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व्यक्ति निर्माण ही सभी चुनौतियों की अचूक औषधि: द्विवेदी -

मामा माणिकचंद वाजपेयी के जीवन पर आधारित विशेषांक का विमोचन

व्यक्ति निर्माण ही सभी चुनौतियों की अचूक औषधि: द्विवेदी    -
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ग्वालियर, न.सं.। हमारे लिए सबसे पहले भारत है और भारत का मतलब है भारतीयता एवं भारतबोध। हिन्दु-मुसलमान भी नहीं। आज का हिन्दुस्तान बदल हुआ है। आज हम ऐसा भारत बनते देख पा रहे हैं, जो अपने सपनों में रंग भरना चाहता है, पूरी प्रखरता से आगे बढऩा चाहता है, अपनी आकांक्षाओं का पूरा करना चाहता है। ऐसे में हमारा भी दायित्व बनता है कि भारत को आगे बढ़ाने के लिए हम भी अपने विचारों को निरंतर आगे बढ़ाने का प्रयास करें। व्यक्ति निर्माण ही सभी समस्याओं, चुनौतियों, कठिनाइयों की अचूक औषधि है। संघ के इस सूत्र को हमें पकडऩा पड़ेगा। यह बात भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली के महानिदेशक एवं विचार प्रो. संजय द्विवेदी ने रविवार को राष्ट्रोत्थान न्यास के विवेकानंद सभागार में मामा माणिकचंद वाजपेयी के जीवन पर आधारित पांचजन्य द्वारा प्रकाशित विशेषांक के विमोचन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की आसंदी से कही।

मामा माणिकचंद वाजपेयी स्मृति सेवा न्यास द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में प्रो. द्विवेदी ने मामाजी के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उदाहरणों के माध्यम से अपनी बात रखी। उन्होंने यह बताने का प्रयास किया कि मामाजी को जो भी दायित्व मिला उसे बखूबी तरीके से निभाया। वह कभी भी अपने दायित्वों से पीछे नहीं हटे बल्कि उसे सहज व सरल तरीके से आगे बढ़ाने का कार्य किया। प्रो. द्विवेदी ने पं. दीनदयाल जी को याद करते हुए कहा कि उस समय जब राष्ट्रीय भावना व्यक्त करना कठिन काम था, तब पं. दीनदयाल जी पे्ररणा पुंज के रूप में सामने आए, जिन्होंने लखनऊ से स्वदेश, राष्ट्रधर्म, पांचजन्य का संपादन किया। उन्होंने विचारों की एक शृंखला और कठिन मानदंड स्थापित किए। चूंकि संघ की विचारधारा से निकलने वाले पत्रकार स्वयं को पीछे रखकर कार्य करते हैं, इसलिए पं. दीनदयाल जी के बाद जो संपादक आए, उन्हें कोई जानता ही नहीं है और वे एक अनाम योद्धा की तरह रह गए, जबकि उनका त्याग, तपस्या, महत्व मुख्यधारा के पत्रकारों से कम नहीं है। इसी विचारधारा से निकले मामा जी ने आदर्श स्थापित किए। उन्होंने संघ के विचारों, संघ के गीतों को जीवन में उतारकर जीवन जिया। उनके लेखन पर कभी विवाद नहीं हुआ क्योंकि उनके लेखन में आलोचना और कटुता नहीं थी। सभी ने उनका आदर किया, पर आज न तो वैसे नेता हैं और न पत्रकार। आज हर क्षेत्र में पराभव हुआ है। ऐसे में जब मामा जी जैसे संत पुरुष याद आते हैं, तब हमें विचार यात्रा का मार्ग मिलता है। अगर नई पीढ़ी को बचाना है तो मामा जी जैसे आदर्श और संघ के गीतों को जीवन में उतारना होगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यवाह यशवंत इंदापुरकर ने कहा कि संघ का जो दर्शन है। उसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि किसी ने संघ के बौद्धिक सुने होंगे या संघ का जो साहित्य है, उसे पढ़कर किसी ने संघ को समझा होगा। उनमें से यदि कोई बहुत अच्छा कार्यकर्ता बना होगा तो यह आम तौर पर एक अपवाद है, लेकिन अधिकांश लोगों ने संघ को समझा है तो उन्होंने संघ की पाठशाला में रहकर जीवन दर्शन को जिया है। जिस प्रकार एक अच्छा शिक्षक उदाहरणों से समझाता है तो विद्यार्थी को वह जीवन भर याद रहता है। मामा जी जैसे जीवन, जैसा कि सरसंघचालक ने भी कहा कि वे बीज बनकर जिए और वह बीज कहां चला गया? किसी को पता नहीं होता, लेकिन प्रकृति का एक संसार खड़ा हो जाता है।

न्यास के सचिव अतुल तारे ने कहा कि मामा जी की जन्मशताब्दी पर नई दिल्ली में उन पर केन्द्रित विशेषांक के विमोचन का अवसर आया तो यह बात सामने आई कि मामा जी कौन थे। इस पर सरसंघचालक जी ने कहा कि मामा जी कौन थे यही मामा जी के लिए प्रमाण पत्र है क्योंकि वे नियमों में खप गए, गल गए। आज हम समाज में जो सकारात्मक पिरिवर्तन और वैश्विक परिवर्तन का अनुभव करते हैं, उसके पीछे मामा जी जैसे तपस्वियों का ही योगदान है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे न्यास के अध्यक्ष दीपक सचेती ने कहा कि ये हमारा दुर्भाग्य है कि हमें मामा जी का सानिध्य प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन हमें उनको देखने और उनके संस्मरण सुनने का अवसर जरूर मिला। वे एक सहज, सरल, सभी गुणों से पूर्ण व्यक्तित्व थे। उन्हें जो भी दायित्व दिया गया, उसे उन्होंने पूर्ण किया। उन्होंने पत्रकारिता को एक मिशन के रूप में लिया। यही वजह है कि स्वदेश को पत्रकारिता का विद्यालय कहा जाता है। कार्यक्रम का संचालन राजेश वाधवानी ने एवं आभार प्रदर्शन राजलखन सिंह ने किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

Updated : 12 Oct 2021 11:16 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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