Home > राज्य > मध्यप्रदेश > अन्य > छिंदवाड़ा में ऐतिहासिक गोटमार मेले का आयोजन, 185 लोग घायल, तीन की हालत गंभीर

छिंदवाड़ा में ऐतिहासिक गोटमार मेले का आयोजन, 185 लोग घायल, तीन की हालत गंभीर

छिंदवाड़ा में ऐतिहासिक गोटमार मेले का आयोजन, 185 लोग घायल, तीन की हालत गंभीर
X

छिंदवाड़ा। जिले के पांढुर्ना कस्बे में शनिवार को सुबह शुरू हुए ऐतिहासिक गोटमार मेले में शाम चार बजे तक करीब 185 लोग घायल हुए हैं। इनमें से तीन को गंभीर हालत में नागपुर रैफर किया गया है। फिलहाल, मेले में पत्थरबाजी जारी है, इसलिए घायलों का आंकड़ा बढ़ सकता है। घायलों के उपचार के लिए पांढुर्ना और सावरगांव में मेडिकल कैंप लगाए गए है, जहां उनका उपचार जारी है।

दरअसल, वर्षों पुरानी मान्यता के आधार पर आयोजित यह गोटमार मेला पूरे विश्व मे अनोखा है। गोटमार मेले में पांढुर्ना-सावरगांव दोनों पक्ष के लोग नदी के दोनों किनारों पर खड़े होकर एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। इसमें सावरगांव पक्ष के लोग पलाश के झंडे को पांढुर्ना सावरगांव के बीच बहने वाली जाम नदी के बीच झंडे को स्थापित करते हैं। जिसके बाद पूजा-अर्चना कर गोटमार की प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें दिन-भर दोनो पक्षो के लोग एक दूसरे पर आमने-सामने पत्थर बरसाते हैं। जिससे सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं। जिला प्रशासन इस मेले को बंद करने की लगातार कोशिश कर रहा है, लेकिन इसमें अभी तक सफलता नहीं मिली।

पोला पर्व के दूसरे दिन इस साल भी यहां गोटमार मेला आयोजित किया गया। शनिवार सुबह 5.00 बजे मेले में सबसे पहले पलाश के पेड रूपी झंडे को पांढुर्ना और सावरगांव का विभाजन करनेवाली जाम नदी में मजबूती से गाड़ दिया गया। जिसके बाद सावरगांव और पांढुरना के इस मेले के प्रति आस्था रखने वाले महिला एवं पुरूष वर्ग ने पूजा-अर्चना की। इसके बाद सुबह 11.00 बजे पत्थरबाजी का खेल शुरू हो गया। इसमें दोपहर एक बजे तक 60 लोग घायल हुए थे, लेकिन शाम चार बजे तक यह आंकड़ा बढ़कर 185 पर पहुंच गया।

जिला प्रशासन ने घायलों के उपचार के लिए दोनों गांवों में स्वास्थ्य शिविर लगाए हैं। इनमें 29 चिकित्सा अधिकारी और 130 स्वास्थ्यकर्मी तैनात है। साथ ही गंभीर घायल होने वाले खिलाड़ियों को तत्काल सघन उपचार के लिए पहुंचाने के लिए 12 एंबुलेंस तैनात की गई है। इसके अलावा जिला कलेक्टर सौरभ सुमन, एसपी विवेक अग्रवाल और अन्य प्रशासनिक अधिकारी मेले की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं। मेले के आसपास के अलावा शहर में चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात किया गया है। जिसमें तीन एएसपी, 11 डीएसपी और 16 टीआई सहित 700 से अधिक बल शामिल है।

मेले के दौरान गोफन चलाने वालों और अन्य अनैतिक गतिविधियों पर ड्रोन कैमरों से भी नजर रखी जा रही है। गोटमार मेले की आराध्य देवी मां चंडिका के दरबार में श्रद्धालुओं के दर्शन का सिलसिला जारी है। यहां श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ मंदिर समिति ने विशेष व्यवस्था की है। शहर के चारों ओर 18 स्थानों पर नाकेबंदी की गई है, जहां गोटमार मेले में शामिल होने वाले व्यक्तियों पर नजर रखी जा रही है।

