स्वदेश स्टिंग : श्योपुर में "गिरवीराज" में बदला पंचायतीराज, सरपंच और सचिवों ने ठेके पर उठाई पंचायतें
क्या ग्राम पंचायतें भी कोई गिरवी रख सकता है? सुनने में अजीब लगेगा लेकिन यह सच्चाई है और यह सब खुलेआम हो रहा है श्योपुर जिले के जनजाति अधिसूचित कराहल विकास खंड में।
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श्योपुर/मोहन दत्त शर्मा। क्या ग्राम पंचायतें भी कोई गिरवी रख सकता है? सुनने में अजीब लगेगा लेकिन यह सच्चाई है और यह सब खुलेआम हो रहा है श्योपुर जिले के जनजाति अधिसूचित कराहल विकास खंड में। निर्वाचित सरपंच बाकयदा साल भर के लिए जिले के बाहर से आये ठेकेदारों को पंचायत ठेके पर उठा रहे हैं। यानी एक मुश्त रकम लेकर उस पंचायत में होने वाले सभी निर्माण कार्य यही ठेकेदार कर रहे हैं। ऐसा एक दो नहीं बल्कि कराहल जनपद क्षेत्र की बीसियों ग्राम पंचायतों में हो रहा है। ऐसा भी नहीं कि ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है लेकिन सब मौन धारण कर पंचायत राज का जनाजा निकालने में शामिल प्रतीत हो रहे हैं। ‘स्वदेश’ ने इस पूरे मामले को लेकर एक स्टिंग ऑपरेशन कर इस गिरवीराज की परतें खोलने का प्रयास किया।
तथ्य यह है कि जनजाति विकासखंड कराहल की कई पंचायत गिरवी रखी हैं। जिनमें बाहरी लोग मनमाने तरीके से निर्माण कार्य करा रहे हैं। पिछले साल हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद अस्तित्व में आईं पंचायतों को सरपंच और सचिवों ने खुलेआम गिरवी रख दिया है। जिससे न केवल मजदूरों का हक छीन गया बल्कि निर्माण कार्य गुणवााहीन होने लगे। स्टिंग में सामने आया कि अनुसूचित जनजाति विकासखंड की लहरोनी पंचायत सहित कई ऐसी पंचायतें गिरवी रख दी गईं। लहरोनी पंचायत को एक साल के लिए 30 लाख में गिरबी रखा गया है। इसके अलावा जखदा, लुहारी, गढ़ला, खिरखरी मदनपुर सहित अधिकांश ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जो या तो गिरवी रख दी गईं हैं या फिर ठेके पर दीगर जिले के लोगों को दे दीं।
सरपंचों ने अपनाया शॉर्ट कट कमाई का रास्ता-सरकार ने तो ग्राम पंचायत के सरपंच को निर्माण कार्य कराने की जिम्मेदारी दी है, लेकिन निर्माण कार्य के प्रारंभ से लेकर कार्य पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्त करने व राशि आहरण करने में होने वाली दिक्क़तों के कारण क्षेत्र के अधिकांश सरपंचों ने पचड़े में पडऩे की बजाय पंचायत गिरवी या ठेके पर देकर काम कराना ही ज्यादा मुनासिब समझा है।
गिरवी रखी पंचायत में गड़बड़ी के काम - ग्राम पंचायत लहरोनी में लहरोनी से अगरा रोड़ पर 50-50 मीटर की दूरी पर दो रपटों का निर्माण 15-15 लाख रुपए में कर दिया। वहीं कपूर सिंह सिकरवार के खेत के पास और वधरेंठा रोड पर सुनील खत्री के खेत के सामने 15 - 15 लाख में चेक डेम बना दिए। इस तरह करीब 1 करोड़ के काम करा दिए गए हैं। लेकिन पंचायत में सचिव नहीं है इसलिए इन निर्माण कार्यों को अभी तक मनरेगा के पोर्टल पर नहीं चढ़ाया गया है।
अधिकांश पंचायतों में ठेके पर काम - क्षेत्र की लगभग सभी पंचायतों में सभी कार्य ठेके पर ही किए जा रहे हैं। जिमेदार अधिकारीयों की जानकारी में होने के बाद भी ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगाने के बजाय अधिकारी अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। ऐसे में निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। सरपंच एक मुश्त राशि लेकर चुप बैठ जाते हैं।
मशीनों से काम, मजदूरी के लिए भटकते मजदूर-गिरवी और ठेके पर पंचायत लेने वाले लोग रातों रात निर्माण कार्य करा देते हैं। पंचायत में मशीनों से काम कराना प्रतिबंधित है लेकिन इन पंचायतों में मशीनों से धड़ल्ले से काम कराया जा रहा है। मनरेगा में मजदूरों के लिए बने जॉब कार्ड भी एक तरह से इन्हीं बाहरी ठेकेदारों ने गिरबी रख लिए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत में काम होने के बाद भी काम नहीं मिल रहा है। नाम के लिए जिन स्थानीय मजदूरों को काम पर रखा जाता है वे सरपंच या सचिव के घर के या मिलने वाले लोग ही होते हैं।
प्राइवेट बैंकों में खुलवा रखे हैं खाते - जिन स्थानीय ग्रामीणों को नाम के लिए मजदूरी पर रखा जाता है सरपंच सचिव ने उनके खाते फिनो या एयरटेल बैंक में खुलवा देते हैं। यह बैंक सरपंच सचिवों के घर जाकर भुगतान कर देती हैं। ग्रामीण मजदूरों को इसकी भनक तक नहीं लगती।
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