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1956 के पूर्व सिरोंज राजस्थान सूबे का प्रमुख जिला था, अब जिला बनाने की फिर उठी मांग

1956 के पूर्व सिरोंज राजस्थान सूबे का प्रमुख जिला था, अब जिला बनाने की फिर उठी मांग
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लटेरी/श्याम चोरसिया। 01 नवम्बर 1956 के पूर्व विदिशा का सिरोंज राजस्थान सूबे का प्रमुख जिला हूआ करता था। जी हां जब सिरोंज की आबादी आज की तरह 50 हजार न होकर 04-05 हजार से भी कम हूआ करती थी। तब सिरोंज राजस्थान सूबे के एक जिला था। यहाँ से चुना गया विधायक राजस्थान की विधानसभा की शोभा हुआ करता था। सिरोंज पहुचना या वहा से वापस आना भौगोलिक ओर दुरूह परिवहन/ यातायात की दृष्टि से ये बहुत अव्यवहारिक, समय साध्य, कष्ट प्रद था। सिरोंज जयपुर से 660 km ओर राजस्थान सीमा से करीब 235 km हुआ करता था। मप्र के बीचों बीच था।

दरअस्ल इस अजूबे की लंबी इतिहासिक राजतन्त्र कालीन कथा है। सिरोंज को भोपाल नबाब ने टोंक रियासत को देहज में दे दिया था। नतीजन टोंक ने सिरोंज को अपनी जागीर बना लिया था। 1947 में विलीनीकरण के समय टोंक के संग संग सिरोंज भी राजस्थान सूबे में शामिल हो गया। राजतंत्र काल मे बकायदा सिरोंज के अपने बांट ओर मुद्रा थी। एक सेर का दुर्लभ बाट सिरोंज को जिला घोषित करता है।बाट पर सिरोंज के महत्व,पावर,कद को दर्शाया गया है।

1983-84 तक जयपुर या इन्दोर से सिरोंज पहुचना टेडी खीर हुआ करता था। न सड़के थी न नदियों,नालों पर पुल। राजगढ़ के तात्कालीन सांसद डॉक्टर वसंत कुमार पंडित के हिमालयीन प्रयासों से पार्वती नदी ओर रास्ते की अन्य नदियों-नालों पर पुल बने। मगर डामर सड़क फिर भी नही थी। डाक्टर पंडित के योगदान से सिरोंज का दूर संचार सम्पर्क पूरे भारत से हो सका। पहले ब्यावरा से सिरोंज पहुचने के दो समय साध्य,उबाऊ,अति कष्टप्रद दो रास्ते थे। एक जंजाली होते हुए मकसूदनगढ़,लटेरी, सिरोंज। दूसरा भोपाल से विदिशा होते हुए सिरोंज। दूरियां 200 km ओर 260 km से कम नही थी।मगर अब ब्यावरा से 80 km की एक दम टनाटन डबल रॉड से सिरोंज पहुचने में 70-80 मिनिट लगते है।

1956 में सिरोंज को मप्र में शामिल करने के बदले मंदसौर जिले का एक बड़ा हिस्सा राजस्थान को देना पड़ा। तब सिरोंज का पिंड राजस्थान से छुटा। सन 2000 तक कुछ बड़े शहरों को छोड़ दो तो मप्र के किसी भी नगर,जस्बे में दूसरी मंजिल पर दुकान नही होती थी। मगर सिरोंज में आजादी के पहले से ही दूसरी मंजिल पर दुकानें सजती रही । अब समय ने और निखार ला दिया।

सिरोंज को ग्वालियर,भोपाल,कोटा,सागर, विदिशा से टनाटन डबल रॉड से जोड़ने वाले ओर आधुनिक दूर संचार सुविधाए, शिक्षा, स्वास्थ्य,जल संसाधन आदि सुविधाए सुलभ कराने के असल शिल्पी पूर्व काबीना मंत्री प. लक्ष्मी कांत शर्मा को माना जाता है। राजतंत्र से लोकतंत्र की लंबी और कष्टप्रद यात्रा को अति सुखद बनाने में श्री शर्मा के दिए योगदान को कभी भुला नही जा सकता। उनके दूरदर्शी योगदान से सिरोंज गड्ढे से निकला। आज अनेक उद्धमी इंदौर, भोपाल,ग्वालियर में सिरोंज का नाम रोशन कर रहे है।

सिरोंज के फैलाव को देखते हुए अब उसे जिला बनाने की मांग प्रबल होने लगी। कतार में सागर का बीना भी है। बीना जैसे बड़े रेलवे जंक्सन को अरसे से जिला बनाने की मांग उठती आ रही है। वैसे भी सागर का शुमार बड़े जिलों में होता है। जब गुना से अशोक नगर को काट के जिला बनाया जा सकता है तो सिरोंज ओर बीना ने क्या कसूर किया? सिरोंज को जिला बनाकर शिल्पी,योद्धा लक्ष्मी कांत शर्मा को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।

Updated : 12 Aug 2021 1:58 PM GMT
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