मेले से जुड़ी है कहानियां -

विश्वप्रसिद्ध गोटमार मेले की परंपरा निभाने के पीछे कहानियां जुड़ी हैं। एक प्रचलित कहानी के अनुसार पांढुर्णा के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेमसंबंध थे। युवक ने सावरगांव पहुंचकर युवती को भगाकर पांढुर्णा लाना चाहा, पर दोनों के जाम नदी के बीच पहुंचते ही सावरगांव में खबर फैल गई। प्रेमीयुगल को रोकने सावरगांव के लोगों ने पत्थर बरसाए, वहीं जवाब में पांढुर्णा के लोगों ने भी पत्थर बरसाए। इस पत्थरबाजी में प्रेमीयुगल की तो मौत हो गई, पर तब से गोटमार मेले की परंपरा शुरू होने की बात कहानी के अनुसार कही जाती है।

युद्धभ्यास की कहानी

कहानी प्रचलित है कि जाम नदी के किनारे पांढुर्णा-सावरगांव वाले क्षेत्र में भोंसला राजा की सैन्य टुकड़ियां रहा करती थीं। रोजाना युद्धभ्यास के लिए टुकड़ियां के सैनिक नदी के बीचो-बीच झंडा लगाकर पत्थरबाजी और निशानेबाजी का मुकाबला करते थे। सैनिकों को निशानेबाजी और पत्थरबाजी में दक्ष करने यह सैन्य युद्धभ्यास लंबे समय तक जारी रहा। जिसने धीरे-धीरे परंपरा का रूप ले लिया। इस कहानी को भी गोटमार मेला आयोजन से जोड़ा जाता है और हर साल परंपरा निभाई जाती है।

कम नहीं होगा अपनों को खोने का गम

भले ही गोटमार मेला सदियों से चली आ रही परंपरा अनुसार मनाया जा रहा है, पर मेले में अपनों को खोने वाले परिवारों का गम भी उभर जाता है। मेले के आते ही क्षेत्र के कई परिवारों के सालों पुराने दर्द उभर आते है। क्योंकि इन परिवारों ने गोटमार में ही अपनो को खोया है। गोटमार के दौरान अब तक किसी का पति, तो किसी का बेटा, किसी का पिता और भाई अपनी जान गवां चुके हैं। वहीं कई खिलाड़ियों को शरीर पर मिले जख्म गोटमार के दिन हरे हो जाते हैं।

प्रशासन के प्रयास अब तक असफल

गोटमार की परंपरा सदियों से चली आ रही है। एक-दूसरे पर पत्थर बरसाकर लहुलूहान करने की इस परंपरा को रोकने प्रशासन ने तमाम प्रयास किए, पर प्रयास असफल रहे हैं। एक साल पत्थरों की बरसात रोकने रबर बॉल से खेल का प्रयास हुआ, पर चंद मिनटों में ही रबर बॉल सिफर हो गए और खिलाड़ियों ने पत्थरों से ही खेल शुरू कर दिया। बीते पांच-छह सालों से हर बार गोटमार रोकने भरसक प्रयास हो रहे हैं।मानवाधिकार आयोग ने भी इस पर आपत्ति जताई, जिसके बाद मेले में पत्थरबाजी को रोकने प्रशासन सख्ती से मुस्तैद रहा, पर गोटमार निभाने की परंपरा नही रूक पाई।

बदलते स्वरूप से वयोवृद्ध चिंतित

गोटमार मेले को सदियों से चली आ रही परंपरा की भांति मनाया जा रहा है, पर परंपरा पर विसंगतियां हावी होने से क्षेत्र के वयोवृद्ध चिंतित हैं। बुजुर्गों का कहना है कि गोटमार मेले में काफी बदलाव आ गया है। पहले की गोटमार और आज की गोटमार में जमीन-आसमान का अंतर है। पहले एक हद में रहकर परंपरा के भांति मेला आयोजित होता था, पर अब अवैध शराब और गोफन से मेले का स्वरूप बदल गया है। गोटमार में खिलाड़ियों को परंपरा निभाने की जिम्मेदारी समझनी चाहिए, ताकि पारंपरिक मेले का स्वरूप बरकरार रहे।

Updated : 27 Aug 2022 2:34 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

स्वदेश डेस्क

वेब डेस्क


Next Story
Top