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रसाल सिंह ने जनसंघ से 2 और भाजपा से 4 चुनाव लड़े, आठवी बार टिकट न मिलने पर हुए बागी

रसाल सिंह की हाथी की सवारी के आत्म स्वार्थी निर्णय से संगठन निष्ठ कार्यकर्ता आहत

रसाल सिंह ने जनसंघ से 2 और भाजपा से 4 चुनाव लड़े, आठवी बार टिकट न मिलने पर हुए बागी
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स्वदेश एक्सक्लूसिव

ग्वालियर/भिंड। यदि रसाल सिंह जनाधार वाले नेता हैं तो जनसंघ और भाजपा ने भी उनके मान-सम्मान में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। जनसंघ से दो बार और भाजपा के टिकट पर पांच बार चुनाव लड़ चुके रसाल सिंह चार बार विधायक भी चुने गए। जिसमें वह सिर्फ एक चुनाव बागी होकर सपा के टिकट पर जीते थे। भारतीय जनता पार्टी ने उनकी जनप्रियता का आदर करते हुए विधानसभा क्षेत्र रौन विलुप्त होने के बाद लहार से उन्हें लगातार दो बार अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन वे चुनाव हार गए। आठवीं बार टिकट नहीं मिलने पर फिर से बागी होकर हाथी की सवारी बेशक उनके समर्थकों को भा रही हो लेकिन जनसंघ के समय से जुड़े भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता उनके इस आत्म स्वार्थी निर्णय से भारी आहत हैं। संगठन ने सदैव उनके मान-सम्मान की चिंदा की तो उन्हें भी स्थानीय मतभेदों को भुलाकर संगठन के निर्णय का मान रखना चाहिए था।

जनसंघ के समय से जुड़े भाजपा के दिग्गज नेताओं में शामिल रसाल सिंह ने फिर भाजपा को तिलांजलि देकर नाता तोड़ लिया। यदि रसाल सिंह के दलबदल इतिहास पर नजर डालें तो उन्होंने चौथी बार अपने मातृ राजनीतिक दल को छोड़ा है। पहली बार नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा से बगावत कर भिण्ड नपा अध्यक्ष चुने गए थे। जनता दल से लोकसभा का भी चुनाव लड़ चुके हैं। 1998 में समाजवादी पार्टी में चले गए और 2003 में भाजपा में वापसी हुई। कुछ समय रहने के बाद फिर उमा भारती के साथ बागी हो गए और फिर वापस भाजपा में लौट आए। 2013 व 2018 का विधानसभा चुनाव लडऩे के बाद 2023 में फिर बगावत कर अब हाथी की सवारी कर रहे हैं। एक जननेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके रसाल सिंह वर्तमान में विधायक वरिष्ठता में भिण्ड जिले में शीर्ष पर हैं। 1972 में रसाल सिंह भारतीय जनसंघ से पहली बार विधायक चुने गए थे तब वह कांग्रेस प्रत्याशी सोवरन सिंह परमार से तिगुने मत हासिल कर विजयी हुए थे। उनके साथ 1972 में अन्य विधानसभाओं से चुनाव जीतने वालों में अब कोई भी विधायक जीवित नहीं है। 1977 में फिर रसाल सिंह जनता पार्टी से चुने गए। 1980 में भाजपा का गठन हुआ फिर लगातार तीसरी बार भाजपा ने रौन से रसाल सिंह को मैदान में उतारा लेकिन वे रमाशंकर सिंह से चुनाव हार गए।

1985 में रसाल सिंह का टिकट काटकर भाजपा ने डॉ. राजेन्द्र प्रकाश सिंह को मैदान में उतार दिया था। जिससे नाराज रसाल सिंह नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा से बगावत कर भिण्ड नपा अध्यक्ष चुने गए थे लेकिन भाजपा ने 1990 में फिर राजेन्द्र प्रकाश को रिपीट किया और वे चुनाव जीतकर भाजपा सरकार में मंत्री भी बने और 1993 का चुनाव भी राजेन्द्र प्रकाश सिंह जीते तो 1998 में रसाल सिंह समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवारी कर विधानसभा में पहुंच गए जबकि 2003 में भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़े और जीते भी लेकिन उमा भारती के साथ फिर बागी हो गए और उनके साथ ही लौट भी आए। भाजपा ने उनका विधानसभा क्षेत्र रौन समाप्त होने के बावजूद विधानसभा क्षेत्र लहार से दो बार टिकट दिया था।

रसाल सिंह कब किस दल से लड़े चुनाव



Updated : 18 Oct 2023 12:30 AM GMT
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