विरोध करने और अपनी पार्टी 'लोक कांग्रेस बनाने के बाद दिल्ली से जब जबलपुर लौटे, तब उन्हें एक आमसभा में बोलने तक नहीं दिया गया। इसका मुख्य कारण था कि कांग्रेसी उनसे नेहरू की आलोचना को लेकर खासे नाराज थे। सभा में ना सिर्फ उन्हें बोलने से रोका गया, बल्कि धक्का-मुक्की के बीच मिश्र को बाहर निकलते समय जूते पहनने तक का समय नहीं मिला, जिसके कारण उन्हें सभा के बीच ही अपना जूता छोड़कर जाना पड़ा।सभा के दूसरे दिन उनके जूते को लेकर एक बड़ा मुद्दा बना। उनके जूते को किसी स्थानीय पत्रकार ने अपने कार्यालय में जमा करवाकर व्यंगात्मक समाचार लिखा। इस लेख में लिखा गया कि जिस भी सज्जन को दूसरा जूता मिले, वह उसे यहां कार्यालय में जमा करवा दें, ताकि दोनों जूते डीपी मिश्र को वापस पहुंचाए जा सके। वहीं, मिश्र ने भी एक अन्य समाचार के माध्यम से इस बात का करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा, जूते मेरे पास भेजने की जरूरत नहीं है। कृपया एक जूते की पूजा अपने कार्यालय में करें और दूसरा मिल जाए तो उसे मध्यप्रदेश के सचिवालय में नागपुर भेज दिया जाए, ताकि उसकी पूजा वहां की कांग्रेस सरकार कर सके।

नेहरू से सीधे भिडऩे वाले इकलौते नेता

डीपी मिश्र मनोविज्ञान, राजनीति शास्त्र, वेद, पुराण पर समान अधिकार से बात करते थे। उनका शुरुआती जीवन कोलकाता (तब कलकत्ता) के अमृत बाजार पत्रिका में संवाददाता के रूप में हुआ था। जब वह अपनी आजीविका आरंभ करते हुए फिल्म निर्माण में भी हाथ आजमाए, वहीं जब वह मध्यप्रांत के गृहमंत्री थे, तब जवाहरलाल नेहरू के साथ उनका मतभेद भी हुआ था। जब वह गृहमंत्री और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रूप में कार्यरत थे, तब उन्होंने अपने 14 पन्नों के इस्तीफे में नेहरू पर बहुत सारे आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था नेहरू के कारण चीन भारत पर हमला करेगा - डीपी मिश्र ने जब कांग्रेस को अलविदा कहा तो उन्होंने एक भविष्यवाणी की थी। उन्होंने कहा था कि नेहरू की नीतियों के कारण 1 दिन चीन और पाकिस्तान भारत पर हमला करेंगे। बता दें कि मिश्र की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण यह था कि भारत ने तिबत को चीन के हाथों सौंप दिया। डीपी मिश्र उस वत नेहरू के सिद्धांतों का खुलकर विरोध कर रहे थे और इसी दौरान उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। 12 साल बाद राजनीति की अपनी दूसरी पारी शुरू करते हुए 1963 में वह मध्यप्रदेश के मुयमंत्री बनकर वापस लौटे। डीपी मिश्र ने जिस वत कांग्रेस छोड़ी थी, उस दौरान उन्होंने 'भारतीय लोक कांग्रेसÓ नाम से एक नई पार्टी बनाई थी। सन 1952 में मिश्र ने इस पार्टी से जबलपुर, छिंदवाड़ा और नागपुर में चुनाव भी लड़ा था, लेकिन दुर्भाग्यवश व तीनों जगह से हार गए।

Updated : 18 May 2023 9:41 AM GMT
Tags:    
author-thhumb

स्वदेश डेस्क

वेब डेस्क


Next Story
Top