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बाघों की मौतों के बाद भी गंभीर नहीं सरकार

बाघों की मौतों के बाद भी गंभीर नहीं सरकार
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प्रदेश में 308 बाघों पर सिर्फ 30 रेडियो कॉलर

विशेष संवाददाता भोपाल

प्रदेश में लगातार बाघों की मौत के मामले सामने आए हैं। बीते 6 सालों में अबतक 126 बाघों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा बाघों की मौत जहर और करंट से हुई है। वन विभाग बाघों पर नजर रखने के लिए रेडियो कॉलर का प्रयोग करते हुए लोकेशन का पता लगाता है, लेकिन रेडियो कॉलर की कमी के चलते वन्य क्षेत्रों में विचरण कर रहे 308 बाघों में से सिर्फ 30 बाघों पर रेडियो कॉलर लगाया है।

मध्यप्रदेश में बाघों की सुरक्षा के लिए भले ही करोड़ों का बजट खर्च हो रहा हो, लेकिन सरकार इस मामले में फिसड्डी साबित हो रही है। वर्ष 2016 की गणना के अनुसार मध्यप्रदेश में 252 बाघ हैं लेकिन उनके मूवमेंट पर निगाह रखने वाले रेडियो कॉलर मात्र 30 हैं। यही वजह है कि पिछले 6 सालों में प्रदेश में अबतक 126 बाघों की मौत हो चुकी है। यह खुलासा वन विभाग की रिपोर्ट से हुआ है। वन विभाग के अधिकारियों ने दावा किया है कि प्रदेश में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2014 में राज्य में 717 बीटों में बाघों की मौजूदगी के साक्ष्य मिले थे, जबकि इस बार 1432 बीट में साक्ष्य जुटाए गए हैं। कान्हा नेशनल पार्क में वर्ष 2014 में 11 रेंज में 155 बीट में बाघ थे। इस बार 13 रेंज में 188 बीट में बाघों की दस्तक पाई गई। इसी प्रकार जबलपुर वन सर्किल में 28 से बढक़र 62 बीटों में साक्ष्य मिले। वन विभाग की रिपोर्ट की मानें तो प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों में हुईं घटनाओं का आकलन करें तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध मंडला जिले के कान्हा टाइगर रिजर्व में इस साल सबसे ज्यादा आठ बाघों की मौत हुई है। इसके बाद बांधवगढ़ का नंबर आता है। यहां चार बाघों की मौत हुई। इसके अलावा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व, रातापानी अभयारण्य सहित तमाम सामान्य वनमंडलों में बाघों की मौत हुई है। वन विभाग का दावा है कि नौ बाघों की मौत आपसी लड़ाई में हुई है। जबकि पांच बाघों की मौत का कारण विभाग को पता नहीं चल सका है। इनमें से एक बाघिन का शव पांच दिन पहले ही रातापानी अभयारण्य क्षेत्र से बरामद किया गया है, वहीं मप्र के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में पिछले दो साल में बाघ या बाघिन की मौत का एक भी मामला सामने नहीं आया है।

क्या होता है रेडियो कॉलर

रेडियो कालर दो प्रकार के होते हैं। बाघों के लिए दोनों प्रकार के रेडियो कॉलर का उपयोग किया जाता है। सेटेलाइट बेस्ड जीएपीएस (ग्लोबल पोजेशिनिंग सिस्टम)व रेडियो बेस्ड वीएचएफ (बहुत उच्च आवृत्ति) रेडियो कॉलर से घर बैठे ही अधिकारी उस बाघ की हर गतिविधि की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जिसमें रेडियो कॉलर लगा होता है। सैटेलाइट सिस्टम से कम्प्यूटर, टीवी अथवा एलईडी में भी उनकी सारी गतिविधियां, विचरण क्षेत्र की जानकारी मिलती रहती है। इसकी कीमत करीब 5 लाख रुपये होती है।

कैसे गई 126 बाघों की जान

जहर-18, करंट- 20, शिकार और फंदा लगाकर- 25, आपसी लड़ाई-39, प्राकृतिक-9, वृद्धावस्था-2, एक्सीडेंट -5, कुंए में डूबने से-1, अज्ञात-4, बीमारी-7, मां ने त्यागा-1.

Updated : 5 March 2019 3:19 PM GMT
author-thhumb

Naveen Savita

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