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तबादला चक्र में अजीबोगरीब किस्से देखने को मिले

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52 में 39 पुलिस अधीक्षक बदले, सरकार की तबादला सूचियों में दिखी प्राध्यापकों की धमक, तबादलों की गाज से नहीं बच सके चपरासी

प्रशासनिक संवाददाता, भोपाल

सारे घर के बदल डालूंगा की तर्ज पर कमलनाथ सरकार ने प्रदेश की नौकरशाही के तबादले किए। यह पहला अवसर है जब प्रदेश की किसी सरकार ने एक साथ इतने अधिक नौकरशाहों की अदला-बदली की है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने 52 जिलों में से 39 जिलों के पुलिस अधीक्षक बदल दिए हैं। शेष बचे 13 जिलों में पदस्थ पुलिस अधीक्षकों को इस कारण नही बदला गया कि इन्होंने कांग्रेस के मंत्री, सांसद, विधायकों से सरकार बदलते ही नजदीकियां बना ली थीं। चौंकाने वाली बात यह है कि पुलिस अधीक्षकों को कानून और व्यवस्था की स्थिति में लापरवाही, भाजपा के प्रति विशेष स्नेह या किसी गंभीर आरोप के बाद नहीं हटाया बल्कि कई ऐसी बातों पर बदल दिया गया जिन्हें जानकर हर कोई चौंक जाएगा। सरकार के सभी विभागों में ताबड़तोड़ तबादले हुए। शिक्षा विभाग भी इससे अछूता नहीं रहा, लेकिन राजधानी में महाविद्यालय में पदस्थ प्राध्यापक का दबदबा तलादला सूची में भी देखने को मिला। सरकार द्वारा चलाई गई तबादलों की इस बयार में मंत्री एवं दिग्विजय सिंह के चिरंजीव जयवर्धन सिंह ने तो अजीबोगरीब कारनामें को अंजाम दिया। उन्होंने न केवल एक वरिष्ठ अधिकारी को अपमानित करने के लिए उसकी नियुक्त उससे कनिष्ठ अधिकारी के अधीन कर दी।

कुछ जिलों के पुलिस अधीक्षक तो केवल इसलिए हटा दिए गए क्योंकि उन्होंने कांग्रेस नेताओं और उनके परिचितों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की थी । मुख्यमंत्री कमलनाथ के गृह जिले से हटाए गए पुलिस अधीक्षक को तो करीब ढाई महीने बाद भी पुलिस मुख्यालय में कोई काम ही नहीं सौंपा गया है। उन्हे एक प्रकार से अपमानित किया जा रहा है। मध्यप्रदेश के 52 जिलों में से भोपाल और इंदौर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रणाली है जहां वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों की पदस्थापना की जाती है। कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री कमलनाथ के 17 दिसंबर को शपथ लेने के बाद सबसे पहले छिंदवाड़ा पुलिस अधीक्षक अतुल सिंह को 20 दिसंबर को हटाया गया था । सरकार ने 20 दिसंबर से अब तक प्रदेश के 52 जिलों में से 39 के पुलिस अधीक्षक बदले हैं। इनमें भोपाल और इंदौर के उप पुलिस महानिरीक्षक और पुलिस अधीक्षक भी हटा दिए गए। इंदौर में एक सेवानिवृत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की पुत्री पुलिस अधीक्षक स्तर की अधिकारी को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बनाकर भेजा गया तो भोपाल में उप पुलिस महानिरीक्षक इरशाद वली को ही कमान दी गई।

चपरासियों को भी नहीं छोड़ा

विभाग ने तबादलों में चपरासियों तक को नहीं छोड़ा है। अपर आयुक्त वेदप्रकाश ने भृत्य अखिलेश तोमर को नूतन से गीतांजलि और किशन पटेल को गीतांजलि से नूतन, प्रयोगशाला सहायक आकाश लिल्हारे को दमोह से वारा सिवनी, तृतीय श्रेणी कर्मचारी कपिल शर्मा को रतलाम से तराना, मुख्य लिपिक श्याम सिंह चौधरी राज्य लोक सेवा आयोग से होल्कर कॉलेज इंदौर भेजा है।

इनका दिखा दबदबा

उच्च शिक्षा विभाग ने लोकसभा चुनाव के पहले दो दिन में करीब 144 प्राध्यापक और सहायक प्राध्यापकों के तबादले किए, लेकिन इनमें से राजधानी के मात्र तीन प्राध्यापकों का तबादला किया गया है, जिसमें एक महिला प्राध्यापक का तबादला तो भोपाल के ही दूसरे कॉलेज में किया गया तो वहीं दो प्राध्यापकों को भोपाल से बाहर भेजा गया है। दूसरे शहर या ग्रामीण क्षेत्रों के 15 प्राध्यापकों को राजधानी में लाया गया है, जबकि भोपाल के कॉलेजों में पहले से अतिशेष प्राध्यापक हैं।

प्रदेश के 457 में से लगभग 75 प्रतिशत सरकारी कॉलेज एक से तीन नियमित शिक्षकों के ही भरोसे चल रहे हैं। कुल स्वीकृत पदों के विरुद्ध कार्यरत प्राध्यापक और सहायक प्राध्यापकों में से 25 प्रतिशतकेवल भोपाल, इंदौर, ग्वालियर व जबलपुर में ही पदस्थ हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा 9 प्रतिशत तो अकेले भोपाल में ही हैं। सरकारी कॉलेजों के पोर्टल पर दर्ज जानकारी के अनुसार प्रदेश भर में सबसे ज्यादा 446 प्राध्यापक और सहायक प्राध्यापक अकेले भोपाल में पदस्थ हैं। ग्वालियर में 302, जबलपुर में 206 और इंदौर में 223 के आसपास शिक्षकों की संख्या है।

विधायक पुत्र के कारण पुलिस अधीक्षक को हटा दिया

जिन 39 जिलों के पुलिस अधीक्षक को हटाया गया, उनमें मुरैना के रियाज इकबाल भी शामिल हैं। बताया जाता है कि उन्होंने टोल नाके पर फायरिंग करने वाले कांग्रेस विधायक ऐदल सिंह कंसाना पुत्र के खिलाफ प्रकरण दर्ज कराया था। इसके बाद ही वे हटा दिए गए। इसी तरह मंदसौर पुलिस अधीक्षक रहे टीके विद्यार्थी को एक नेता के शराब से भरे ट्रक को पकड़ने पर उनकी नाराजगी झेलना पड़ी। वे 33 दिन ही मंदसौर पुलिस अधीक्षक रह पाए और पुलिस मुख्यालय भेज दिए गए। गौ रक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सख्त कार्रवाई करने वाले आगर मालवा पुलिस अधीक्षक मनोज सिंह ने जब पशुक्रूरता अधिनियम में कार्रवाई कर दी तो कुछ दिन में वे वहां से हटा दिए गए। इसी तरह राजगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान आयोग द्वारा भेजे गए प्रशांत खरे को चार महीने में ही राजगढ़ से हटाकर पुलिस मुख्यालय भेज दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उनके स्थान पर प्रदीप शर्मा की पदस्थापना कराई है। शर्मा-सिंह के परिवार के घनिष्ठ संबंध हैं।

Updated : 14 March 2019 3:29 PM GMT
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Naveen Savita

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